Tuesday, July 21, 2015

व्यंग -मज़बूरी कैसी कैसी ----





मज़बूरी शब्द कहतें ही किसी फ़िल्मी सीन की तरह, हालात के शिकार  मजबूर नायक –नायिका का दृश्य नज़रों के सम्मुख मन के चित्रपटल पर उभरता है, जिसमे हीरो ,हिरोइन को मज़बूरी में  सहारा देता है या खलनायक उसकी मज़बूरी का फ़ायदा उठाता है . ...पर जनाब अब इस दृश्य में बेहद परिवर्तन आ गएँ हैं. वह कहावत तो आप सभी ने सुनी होगी कि मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी .. सच आजकल की पीढ़ी ने इस कहावत को चरितार्थ कर दिया है. मकबूल साधो अब हम क्या कहें, आज हम आपको मज़बूरी के भिन्न भिन्न प्रकारों से अवगत करातें है. 
                     अब यह ना सोचे कि हमें मूर्ख बनाया जा रहा हैं, भई किसी और को क्या मूर्ख बनाएँ हम स्वयं इसी महान मज़बूरी का शिकार हो चले हैं, हाँ हाँ मज़बूरी का शिकार आपसे अपनी इस मज़बूरी को साझा करतें है, हमारी मज़बूरी यह है कि संपादक और पाठकों के स्नेहिल निवेदन से हम आइसक्रीम की तरह पिघले हुए है और आपको वह पिघली हुई क्रीमी आइसक्रीम शब्दों की चोकलेट से सजाकर पेश कर रहें हैं.. कलम घिसना भी किसी मज़बूरी से कम नहीं हैं. समाज को आइना दिखाना हमारी मज़बूरी है, यही मज़बूरी कब कहाँ किसी के काम आकर कुछ भला करे दे, इसका किसी को अंदाजा नहीं होता हैं.यह हमारी जिम्मेदारी है जिसे हमें हर हाल में निभाना होता है , फिर वक़्त के अनुसार खुद को अपडेट भी रखना भी हमारी मजबूरी है .इसीलिए समाज के अपडेट लिखना आप मज़बूरी कहें या कार्य यह मुद्दा आपकी बहस के लिए छोड़ देतें हैं.. किन्तु हमें हर हाल में लिखना ही होगा , भाव आयें तो प्रसंन्नता की बात है किन्तु भाव  नहीं आएं तो दिमाग को हिला हिला कर निचोड़ कर भाव की स्याही से कलम को घिसना पड़ता है. शिष्टता के कारण लिखना अब हमारी मजबूरी हो गयी और हमें पढना आपकी, यानि एक अच्छे पाठक की मजबूरी है, हमारी मेहनत के बाद आपने नहीं पढ़ा तो किताब आपके सामने पड़ी पड़ी आपके गले की हड्डी बन जाएगी. वह आई और आपने उसके पन्नो पर नजर तक नहीं घुमाई .इस दुःख को निगलने से पहले हमारी इस पीढ़ा को जरुर समझेंगे. हमें पूर्ण विश्वास है कि आप हमें जरुर पढेंगे, चाहे  हमने कितनी भी बकबाद क्यूँ ना की हो.
                                       वैसे इस मुकम्मल जहाँ में हर इंसान मजबूर है.चाहे घर हो या बाहर. काहे कि हर काम मज़बूरी में ही किये जातें है, कैसे, तो सुनिए जैसे पति पत्नी को आपस में रिश्ता निभाना मजबूरी है, रोज रोज की खिटखिट – पिट –पिट, चाहे कितने नगाडे बजाये किन्तु वे सदैव एक दूजे के बने रहेंगे . पत्नी भोजन जला दे तो भी मुस्कुरा कर खाओ, प्रेम से अच्छा भोजन से दे तो खूब खाओ, किन्तु  खाओ, उसी प्रकार पति लाख झगडा करे तो उसे मनाओ और खिला खिला कर मनाओ, अजी मनाओ क्या बदला निकालो, भई कहतें हैं ना, मारो तो प्रेम से मारो, आजकल यही तकनीक हमारी युवा पीढ़ी ने भी प्रारंभ कर की है , आज के युवा रसोई घर में कंधे से कन्धा मिला रहें हैं. आज पुरुष कहने लगे हैं हम महिला के शिकार है तो महिलाएं अक्सर पुरुषों की शिकार होती है, अब यह सत्य तो ईश्वर ही जाने, भई दूसरों के मामले में टांग अडाने से वह भी घबरातें है. इस गृह युद्ध में तो श्रीकृष्ण का चक्र भी काम नहीं आता है.गृह हो या बाहर आप कहीं भी कार्य करें, मज़बूरी हर जगह विधमान है, कहीं वह बॉस बनकर हुकूमत करती है, कहीं दयनीय  जिन्दगी बनी हुई है. इसीलिए ईश्वर ने हर इंसान को कार्य करने के लिए मजबूर किया है. कार्य करो, पढो –लिखो ,कमाओ और परिवार चलाओ, वक़्त आये तो देश भी चलाओ.
