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Tuesday, August 24, 2021

झील में चंदा

  1

नदियातीरे

झील में उतरता

हौले से चंदा

2

बहती नदी

आँचल में समेटे

जीवन सदी

2

सुख और दुख

नदी के दो किनारे

खुली किताब

3

सुख की धारा

रीते पन्नों पर  भी

पवन लिखे

4

दुख की धारा

अंकित पन्नों पर

जल  में डूबी

5

बहती नदी

पथरीली हैं राहें

तोड़े पत्थर

6

वो पनघट

पनिहारिन बैठी

यमुना तट

7

नदी -तरंगे

डुबकियाँ लगाती 

काग़ज़ी नाव

8

लिखें तूफ़ान

तक़दीरों की बस्ती

नदिया धाम

9

बहता पानी

विचारों की रवानी

नदिया रानी

-0-

 शशि पुरवार 




Thursday, July 18, 2019

माँ --- तांका

1
स्नेहिल मन
सहनशीलता है
खास गहना
सवांरता जीवन
माँ के अनेक रूप .
...

2
माँ  प्रिय सखी
राहें हुई आसान
सुखी जीवन
परिवार के लिए
त्याग दिए सपने .

3
माता के रूप
सोलह है शृंगार
नवरात्री में
गरबे की बहार
 झरता माँ का प्यार .
-----शशि पुरवार

Saturday, January 14, 2017

सुधियाँ बैचेन - प्रेम के रंग



Related image


१ 
प्रीत पुरानी
यादें हैं हरजाई
छलके पानी। 
२ 
नेह के गीत 
आँखों की चौपाल में 
मुस्काती प्रीत 
३ 
सुधि बैचेन 
रसभीनी बतियाँ 
महकी  रैन 
४ 
जोगनी गंध 
फूलों की घाटी में 
शोध प्रबंध 
५ 
धूप चिरैया 
पत्थरों पर बैठी 
सोनचिरैया। 
६  
छलके जाम 
हैं यादें  हरजाई  
अक्षर -धाम  
७  
छूटे संवाद 
दीवारों पे लटके 
वाद -विवाद। 
८ 
मौन पैगाम 
खनके बाजूबंद 
प्रिय का नाम। 
९ 
काँच से छंद 
पत्थरों पे मिलते 
 बिसरे बंद 
१० 
सूखें हैं फूल 
किताबों में मिलती 
प्रेम की धूल। 
११
मन संग्राम 
बतरस की खेती
सिंदूरी शाम  
१२ 
वफ़ा का मोल 
सहमे तटबंध 
तीखे से बोल 
१३ 
प्रेम भूगोल 
सम्मोहित साँसे 
दुनिया गोल 
१४ 
आँसू , मुस्कान 
सतरंगी जिंदगी 
नहीं आसान। 
१५ 
 लिक्खें तूफान 
तकदीरों की बस्ती 
अपने नाम 
- शशि पुरवार 

Wednesday, November 16, 2016

प्रीत पुरानी

 Image result for प्रेम

१ 
प्रीत पुरानी
यादें हैं हरजाई 
छलके पानी। 
२ 
नेह के गीत 
आँखों की चौपाल में 
मुस्काती प्रीत 
३ 
सुधि बैचेन 
रसभीनी बतियाँ 
महकी  रैन 
४ 
जोगनी गंध 
फूलों की घाटी में 
शोध प्रबंध 
५ 
धूप चिरैया 
पत्थरों पर बैठी 
सोनचिरैया 
.-----शशि पुरवार  

Friday, July 15, 2016

सुधि गलियाँ





 स्वप्न साकार
मुस्कुराती है राहें 
दरिया पार। 
२ 
धूप सुहानी 
दबे पॉँव लिखती 
छन्द रूमानी। 
३ 
लाडो सयानी 
जोबन दहलीज 
कच्चा है पानी।  
धूप बातूनी 
पोर पोर उन्माद 
आँखें क्यूँ सूनी ?
५ 
माँ की चिंता 
लाडो है परदेश 
पाती, ममता। 
६ 
दुःखो को भूले 
आशा का मधुबन 
उमंगे झूले। 
७ 
प्रीत पुरानी 
सूखे गुलाब बाँचे 
प्रेम कहानी। 
८ 
छेड़ो न तार 
रचती सरगम 
 हिय झंकार। 
९ 
प्रेम कलियाँ 
बारिश में भीगी है 
सुधि गलियाँ। 
१० 
 आई जबानी  
छूटा है बचपन 
बद गुमानी। 
 -- शशि पुरवार 



Thursday, January 28, 2016

हाइकु क्या है.

