Wednesday, July 1, 2015

याद की खुशबु हवा में



गॉँव के बीते दिनों की,
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे.

धूल से लिपटी सड़क पर
पाँव नंगे दौड़ना
वृक्ष पर लटके  फलों को
मार कंकर तोडना
जीत के हासिल पलों को
दोस्तों से बाँटना
और माँ का प्यार की उन
झिड़कियों से डाँटना

गंध साँसों में घुली है
माटी बुलाती है मुझे
याद  की खुशबु हवा में....

नित सुहानी थी सुबह
हम खेलते थे बाग़ में
हाथ में तितली पकड़ना
खिलखिलाना राग में
मस्त मौला उम्र थी
मासूम फितरत से भरी
भोर शबनम सी  खिली
नम दूब पर जादूगरी.

फूल पत्ते और कलियाँ
फिर रिझाती  है मुझे
याद की खुशबु हवा में ....

गॉँव के परिवेश बदले
आज साँसे तंग है
रौशनी के हर शहर 
जहरी धुएँ के संग है
पत्थरों के आशियाँ है
शुष्क संबंधों भरे
द्वेष की चिंगारियाँ है
नेह खिलने से डरे
वक़्त  की सरगोशियाँ
पल पल डराती है मुझे।
गॉँव के बीते दिनों की
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे।
-- शशि पुरवार
अनहद कृति -- काव्य उन्मेष उत्सव में इस गीत को सर्वोत्तम छंद काव्य रचना के लिए चुना गया है।

7 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2 - 06 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2024 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. यादो की सौंधी महक लिये शान्दार रचना...... वाह्ह्ह्ह्ह्ह

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  3. वाह वाह

    ReplyDelete
  4. मन खुश हुआ बधाई।

    ReplyDelete
  5. वाह बेहतरीन आग़ाज.....शशि जी हार्दिक बधाई

    ReplyDelete

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