कण कण में बसी है माँ।
उडती खुशबु रसोई की
नासिका में समाये
भोजन बना स्नेह भाव से
क्षुधा शांत कर जाय
प्रातः हो या साँझ की बेला
तुमसे ही सजी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
संतान के ,सुख की खातिर
अपने स्वप्न मिटाये
अपने मन की पीर ,कभी
ना घाव कभी दिखलाये
खुशियाँ ,घर के सभी कोने में
तुमने ही भरी है माँ
कण कण में बसी है माँ .
माँ ने , दुर्गम राहो पर भी
हमें चलना सिखाया
जीवन के हर मोड़ पर भी
ज्ञान दीप जलाया
संबल बन कर ,हर मुश्किल में
संग खडी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
शांत निश्छल उच्च विचार
मन को खूब भाते
माँ से मिले संस्कार , हम
जीवन में अपनाते
जीवन की हर अनुभूति में
कस्तूरी सी घुली माँ
कण कण में बसी है माँ।
-- शशि पुरवार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (03-10-2013) पावन माटी से प्यार ( चर्चा - 1387 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
महात्मा गांधी और पं. लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धापूर्वक नमन।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुन्दर भाव लिए रचना..
ReplyDelete:-)
माँ का रूप मन में पूर्णता से बस जाता है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया-
माँ एक ऐसा शब्द है जो स्वत: स्फूर्ति देता है ... प्रेरणा देता है ...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 04/10/2013 को
ReplyDeleteकण कण में बसी है माँ
- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः29 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
Very nicely written.
ReplyDeleteI hope you are feeling better.
vinnie
बहुत बढ़िया,सुंदर सृजन !
ReplyDeleteRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
"कस्तूरी सी घुली माँ
ReplyDeleteकण कण में बसी है माँ"
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : नई अंतर्दृष्टि : मंजूषा कला
माँ है ,तो जहाँ है...
ReplyDeleteसुरेश राय 'सुरS'
http://mankamirror.blogspot.in/