हाइकु –  गागर में सागर के समान 
हाइकु क्या है
हाइकु मूलतः जापान की लोकप्रिय विधा है. जापानी  संतो द्वारा लिखी जाने वाली लोकप्रिय काव्य  विधा, जिसे जापानी संत बाशो द्वारा विश्व में प्रतिष्ठित किया गया था. हाइकु विश्व की सबसे छोटी लघु कविता कही जाती है. एक  ऐसा  लघु पुष्प जिसकी महकअन्तःस वातावरण को सुगंधित करती है. हाइकु अपने आप में सम्पूर्ण है. हाइकु कविता  ५ + ७ + ५ = १७ वर्ण के ढाँचे  में लिखी जाती है. कवि बाशो के कथनानुसार – जिसने ५ हाइकु लिखें है वह कवि, जिसने १० हाइकु लिखें है वह महाकवि है
  ५ -७-५ यह तीन पक्तियों में लम्बी कविता का निचोड़ होता है, सहजता, सरलता, ग्राहिता, संस्कार हाइकु के सौन्दर्य, उसकी आत्मा है. सपाट बयानी हाइकु में हरगिज मान्य नहीं है. गद्य की एक पंक्ति को तीन पंक्तियों में तोड़ कर लिख देने से हाइकु कविता नहीं बनती है, हाइकु देखने में जितने सरल प्रतीत होतें है वास्तव में उतने सरल नहीं है, किन्तु मुश्किल भी नहीं है, हाइकु का सृजन एक काव्य साधना है . सच्चा हाइकुकार वह है जो हाइकु के माध्यम से गहन कथ्य को बिम्ब और नवीनता द्वारा सफलता पूर्वक संप्रेषित करता है. काव्य साधना के बिना हाइकु लिखना असंभव है. हाइकु जितने बार भी पढ़े जायें विचारों की गहन परतों को खोलते है, हाइकु में फूलों सी सुगंध व  नाजुकता होती है. हाइकु का मूल आधार प्रकृति है, इसीलिए कुछ विद्वान इसे प्रकृति काव्य भी कहतें हैं. साहित्य ग्रहण करने के गुणधर्म के कारण स्वयं को परिवेश ढाल लेता है. साहित्य काव्य में समयानुसार परिवर्तन होते रहतें है. हाइकु ने भी यह बदलाव देखे गयें है. अब हाइकु सिर्फ प्रकृति परक नहीं है अपितु सामाजिक विसंगतियां, संवेदनाओंके मध्य सेतु बनकर जुड़ें हैं.
   हाइकु विश्व की सभी समृद्ध भाषा में रचे जाने लगे हैं . भारत में सर्वप्रथम गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर ने १९१६ में अपनी जापानी यात्रा के बाद लिखे  जापानी जात्री नमक सफरनामे में बंगाली भाषा में  हाइकु की जानकारी प्रदान की थी . भारत में हाइकु काव्य को हिंदी साहित्य ने बाहें फैला कर स्वीकार किया है.आज हाइकु विधा बहुत समृद्ध हो चुकी है, हिंदी के पांचवे दशक में हाइकु रचना के कुछ सन्दर्भ मौजूद हैं किन्तु अज्ञेय  द्वारा रचित  अरी ओ करुणा प्रभाकर “ ( प्र. प्र. १९५९  को विधिवत मान्यता मिली है जिसमे जापानी हाइकु के कुछ भावानुवाद / छायावाद एवं कुछ लघु कविताएँ शामिल है.
   हिंदी हाइकु का महत्वपूर्ण  अध्याय डा. सत्यभूषण वर्मा के हाइकु अभियान के बाद प्रारंभ हुआ है. डा. वर्मा जे. एन यू . दिल्ली में जापानी भाषा के विभागाध्यक्ष थे. जापानी हाइकु और हिंदी कविता विषय पर शोध के साथ साथ आपने १९७८ में  भारतीय हाइकु क्लब की स्थापना की और अक अंतर्देशीय लघु  हाइकु पत्र  का प्रकाशन भी किया . आज हाइकु विधा बेहद लोकप्रिय हो चुकी है.
शिल्प की दृष्टी से हाइकु सिर्फ ५- ७ – ५ खांचे में लिखे हुए सिर्फ वर्ण नहीं है. कथ्य में कसावट, गहनता, अर्थ, बिम्ब सम्पूर्णता स्पष्ट होना आवश्यक है. वस्तु और शिल्प द्वारा हाइकु की गरिमा और शालीनता बनाये रखना हाइकुकार का प्रथम धर्म है. हाइकु के नाम पर फूहड़ता प्रस्तुत नहीं होनी चाहिए.
हाइकु तीनों पंक्तियाँ पृथक होकर भी सम्पूर्ण कविता का सार संप्रेषित करती हैं. हाइकु काव्य की सामयिकता स्वयं सिद्ध है. अब हाइकु हिंदी में स्थायी रूप से स्थापित होने की ओर अग्रसर है, कई हाइकुकारों के हाइकु काव्य संकलन सराहे गए हैं, हाइकु अतुकांत और तुकांत दोनों की प्रकार से लिखे जा रहें हैं. किन्तु कथ्य में कसावट और काव्य की गरिमा भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं. कई  हाइकुकार कभी पहली २ पंक्ति या अंतिम दो पंक्ति यह तो कभी पहली या अंतिम पंक्ति में तुकांत हाइकु का निर्माण करतें है.हाइकु गागर में सागर के समान है.हाइकु प्रकृति की अंतर अनुभूतियों को संप्रेषित करने में सक्षम है. काव्यात्मकता और लयात्मकता हाइकु के श्रृंगार हैं.
 हाइकु में प्रकृति के सौन्दर्य  के विविध रंग हाइकुकारों द्वारा उकेरे गयें है, कहीं पलाश दूल्हा बना है, कहीं धूप  कापी जांचती है, कहीं घाटियाँ हँसी है, हाइकु के नन्हे नन्हे  चमकीले तारें  मन के अम्बर पर सदैव टिमटिमाते रहतें हैं . प्रकृति की गोद में इतनी सुन्दरता है कि अपलक उसके सौन्दर्य को  निराहते रहो, लिखते रहो, फिर भी अंत नहीं होगा. कवियों द्वारा प्रकृति के सौदर्य अनुपम छटा उनकी कल्पना शक्ति के द्वारा ही संभव है.
प्रकृति के अलग अलग  रंगों की कुछ बानगी देखिये ---
  नभ गुंजाती/ नीड़ – गिरे शिशु पे /मंडराती माँ --- डा. भगवती शरण अग्रवाल
रजनी गंधा / झाड़ में समेटे हैं / हजारों तारे – डा. सुधा गुप्ता
घाटियाँ हँसी / अल्हड किशोरी – सी / चुनर रंगी – रामेश्वर काम्बोज  हिमांशु 
सौम्य सजीले / दुल्हे का रूप धरे / आये पलाश – शशि पुरवार
ले अंगडाई / बीजों से निकलते / नवपत्रक – शशि पुरवार
धूप जांचती / र्रुतुओं की शाला में / जाड़े की काँपी – पूर्णिमा वर्मन
सूर्य के पांव / चूमकर सो गए / गॉंव के गॉंव –   जगदीश व्योम
 हाइकु में प्रकृति के रंग के अलावा हाइकुकारों ने फूल- पत्ते , पेड़ – पौधे , पशु –पक्षी ,भ्रमर, अम्बर – पृथ्वी, मानवीय संवेदना, प्रेम , पीर, रिश्ते – नाते, राग – रंग, सपर्श  और भी न जाने कितने विषयों पर हाइकु का जन्म हुआ है. वेदना- वियोग की पीड़ा के भी प्रकार होतें हैं, कभी पीड़ा असहनीय होती है तो कभी उस पीड़ा में पुनर्मिलन की आशा भी सुकून प्रदान करती है. प्रेम करने वाले कई अनुभूतियों से दो चार होतें हैं. विचारों के मंथन के बाद ही हाइकु अमृत बनकर बाहर निकलता है.  वियोग पुरुष हो या पकृति दोनों के लिए पीड़ादायक होता है. इस सन्दर्भ में कुछ हाइकु के कुछ उदारहण प्रासंगिक होंगे --
पीर जो जन्मी / बबूल सी चुभती / स्वयं की साँसे – शशि पुरवार
सुबक पड़ी / कैसी थो वो निष्ठुर / विदा की घडी – भावना कुँवर
ठहरी नहीं / बरसती रही थी / आँखें रेत में – डा. मिथिलेश दीक्षित
आज भी ताजा / यौवन के फुलों में / यादों की गंध – डा. भगवतशरण अग्रवाल
ठूंठ बनकर/ सन्नाटे भी कहतें/ पास न आओ – शशि पुरवार

