Sunday, August 4, 2013

चम्पा चटकी

चम्पा चटकी
इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई ।

उषाकाल नित
धूप तिहारे
चम्पा को सहलाए ,
पवन फागुनी
लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ।

निंदिया आई
अखियों में और
सपने भरें लुनाई

श्वेत चाँद -सी
पुष्पित चम्पा
कल्पवृक्ष-सी लागे
शैशव चलता
ठुमक -ठुमक कर
दिन तितली- से भागे

नेह- अरक में
डूबी पैंजन
बजे खूब शहनाई.

-शशि पुरवार



३. महक उठी अंगनाई --- नवगीत की पाठशाला में प्रकाशित मेरा नवगीत 

13 comments:

  1. शुभ प्रभात
    अप्रतिम
    सादर
    यशोदा

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  2. अहा, प्रभात का सुन्दर स्वागत..

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  3. वाह बहुत खूब

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  4. वाह ... चंपा के कोमल भाव मन में खुशबू का एहसास ले आते हैं ... सुन्दर रचना ...

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  5. कल 05/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  6. वाह वाह....
    बहुत सुन्दर नवगीत ...
    उषाकाल नित
    धूप तिहारे
    चम्पा को सहलाए ...

    मनभावन......

    सस्नेह
    अनु

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  7. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।

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  8. उषाकाल नित
    धूप तिहारे
    चम्पा को सहलाए ,
    पवन फागुनी
    लोरी गाकर
    फिर ले रही बलाएँ।
    ...बहुत सुन्दर बिम्ब .

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  9. वाह जी क्या बात है

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