                          अजी आज  देश के हालात भी कुछ इसी  तरह हो गएँ हैं. देश तरक्की चाहता है, बदलाव हर हाल में आवश्यक है किन्तु नेता कुर्सी के मद में डूबे हुए आपस में क्लेश करते रहतें है और बेचारी जनता उनके हाथों मजबूर है. नेताजी की मज़बूरी कुर्सी है . साम दाम दंड भेद  सभी नीतियाँ  यहाँ अपने जोहर का प्रदर्शन करतीं है .देश में मंहगाई, अजगर की भांति मुँह बाये खड़ी है, और जनता सिर्फ मन ही मन गालियाँ सुनाकर उसी मंहगाई में जीने के लिए मजबूर है. हाथ चाहे कितना भी तंग क्यूँ ना हो ? क्या खायेंगे नहीं, पियेंगे नहीं या फेसबुक नही चलाएंगे.  अहा यह तो सबसे महत्वपूर्ण जीने की वजह है .आज के ज़माने की तरह रहना भी हर वर्ग के लोगों की मजबूरी है. आजकल फेसबुक ने इतना रायता फैला रखा है कि पूछो मत. हर कोई उसी रायते में अपनी पांचो उँगलियाँ अजी उँगलियाँ क्यूँ पूरा ही डूबा रहना चाहता है .हाल  ही में एक किसान के बेटे से मिलना हुआ बेहद खुश, प्रसन्नता मुख से झमाझम बारिश की भाँति टपक रही थी,  मोबाइल के प्रभाव में लल्ला ने खेत वेत से ज्यादा फेसबुक दोस्तों को तहरीज प्रदान कर रखी है, एक दिन नेट पेक जैसे ही बंद हुआ बेचारे का पूरा हाजमा बिगड़ जाता है और उसे नेट पेक के चूरन की गोली देने से उसकी हालत में अतिशीघ्र सुधार हुआ . भाई आजकल डाक्टर फेसबुक के पास हर मर्ज की दवा है.. हर रिश्ता इससे प्रभावित हो गया है, सास बहु के रिश्ते भी अछूते नहीं रहे, बहु खाना दे तो ठीक नहीं तो अपना खाना स्वयं बनाओ और अपने साथ साथ मज़बूरी में उसके लिए भी खाना बनाओ.  वैसे भी आजकल इस प्रथा में बदलाव आ गया है. अब तो सास बहु भी फेसबुक के जरिये अपनी वार्ता कर लेतीं है. लोग लड़का देखने जाते है तो पहला प्रश्न क्या खाना बना लेते हो ? भाई शादी करना है तो मिलबांट कर कार्य करना हर रिश्ते की मज़बूरी हो गयी है. आज दुनिया घाघ लोगों से अटी पड़ी है. यहाँ गिद्ध की नजरें हर इंसान के कार्य कर गडी रहती है जैसे ही किसी की कुछ कमजोरी हाथ आये उस पर मज़बूरी का तड़का जल्दी से लगाओ और स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर पेश करो. 
             मिडिया जिसके पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा वह आपको तवज्जों जरुर देगी. रोजी रोटी की खातिर कुछ भी प्रस्तुति देना उनकी मज़बूरी है. अभी हाल ही में टीवी पर फरहा खान का नया शो शुरू हुआ है, जिसमे नामचीन कलाकार आपको अपने पसंद के व्यंजन बनाते हुए नजर आयें. शो के प्रथम एपिसोड में अभिषेक बच्चन साजिद, समेट कई नामचीन कलाकार फरहा के शो पर नजर आये थे. फिल्मे ना सही जो काम मिले हथिया लो. कुछ नहीं तो खाना ही बना कर दिखा दो, कुछ काम तो मिला, बड़े परदे के कलाकारों ने मज़बूरी में छोटे परदे का रुख अपना लिया है, और बेचारी जनता खुश होने की बजाय छोटे परदे का बेस्वाद होता रायता खाने के लिए मजबूर है. आप जब भी छोटा बुद्धू बक्सा खोलिए उब भरे फ़िल्मी ड्रामे मनोरंजन के नाम पर परोसे जा रहें हैं.जिसका उपयोग जनता भोजन करते समय जरुर करती है, एक वही समय है जब आदत से मजबूर बिना बुद्धू बक्से के, भोजन गले से नीचे नहीं उतरता है. किन्तु वह भी मनोरंजन के नाम पर ऊबाऊ, रसविहीन और अपचकारी हो गया है,  बेसिरपैर के फ़िल्मी ड्रामे या अवार्ड समारोह के नाम पर उलफुजुल भोंडे भद्दे मजाक देखना दर्शक की मज़बूरी हो गयी है, ऐसे में अब यह फैलारा गले की हड्डी बनता जा रहा है. इसे कहते हैं मंजबूरी, जिसके हाथों सब कठपुतली की तरह नाच रहें है. परदे की हस्तियाँ आगे चलकर आपके बीच नजर आयें तो आश्चर्य ना कीजियेगा . भई मज़बूरी का नाम जिंदगानी है . हम आपका शुक्रिया अदा करना चाहेंगे  कि मज़बूरी में लिखे गए आलेख को आपने ह्रदय से पढ़ लिया. और स्नेह भी प्रदान किया. इसीलिए सब मिलकर बोले  -मज़बूरी देवी जी जय हो . आपकी हर मनोकामना इस मंत्र से जरुर पूर्ण होगी .
                                                       --- शशि पुरवार