इक्कीसवी सदी के अंत में हाइकुकारों की  ऐसी जमात भी आई थी जिसने बाशो के कथन कोई भी विषय हाइकु के लिए उपयुक्त है “ की गंभीरता को न समझकर .. मनमाने ढंग अर्थ निकालकर हाइकु लिखने आरंभ कर दिए थे , अर्थ का अनर्थ हो रहा था, हाइकु काव्य सौन्दर्य से दूर जाकर जनचेतना के नाम पर गध्य से जुड़ने लगा था. किन्तु इस दशक में हाइकुकारों द्वारा साधना करके उम्दा हाइकु रचे गयें हैं.
नए नए बिम्ब, गेयता, तुकांतता गहन कथ्य के साथ उम्दा हाइकु कहीं कहीं आशा की मशाल भी बना है, कठिनाई में भी आशा की किरण फूटती है हाइकुकारों का नया दल भविष्य के लिए आश्वस्त करता है . वर्तमान में अनेक पत्र पत्रिकाएं हाइकु के महत्व को स्वीकार कर चुकीं है. कई पत्रिकाएं हाइकु विशेषांक निकाल चुकी है, कई पत्रिकाएं हाइकु को नियमित स्थान भी प्रदान करती हैं . हिंदी चेतना ( अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ) ,वीणा (  इंदौर, म.प्र.), उदंती ( रायपुर, छ.ग.), अविराम साहित्यिकी( ट्रे.
कड़ी धूप में / मशाल लिए खड़ा / तनहा पलाषा.  
                                                                     

