Friday, August 30, 2013

श्री कृष्ण -- छेड़े गोप वधू


श्री कृष्ण
नाम है
आनंद की अनुभूति का,
प्रेम के प्रतिक का ,
ज्ञान के सागर का
और जीवन की
पूर्णता का।


श्री कृष्ण ने
गीता में  दिया है
निति नियमो का ज्ञान
जीवन को जीने का सार ,
पर इस युग में तो
मानव ने
राहों में रोप दिए है
क्षुद्रता के
 कंटीले  तार।


मोहन ने
शंख  बजाकर
उद्घोष किया था
करो दुष्टों का नाश.
आज कलयुग में
अधमता के
काले बादलों से
भरा हुआ है आकाश।


लक्ष्य
निर्धारित करता है
आने वाले कल की
दिशाएँ
और
नए  संसार का
अभिकल्प।  


श्री कृष्ण
जन्मोउत्सव
ह्रदय में
उन्माद  की आंधी
श्याम बनने को होड़ में
बाल गोपाल
फोड़ रहे  है
दही हांड़ी।

 ६
फूलों से सजा
हिंडोला
दूध - दही की
बहती गंगा
विविध पकवान
पंचामृत का भोग
भक्ति का बहता सागर
मन हो जाये चंगा।
24.8.13 १


-------------


1
श्याम ने दिया
प्रेम का गूढ़ अर्थ
भक्तों ने जिया।

सांसों में बसी
भक्ति - भाव की धारा
ज्ञान लौ जली

 नियम सारे
ज्ञान का सागर है
मोहन प्यारे।


हर्षोल्लास
भक्ति भाव की  गंगा
गोकुल खास
बाल गोपाल
दही हांडी की धूम
 हर चौराहे।

माहिया --


हाँ ,शीश मुकुट सोहे
अधरों पे बंशी
मन को कान्हा मोहे।
राधा लागे है प्यारी
 छेड़े गोप वधू
रास रचे है  गिरधारी
25 .8 13


- शशि पुरवार



Tuesday, August 27, 2013

कान्हा नजर न आये ………।

मनमोहन का जाप जपे है
साँस साँस अब मोरी


नटखट कान्हा ने गोकुल में
कितने स्वाँग रचाये
कंकर मारे, मटकी तोड़ी
माखन-दही चुराये
यमुना तीरे पंथ निहारे
हरिक गाँव की छोरी

जग को अर्थ प्रेम का सच्चा
मोहन ने समझाया
राधा-मीरा, गोप-गोपियाँ
सबने श्याम को पाया
उनकी बंसी-धुन को सुनना
चाहे हर इक गोरी

वृन्दावन की कुंज गलिन में
मन मोरा रम जाए
कान्हा-कान्हा हिया पुकारे
कान्हा नजर न आये
मै तो मन ही मन खेलूँ हूँ


- शशि पुरवार 

२१ / ०८ / १३


 


Sunday, August 18, 2013

आजादी के बाद कितनी आजादी पायी है। ।?

आजादी के बाद
कैसी आजादी पायी है

लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ जाता है
फिर जाने कितने
भूखों का पेट भर पाता है

मोटी चमड़ी के
हाथों में दूध मलाई है
रंक  की थरिया में
फिर महंगाई आयी है

रोज नये वचन के
झूठे आश्वासन होते है
लुगड़ी चुपड़ी बात
भरे सियासी दिन होते है

चारे  और घपले
करने की दौड़ लगायी है
गरीबी रेखा में
फिर आधी जनता आयी है

उन्नति की डगर पर
अब तो मिटने लगे है गाँव
कंक्रीट के शहर में
खो जाती है पेड़ की छाँव

अब आधुनिकरण ने
बाजार में साख जमायी है
संकुचित मूल्यों से
कितनी आजादी पायी है।

-  शशि पुरवार
१६ /अगस्त /१३










Thursday, August 15, 2013

अब जोश दिलों में भंग न हो.…।





जय भारत के  वीर जवानों

आजादी  के मस्तानो
अब जोश दिलों में भंग न हो।

नव भारत में नयी दिशाएं 

मिट जाएँ काली निशायें
घर घर में फैले उजियारा
फिर खुशियों की बहे हवाएं

प्रातः की नयी किरणों में

आतंक  का बेरंग न हो,
अब जोश दिलों में भंग न हो।
 
नये पौध  के नये आचार
संस्कारों का दृढ़ आधार 
विदेशी धरती पर भी देखो
कर रहे संस्कृति का प्रसार 

