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Thursday, March 9, 2023

मैं नीर भरी दुख की बदली!

महादेवी वर्मा 

मैं नीर भरी दुख की बदली!


स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा

क्रन्दन में आहत विश्व हँसा

नयनों में दीपक से जलते,

पलकों में निर्झारिणी मचली!


मेरा पग-पग संगीत भरा

श्वासों से स्वप्न-पराग झरा

नभ के नव रंग बुनते दुकूल

छाया में मलय-बयार पली।


मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल

चिन्ता का भार बनी अविरल

रज-कण पर जल-कण हो बरसी,

नव जीवन-अंकुर बन निकली!


पथ को न मलिन करता आना

पथ-चिह्न न दे जाता जाना;

सुधि मेरे आँगन की जग में

सुख की सिहरन हो अन्त खिली!


विस्तृत नभ का कोई कोना

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना, इतिहास यही-

उमड़ी कल थी, मिट आज चली!


Monday, January 30, 2017

बेटी घर की शान


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माँ बाबा की लाडली, वह जीवन की शान 
ममता को होता सदा,  बेटी पर अभिमान। 

बेटी ही करती रही, घर- अँगना गुलजार
मन की शीतल चाँदनी, नैना तकते द्वार।

बेटी ही समझे सदा, अपनों की हर पीर 
दो कुनबों को जोड़ती, धरें ह्रदय में धीर     

प्रेम डोर अनमोल हैं, जलें ख़ुशी के दीप 
माता के आँचल पली, बेटी बनकर सीप। 
      --  शशि  पुरवार 

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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