सन्दर्भ - सरस्वती सुमन पत्रिका - अन्य पत्रिकाएं 

Sunday, July 5, 2015

जिंदगी चित्र

नमस्कार मित्रों , आज आपके लिए चित्र मय हाइकु -- शशि पुरवार

Monday, April 27, 2015

प्रेम कहानी

 
 
 
१ 
दर्द की दास्ताँ 
कह गयी कहानी 
प्रेम रूमानी 
२ 
एक ही  धुन 
भरनी  है गागर 
फूल सगुन 
३ 
प्रेम  कहानी 
मुहब्बत ऐ  ताज 
पीर  जुबानी
४ 
रूह  में  बसी 
जवां है मोहब्बत  
खामोश  हंसी  
५ 
धरा  की  गोद  
श्वेत ताजमहल 
प्रेम  का  स्त्रोत 
६ 
ख़ामोश  प्रेम 
दफ़न  है  दास्ताँ 
ताज की  रूह
७ 
पाक दामन  
अप्रतिम  सौन्दर्य 
प्रेम  पावन  
८ 
अमर  कृति
हुस्न ऐ  मोहब्बत 
प्रेम  सम्प्रति
९ 
 ताजमहल
अनगिन रहस्य 
यादें दफ़न 
 - 
   शशि।.

Tuesday, April 21, 2015

हाइकु -- सुख की ठाँव




सुख की ठाँव
जीवन के दो रंग
धूप औ छाँव

भ्रष्ट अमीरी
डोल गया ईमान
तंग गरीबी

शब्दो  का मोल
बदली परिभाषा
थोथे  है  बोल

मन के काले
धूर्तता आवरण
सफेदपोश
--- शशि पुरवार

Monday, April 20, 2015

कागा -- मन के भोले

 


