Monday, January 11, 2016

दफ्तरों से पल




दफ्तरों से बन गए है,
जिंदगी के पल
शाम से मिलते, थके दिन
रात का आँचल।

अब समय के साथ चलते,
दौड़ते साये
चाँद - तारों सी तमन्ना
हाथ में लाये
नींद आँखों में नहीं है
प्रश्न का जंगल।

अक्स अपना देखते, जब 
रोज दरपन में
भार से काँधे झुके है
रोष है मन में
बस नजर आती नहीं है
इक हँसी निश्छल।

धूप बैठी हाशिये पर
ढल गया यौवन
भीड़ में कुछ ढूँढता है
यह प्रवासी मन
रात गहराने लगा है
आँख का काजल।
      ---- शशि पुरवार

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 12 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी को दर्शाती बहुत सुंदर रचना

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  3. आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी को दर्शाती बहुत सुंदर रचना

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  4. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १२०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "तुम्हारे हवाले वतन - हज़ार दो सौवीं ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. utaar-chadhaw ka warnan karti ek saarthk kavitaa.

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