Friday, December 12, 2014

"माँ सहेली खो गई है "






छोड़कर बच्चे गए जब
माँ अकेली हो गई  है
टूटकर बिखरी नहीं वो
इक पहेली हो गई है

स्वप्न आँखों में सजे थे
पुत्रवधू घर आएगी
दीप खुशियों के जलेंगे
सुख बिटिया का पायेगी

गाज सपनो पर गिरी, जब  
माँ सहेली खो गई है

पूछता कोई नहीं अब
दरकिनारा कर लिया है
मगन है सब जिंदगी में
बस सहारा हर लिया है।

गॉंव में रहती अकेली
माँ चमेली सो गई है
 
धुंध सी छायी हुई है
नेह, रिशतों के दरमियाँ
गर्म साँसें ढूंढती है
यह हिम बनी खामोशियाँ

दिन भयावह बन डराते
शब करेली हो गई  है
टूटकर बिखरी नहीं वो
इक पहेली हो गई है
-----  शशि पुरवार

17 comments:

  1. बहुत सही लिखा है -
    लड़कियाँ समझती हैं बहुएँ ऑब्ज़र्व करती है ,उनमें वह लगाव क्यों नहीं होता !

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  2. आपकी लिखी रचना शनिवार 22 दिसंबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. क्षमा याचना...आपकी लिखी रचना शनिवार 13 दिसंबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  4. बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण गीत...बहुत सुन्दर

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (13-12-2014) को "धर्म के रक्षको! मानवता के रक्षक बनो" (चर्चा-1826) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. मन को छूती मर्मस्पर्शी गीत

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  7. हृदयस्पर्शी रचना !

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  8. बहुत बढ़िया है रचना शशि जी ,दिल को छू गई ....

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  9. बहुत ही सुंदर रचना।

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  10. मन को छूते हुए शब्द ... मर्म्स्पर्शीय ...

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  11. दिल तक को छूती हुई सुन्दर शब्द

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  12. आप सभी सुधिजनों का तहे दिल से आभार

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  13. बहुत ही सुंदर रचना।

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