Thursday, February 8, 2018

बिन माँगी सलाह


बिन माँगी सलाह हमारे देश में कभी भी कहीं भी मिल जाती है। कौन से दो पैसे लगेंगे। वैसे भी लोगों को मुफ्तखोरी की आदत पड़ी हुई है।  मुफ्त की सलाह देने व लेने वालों की कमी नहीं है। कोई मक्खी मारने  बैठा है।  तो पौ बारह हो जातें है। 

जैसे बकरा हलाल करने का सुनहरा मौका मिल गया।  लो जी समय भी कट गया। दुःख - सुख भी बाँट दिए । सलाह पर अमल करना ना करना लोगों की मर्जी।  लोग सदा चिन्दियाँ 
उधेड़ने  के लिए तैयार है।  आखिर कुछ तो करना चाहिए। सबको उम्दा माल  दो टके में चाहिए 

होता है। कहीं भी सेल लगी भीड़ उमड़ने लगेगी। माल बेचने वाला भी खुश। लेने वाला भी खुश। 

वैसे भी हमारे  देश में सेल पढ़कर ही दिल बल्लियों सा उछलने लगता है। कमोवेश यही हाल बिन माँगी सलाह का भी है। हमारे एक परम मित्र है। बीमार हुए या कभी  कुछ हुआ तो डाक्टर को 
नहीं दिखाएंगे। झट इधर उधर दर्द का रोना रोयेंगे। मुफ्त के घरेलू नुक्से माँगेंगे।  चाहे व असर करे या ना करें। सहानुभूति और नुस्के अपना कितना असर दिखातें है वह व्यक्ति पर निर्भर करता है। 
   
        मिसेस शर्मा अक्सर परेशान रहती है।  कभी जी घबराना

पेट में दर्द या मन बैचेन रहना। अपना इलाज व स्वयं करती है। अडोसी - पडोसी से गप्पेबाजी और पंचायत से उनकी हर 

बीमारी उड़न छू हो जाती है। निगाहें किसी न किसी बकरे को 

हाकालाजी के लिए ढूँढती रहती  है। वह तो खुश है बेचारा कोई जबरन उनके हत्थे चढ़ जाए तो उसके बीमार होने की सम्भावना बढ़ सकती।  मुफ्त खोरी का भी अपना परम आनंद होता है। वैसे भी हमारे देश में  चलते फिरते सलाह देने वाले मिल जायेंगे। भले ही आप उनसे सलाह मांगे या ना मांगे। कुछ  लोगों की फितरत होती है आपको जबरजस्ती सलाह देंगे। 

        हाल ही हमरे  एक मित्र  ट्रैन  में सफर कर रहे थे।  पास की सीट पर  बैठे  एक सज्जन उनके पीछे हाथ क्या नहाधोकर  पीछे पढ़ गया।  भाईसाहब कैसे हो। भाईसाहब चेहरा देखकर लगता है बहुत काम करते हो। आपका परिवार अच्छा है। बेटी चेहरे से होशियार दिखती है।

 भाईसाहब ऐसा  करिए सुबह उठाकर ध्यान लगाया कीजिये। 

मन शांत रहेगा। ध्यान प्रभु शांति देता है। हमारे मित्रवर  को गुस्सा आ रहा था। जान न पहचान जबरन गले पड़ रहे हैं। 

फोन  पकड़ कर पतली गली से निकल लिए और वापिस आकर बर्थ पर सोने का जतन करने लगे। लेकिन उन सज्जन  शायद गुलबुलाहट हो रही थी। आखिर अपना प्रवचन किसे सुनाकर 

महान बनें।  तो जनाब ने हाथ मार कर हमारे मित्र को उठा 

दिया। भाईसाहब सुनिए।  यार हद हो गयी।  बात नहीं करनी है तब भी सुनो। फेविकोल  तरह महाशय चिपकने लगे। ऐसे सिरफिरे अक्सर मिलते रहतें है।  मित्रवर से कुछ कहते न बना।  बेचारा बकरा बिन कारण हलाल हो गया। 

             आजकल के बच्चों को फेसबुक मीडिया पर तस्वीरें  लोड करने की आदत है।  हर पल की खबर वहां न दो तो चैन नहीं मिलता। लेकिन साथ में  तारीफ के साथ मुफ्त की सलाह भी सुनो। हमारे एक परिचित थे। उनके रिश्तेदार की बेटी ने अपनी हवा में लहराती जुल्फों के साथ तस्वीर पोस्ट की। और जनाब ने बिन माँगी सलाह दे दी।  एकदम झल्ली लग रही हो। 

 दूसरा फोटो लगाओ।  ऐसा करो वैसा करो। हे राम। अब इन जनाब को सलाह देने के लिए किसने  कहा था।  जिसका जो मन होगा वह करेगा। चले आते हैं कैसे - कैसे लोग। यह तो 

सोशल मीडिया है जहाँ कुछ पसंद न आये तो ब्लॉक या डिलीट के ऑप्शन तैयार मिलते हैं। 

लेकिन हकीकत कड़वा करेला भी बन जाती है।  जो न निगल सकतें है न उगल सकतें है। दूसरों की क्या कहें। हम भी कभी लोगों को मुफ्त की सलाह देते रहते थे।  यह बात अलग है 

