Friday, July 26, 2013

मन के तार ...........


1
बन जाऊं में
शीतल पवन ,तो
तपन मिटे  
2
बन जाऊं में
बहती जल धारा
प्यास बुझाऊं
3
दूर हो जाए
जहाँन  से अँधेरा
दीप जलाऊं
4
तेरे लिए तो
जान भी हाजिर है
मै वारि जाऊं
5
खुदा लेता है
पल पल परीक्षा
क्यूँ मै डरूं
6
अडिग रहूँ
पहाड़ो सी  अचल
हूँ संरक्षक .
7
मन के तार
सरगम से बजे 
खिला मौसम

---- शशि पुरवार

9 comments:

  1. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 27/07/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (26-07-2013) को खुलती रविकर पोल, पोल चौदह में होना: चर्चा मंच 1318 पर "मयंक का कोना" में भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आस और विश्वास जगाती पंक्तियाँ..

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  4. बहुत ही गहन और सार्थक हाइकू.

    रामराम.

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  5. पांचवें हाइकू में 5 8 4 अक्षर हो गये हैं, देखियेगा.

    रामराम.

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

    ReplyDelete

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