Sunday, July 5, 2015

जिंदगी चित्र

नमस्कार मित्रों , आज आपके लिए चित्र मय हाइकु -- शशि पुरवार

Wednesday, July 1, 2015

याद की खुशबु हवा में



गॉँव के बीते दिनों की,
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे.

धूल से लिपटी सड़क पर
पाँव नंगे दौड़ना
वृक्ष पर लटके  फलों को
मार कंकर तोडना
जीत के हासिल पलों को
दोस्तों से बाँटना
और माँ का प्यार की उन
झिड़कियों से डाँटना

गंध साँसों में घुली है
माटी बुलाती है मुझे
याद  की खुशबु हवा में....

नित सुहानी थी सुबह
हम खेलते थे बाग़ में
हाथ में तितली पकड़ना
खिलखिलाना राग में
मस्त मौला उम्र थी
मासूम फितरत से भरी
भोर शबनम सी  खिली
नम दूब पर जादूगरी.

फूल पत्ते और कलियाँ
फिर रिझाती  है मुझे
याद की खुशबु हवा में ....

गॉँव के परिवेश बदले
आज साँसे तंग है
रौशनी के हर शहर 
जहरी धुएँ के संग है
पत्थरों के आशियाँ है
शुष्क संबंधों भरे
द्वेष की चिंगारियाँ है
नेह खिलने से डरे
वक़्त  की सरगोशियाँ
पल पल डराती है मुझे।
गॉँव के बीते दिनों की
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे।
-- शशि पुरवार
अनहद कृति -- काव्य उन्मेष उत्सव में इस गीत को सर्वोत्तम छंद काव्य रचना के लिए चुना गया है।

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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