कि तजुर्बे ने हमें चुप रहना सीखा दिया।  बिन माँगी सलाह देना 

बहुतेरे लोगों की फितरत होती है। 

    आज सुबह सुबह हम बगीचे में शांति का आनंद ले रहे थे। 

 सीधे - साधे रास्तों पर भ्रमण कर रहे थे। कि अचानक पीठ पर पड़ी जोरदार धौल ने हमें ऊबड़खाबड़ रास्तों पर गिरने पर मजबूर कर दिया।  देखा तो धम्म से शर्मा जी टपक पड़े और सुबह की शांति का साइलेंसर बिगाड़ दिया।  

शर्मा -  क्या बात है मियां बहुत शांत खामोश लग रहे हो। 

  अरे कोई शांत रहना चाहता होगा तभी तो खामोश है। किन्तु जबरन होंठों पर ३२ इंच की मुस्कान चिपका बोले - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।


 यह बत्तीस इंच की मुस्कान राजनितिक होती है।  सोच समझ
कर अपना दॉँव खेल जाती है। किसी को उसके भेद ज्ञात नहीं होतें है। बिन माँगे भी बहुत कुछ दूसरों को दे जाती है। सामने 

वाला चीत्त और वह पट। आज हमारी मुसीबत में काम आ गयी। 

 शर्मा  क्यों। भाभी नहीं है। क्या गरमा गर्मी हो गयी। बच्चे सब 

कुशल है। आजकल दुनियां में क्या - क्या नहीं हो रहा है। 

सुबह की हमारी शांति भंग करने शर्मा जी ने अपनी रामायण व 

महाभारत का पिटारा खोल लिया। जाने क्यों लोगों को किसी के फटे में टाँग अड़ाने की आदत होती है। आज हम सुनने के 

मूड में नहीं थे। मजबूरन उन्हें चुप करना पड़ा। 

 " शर्मा जी तबियत नासाज लग रही है। आराम करना चाहतें है "। 

 " अजी  मियां ! तो आराम करो।  किसने मना किया है। हम तो 

तुम्हारा मन बहला रहे थे। भैया देखो जब तुम्हरा जन्म हुआ था। वह दिन भी तय था।  समय चक्र ऐसा ही है।  नियत समय पर 

मृत्यु भी तय है। हर कार्य नियत समय पर होतें है। जीवन के 

चार चक्र होते है।"

 "
बस बस शर्मा जी, बुरा न मानो। भाई हमें हमारे हाल पर छोड़ 

दो। आपकी इन बातों में हमें कोई रूचि नहीं है। "

   बिना उनकी तरफ देखें हमने अपनी तशरीफ़ बढ़ा ली। उफ़

कितना दम घोटू माहौल  था। 

 एक तो हम बैचेन ऊपर से शर्मा हमें मारने पर तुले हुए थे।

 आज समझ  में आया बिन माँगी सलाह देना और सुनना कैसा लगता है।  हम भी तो कभी लोगों को  बिन माँगी सलाह क्या पूरा उपदेश ही दे देते थे। कुछ लोग कान पकड़ते हैं। तो कुछ 

लोग कान के साथ पूरा सर ही पकड़ लेते हैं। 

           मानवी प्रकृति ऐसी ही है। कोई अपना दुखड़ा रोता है।  

तो हम भी उसके दुःख में अपना दुःख ढूंढने लगते हैं। ऐसा दर्शाते है जैसे हम भी उसी दौर से गुजरें रहें  हैं। अति प्रेम भी जहर का कार्य करता है। कमोवेश वही हाल हमारा भी हुआ।  अदद घर बनाना चाहतें थे। जब भी कोई घर लेना चाहा। प्रिय मित्रों ने बिन मांगी सलाह की कुंडली मार दी। यह बहुत मँहगा है।  

यहाँ मत लो।  वहां मत लो। उम्र पड़ाव पर आ गए लेकिन घर नहीं मिला।  हम भी बिन मांगी सलाह के प्रेम भरी कुंडलियों में घूमते रहे और अमल भी करते रहे। एक कुटिया भी नहीं बना 

सके।  नए नए लेखक बने तो सीखा - लिखा - आगे बढे। किन्तु आज भी बिन माँगी सलाह की मक्खियाँ भिनभिनाती रहती है।

          अब सोचते हैं  कि लेखन वेखन छोड़कर एक 

सलाह  केंद्र खोल लें।  जहाँ सदैव बिन माँगी सलाह देने वालों का और सुनने वालों का स्वागत व समागम हो जाये।  इस नेक कार्य से समाज भी तरक्की करेगा।  चिंताएं ख़त्म होगीं सुखद सुहाने दिन आएंगे। आज मूड ख़राब था। लेकिन आपका सदैव स्वागत रहेगा। आप को जब भी हमारी सलाह की जरुरत महसूस हो।  हमारी संस्था तत्पर रहेगी। इसके लिए आपको कोई फ़ीस नहीं देनी है। आपका अनमोल समय हमारे लिए भी अनमोल होगा।  आप कभी भी संपर्क  कर सकतें है। हमारा पता है -  मुफ्त  सलाह केंद्र। हसोड़ वाली गली। व्यंग्यपुरी।  

शशि पुरवार 



8 comments:

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  2. बहुत सुंदर पोस्ट

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-02-2018) को "चोरों से कैसे करें, अपना यहाँ बचाव" (चर्चा अंक-2875) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, वलेंटाइन डे पर वन विभाग की अपील “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. हाँ ,ऐसे भी लेग होते हैं .

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  6. सच और सटीक
    बहुत अच्छी प्रस्तुति
    सादर

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  7. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १२ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  8. बिल्कुल सही लिखा है आपने। अनजान आदमी तो सलाह देकर और परेशान करते हैं।

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