Thursday, May 14, 2015

उजाले पाक है अच्छाईयों में ....


एक ताजा गजल आपके लिए -

कदम  बढ़ते रहे रुसवाइयों में
मिटा दिल का सुकूँ ऊँचाइयों में

जगत, नाते, सभी धन  के सगे हैं
पराये हो रहे कठनाइयों में

मेरे दिल की व्यथा किसको सुनाऊँ
जलाया घर मेरा दंगाइयों में

दिलों में आग जब जलती घृणा की
दिखा है रंज फिर दो भाइयों में

बुरी संगत  अंधेरों में धकेले
उजाले पाक हैं अच्छाइयों में

दिलों में है जवां दिलकश मुहब्बत
जुदा होकर मिले  परछाइयों  में

मिली जन्नत, किताबों में मुझे, अब
मजा आने लगा  तन्हाईयों में

---   शशि पुरवार 

10 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (15.05.2015) को "दिल खोलकर हँसिए"(चर्चा अंक-1976) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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  2. मिली जन्नत, किताबों में मुझे, अब
    मजा आने लगा तन्हाईयों में ..
    बहुत लाजवाब शेर ... और सच भी ... किताबों का सहारा मिल जाये तो तन्हाई रास आने लगती है ...

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  3. बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

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  4. जगत, नाते, सभी धन के सगे हैं
    पराये हो रहे कठनाइयों में
    ...वाह..सभी अशआर बहुत उम्दा..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..

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  5. बढ़िया रचना

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  6. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  7. बहुत ही शानदार। खूबसूरत गज़ल।

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  8. बहुत ही शानदार। खूबसूरत गज़ल।

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  9. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  10. बेहद उम्दा भावपूर्ण गजल --- बहुत सुंदर

    बधाई

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