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Sunday, March 6, 2022

महक उठी अँगनाई - shashi purwar







चम्पा चटकी इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई
उषाकाल नित
धूप तिहारे चम्पा को सहलाए
पवन फागुनी लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ

निंदिया आई अखियों में और
सपने भरे लुनाई .

श्वेत चाँद सी
पुष्पित चम्पा कल्पवृक्ष सी लागे
शैशव चलता ठुमक ठुमक कर
दिन तितली से भागे

नेह अरक में डूबी पैंजन -
बजे खूब शहनाई.

-शशि पुरवार

Friday, March 4, 2022

छैल छबीली फागुनी - shashi purwar




छैल छबीली फागुनी, मन मयूर मकरंद
ढोल, मँजीरे, दादरा, बजे ह्रदय में छंद। 1

मौसम ने पाती लिखी, उड़ा गुलाबी रंग
पात पात फागुन धरे, उत्सव वाले चंग। 2

फगुनाहट से भर गई, मस्ती भरी उमंग
रोला ठुमरी दादरा, लगे थिरकने अंग। 3

फागुन आयो री सखी, फूलों उडी सुगंध
बौराया मनवा हँसे, नेह सिक्त अनुबंध। 4

मौसम में केसर घुला, मदमाता अनुराग
मस्ती के दिन चार है, फागुन गाये फाग। 5

फागुन में ऐसा लगे, जैसे बरसी आग
अंग अंग शीतल करें, खुशबु वाला बाग़.6

फागुन लेकर आ गया, रंगो की सौगात
रंग बिरंगी वाटिका, भँवरों की बारात7

हरी भरी सी वाटिका, मन चातक हर्षाय
कोयल कूके पेड़ पर, आम सरस ललचाय। 8

सूरज भी चटका रहा, गुलमोहर में आग
भवरों को होने लगा, फूलों से अनुराग 1०

चटक नशीले मन भरे, गुलमोहर में रंग
घने वृक्ष की छाँव में, मनवा मस्त मलंग 1१

धरती भी तपने लगी, अम्बर बरसी आग
आँखों को शीतल लगे, फूलों वाला बाग़ 1२
शशि पुरवार

Monday, January 30, 2017

बेटी घर की शान


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माँ बाबा की लाडली, वह जीवन की शान 
ममता को होता सदा,  बेटी पर अभिमान। 

बेटी ही करती रही, घर- अँगना गुलजार
मन की शीतल चाँदनी, नैना तकते द्वार।

बेटी ही समझे सदा, अपनों की हर पीर 
दो कुनबों को जोड़ती, धरें ह्रदय में धीर     

प्रेम डोर अनमोल हैं, जलें ख़ुशी के दीप 
माता के आँचल पली, बेटी बनकर सीप। 
      --  शशि  पुरवार 

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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