नव सांसो में नव प्राण दो

पर जड़े अपनी तंग न हो
अब जोश दिलों में भंग न हो

नए राष्ट्र के प्रांगण में

चैनो अमन के फूल खिले
राष्ट्रप्रेम की जन अभिलाषा
हर बालक के दिल में मिले

नवयुग का आह्वान करो

पर निज स्वार्थ की जंग न हो
अब जोश दिलों  भंग न हो।

पावन भूमि यह भारती की 

माँ , हमारी पालनहार है
मातृभूमि की लाज बचाने
यहाँ जन जन भी तैयार है 

वैरी की आशा तोड़ दो

हाँ सेना अपनी भंग न हो।
अब जोश दिलों में भंग न  हो

-- शशि पुरवार 


सभी मित्रो और परिजनों को स्वतंत्रा  दिवस  शुभकामनाये। 

जय हिन्द ,जय भारत। - शशि पुरवार

Sunday, August 4, 2013

चम्पा चटकी

चम्पा चटकी
इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई ।

उषाकाल नित
धूप तिहारे
चम्पा को सहलाए ,
पवन फागुनी
लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ।

निंदिया आई
अखियों में और
सपने भरें लुनाई

श्वेत चाँद -सी
पुष्पित चम्पा
कल्पवृक्ष-सी लागे
शैशव चलता
ठुमक -ठुमक कर
दिन तितली- से भागे

नेह- अरक में
डूबी पैंजन
बजे खूब शहनाई.

-शशि पुरवार



३. महक उठी अंगनाई --- नवगीत की पाठशाला में प्रकाशित मेरा नवगीत 

Friday, August 2, 2013

जीवन के ताप सहती

जीवन के ताप सहती
कैसे असुरी

जलती है धूप नित
सांझ सवेरे
मधुवन में क्षुद्रता के
मेघ घनेरे .

रातों में चाँद देखे
पाँव इंजुरी .

भाल पर अंकित है
किंचित रेखा
काया को घिसते यहाँ
किसने देखा

नटनी सी घूम रही
देखो लजुरी .

मुखड़े पर शोभित है
मोहिनी मुस्कान
वाणी में फूल झरे
देह बेइमान

हौले से छोर भरे
कैसे अंजुरी .

शशि पुरवार

Thursday, August 1, 2013

यूँ बदल गए मौसम।

 1
क्यूँ तुम खामोश रहे
पहले कौन कहे
दोनों ही तड़प सहें ।

2
आसान नहीं राहें
पग- पग पे  धोखा
थामी तेरी बाहें ।

3
सतरंगी यह जीवन
राही चलता जा
बहुरंगी तेरा मन ।

4
साँचे ही करम करो
छल करना छोड़ो
उजियारे रंग भरो ।

5
बीते कल की बतियाँ
महकाती यादें
है आँखों में रतियाँ ।

6
ये  पीर पुरानी है
यूँ बदले  मौसम 
खुशियाँ नूरानी है  ।


है खुशियों को जीना
हँसता चल राही
दुःख आज नहीं पीना ।


मन में सपने जागे
पैसे की खातिर
क्यूँ हर पल हम भागे?


है दिल में जोश भरा
मंजिल मिलती है
दो पल ठहर जरा ।

१०
झम झम बरसा पानी
मौसम बदल गए
क्यूँ रूठ गई रानी ?

११
क्यों मद में होते  हो
दो पल का जीवन
क्यों नाते खोते हो ।

१२
है क्या सुख की भाषा
हलचल है दिल में
क्यों  टूट रही आशा ।?

१३
दिन आज सुहाना है
कल की खातिर क्यों
फिर आज जलाना है ।

----शशि पुरवार

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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