Monday, January 30, 2017

बेटी घर की शान


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माँ बाबा की लाडली, वह जीवन की शान 
ममता को होता सदा,  बेटी पर अभिमान। 

बेटी ही करती रही, घर- अँगना गुलजार
मन की शीतल चाँदनी, नैना तकते द्वार।

बेटी ही समझे सदा, अपनों की हर पीर 
दो कुनबों को जोड़ती, धरें ह्रदय में धीर     

प्रेम डोर अनमोल हैं, जलें ख़ुशी के दीप 
माता के आँचल पली, बेटी बनकर सीप। 
      --  शशि  पुरवार 

Monday, January 23, 2017

उमंगो की डोर



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पर्व खुशियों के मनाने का बहाना है 
डोर उमंगो की बढाओ गीत गाना है १ 

घुल रही है फिर हवा में गंध सौंधी सी 
मौज मस्ती स्वाद का उत्सव मनाना है २

तिल के लाडू, गजक- चिक्की,बाजरा, खिचड़ी 
माँ के हाथों की रची खुशबु  खजाना है ३

संग बच्चों के सभी बूढ़े मिले छत पर 
उम्र पीछे छोड़कर बचपन बुलाना है। ४ 

देखना हैं जोर कितना आज बाजू में 
लहकती नभ में पतंगे  काट लाना है ५ 

संग चाचा के खड़ी चाची कहे हँसकर
पेंच हमसे भी लड़ाओ आजमाना है। ६ 

गॉँव में सजने लगें संक्रांत के मेले 
संस्कृति का हाट से रिशता पुराना है ७ 

उड़ रही नभ में पतंगे, धर्म ना देखें  
फिर कहे शशि प्रेम का बंधन निभाना है ८ 
              -- शशि पुरवार 

Saturday, January 14, 2017

सुधियाँ बैचेन - प्रेम के रंग



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१ 
प्रीत पुरानी
यादें हैं हरजाई
छलके पानी। 
२ 
नेह के गीत 
आँखों की चौपाल में 
मुस्काती प्रीत 
३ 
सुधि बैचेन 
रसभीनी बतियाँ 
महकी  रैन 
४ 
जोगनी गंध 
फूलों की घाटी में 
शोध प्रबंध 
५ 
धूप चिरैया 
पत्थरों पर बैठी 
सोनचिरैया। 
६  
छलके जाम 
हैं यादें  हरजाई  
अक्षर -धाम  
७  
छूटे संवाद 
दीवारों पे लटके 
वाद -विवाद। 
८ 
मौन पैगाम 
खनके बाजूबंद 
प्रिय का नाम। 
९ 
काँच से छंद 
पत्थरों पे मिलते 
 बिसरे बंद 
१० 
सूखें हैं फूल 
किताबों में मिलती 
प्रेम की धूल। 
११
मन संग्राम 
बतरस की खेती
सिंदूरी शाम  
१२ 
वफ़ा का मोल 
सहमे तटबंध 
तीखे से बोल 
१३ 
प्रेम भूगोल 
सम्मोहित साँसे 
दुनिया गोल 
१४ 
आँसू , मुस्कान 
सतरंगी जिंदगी 
नहीं आसान। 
१५ 
 लिक्खें तूफान 
तकदीरों की बस्ती 
अपने नाम 
- शशि पुरवार 

Monday, January 2, 2017

नववर्ष का दिनमान

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नव तरंगो से भरा, नव 
वर्ष का दिनमान आया
फिर विगत को भूलकर 
मन में नया अरमान आया.
  
खिड़कियों से झाँकती, नव 
भोर की पहली किरण है 
और अलसाये नयन में 
स्वप्न में चंचल हिरण है। 
गंध पत्रों से मिलाने 
दिन, नया जजमान आया।
खेत में, खलियान में, जब 
प्रीत चलती है अढाई 
शोख नज़रों ने लजाकर 
आँख धरती  पर गढ़ाई।
गीत मंगल, गान गाओ 
हर्ष का उपमान आया.
  
नित समय के साथ बिखरे 
एक मुट्ठी आस  कोंपल 
द्वार अंतर्घट खुले हों
कर्म से,सज्जित मधुर पल.
सुप्त सुधियों को जगाने  
खुशबु का पवमान आया

झर गए पत्ते समय के
बन गया इतिहास जाजम 
द्वार पर आगम खड़ा है  
मंत्र गुंजित, छंद आजम
हौसलों के बाँध घुँघरू 
नव बरस अधिमान आया।  
फिर विगत को भूलकर 
मन में नया अरमान आया.
             ---शशि पुरवार 

आप सभी मित्रों व ब्लॉगर मित्रों को सपरिवार नव वर्ष की मंगलमयी शुभकामनाएँ।  नववर्ष ख़ुशियों और सकारात्मकता से सराबोर हो यही कामना है।  

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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