एक ही धुन
भरनी है गागर
फूल सगुन

दर्द की नदी
कहानी लिख रही
ये नई सदी
 ३ 
तन के काले
मूक सक्षम पक्षी
मुंडेर संभाले

कर्कश बोली
संकट पहँचाने
कागा की टोली

मूक है प्राणी
कौवा अभिमानी
कोई न सानी।

भोली सूरत
क्यों कागा बदनाम
छलिया नाम

कोयल साथी
धर्म कर्म के नाम
कागा खैराती
--- शशि पुरवार
आपके समक्ष एकसत्य घटना साझा करना चाहती हूँ कोई माने या ना माने एक सत्य को मैंने यह सत्य करीब से जिया है , इस निरीह प्राणी को स्नेह समझ आता है बोली समझ आती है। एक दो पोस्टिंग पर मैंने यह अनुभव लिया है , कौवा रोज सुबह रसोईघर की खिड़की पर बैठकर वही भोजन मेरे हाथों से खाता था जो बनाती थी , धीरे धीरे उसके भाव समझने की कोशिश की तब यह आश्चर्य था उसे जो भी चाहिए उस वस्तु पर हाथ रखो तो वही खाने के लिए कॉँव कॉँव करता था , जो नहीं चाहिए उस पर से नजर हटा दी । कोई और दे तो नहीं खाता था घर वाले हैरान थे वह मेरी बात समझ रहाहै जब वह शहर छोड़ा तब २ दिन कागा ने कुछ नहीं खाया , ट्रक में जैसे ही सामान भर गया, मैंने किसी का रोदन सुना , कोई आसपास नहीं दिखा , तब एक पेड़ पर वही कौवा बैठा था , उसके गले की हलचल और आवाज देखकर मै हैरान थी कि पक्षी रो रहा है। वहां खड़े लोगों ने यह आश्चर्य देखा है। सोचा जाते जाते पानी पिला देती हूँ पानी भर कर रखा  वहउतरा किन्तु उसने पानी नहीं पिया। यह हृदय को छू गयी सत्य घटना है जिसने कागा के लिए मेरी सोच बदल दी। स्नेह सर्वोपरि है.

  मेरे लिएयह रोमांचकारी था ,एक किस्सा और बताती हों मै जब मावा बनाती थी तब वह मावा विशेष रूप से पसंद करता था जब तक नहीं दो कॉँव कॉँव बंद ही नहीं होती थी। यह हमें ज्ञात है कि पशुपक्षी केलिए घी तेल हानिकारक होते हैं इसीलिए ऊँगली में जरा सा मावा रखकर खिड़की से बाहर हाथ रखती थी और वह इधर उधर ऐसे देखता था कि कोई देख तो नहींरहा और चुपचाप हाथ पर रखा मावा नजाकत से चोंच से उठाकर खाता था , , यहमूक प्राणी कोई भी हों स्नेह समझतें है और वफादारी भी निभातें है। ऐसे रोमांच जीवनपर्यन्त यादगार होतें है , मै हरजगह किसी न किसी मूक प्राणी से रिश्त बनाने का प्रयास जरूर करतीं हूँ।

Thursday, March 5, 2015

भंग दिखाए रंग - होली है




होरी आई री सखी ,दिनभर करे धमाल
हरा गुलाबी पीत रंग , बरसे नेह गुलाल .1

द्वारे  पे गोरी खड़ी ,  पिया  गए परदेश
नेह सिक्त  पाती लिखी ,आओ पिया स्वदेश2

भेद भाव से दूर ये  ,होरी का त्यौहार
डूबा जोशो जश्न में , यह सारा संसार 3

होरी के  हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो  सामने ,फेको उस पर रंग .4

अम्मा से बाबू कहे , खेलें  होरी  आज
कहा तुनक कर उम्र का , कुछ तो करो लिहाज .5

होरी की अठखेलियाँ , पकवानों में भंग
बिना बात किलकारियाँ , भंग दिखाए रंग 6


-----------------------------------------------------
 कुण्डलियाँ
होली के हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो सामने,  उस पर फेको  रंग
फेको उस पर रंग , नीले पीले गुलाबी
घेरो  सब चहुँ ओर, यह टोली है नबाबी
मस्ती का उन्माद , संग मित्रों के ठिठोली
जोश जश्न उल्लास , खेलो प्रेम की होली .

हाइकु -


होली है प्यारी
रंग भरी पिचकारी 
सखियाँ न्यारी


 मारे गुब्बारे
लाल पीले गुलाबी
रंग लगा रे

प्रेम की होली
दूर बैठी सखियाँ
मस्तानी टोली

होली की मस्ती
प्रेम का  है खजाना
दिलों की बस्ती


चढ़ा के भंग
मौजमस्ती संग
बजाओ चंग

    -----  शशि पुरवार
आप सभी ब्लॉगर मित्रों को होली की हार्दिक रंग भरी शुभकामनाएँ

Tuesday, January 13, 2015

नदिया तीरे


१ 
नया विहान
शब्दों का संसार
रचें महान

झुकता नहीं
आएं लाख तूफ़ान
डिगता नहीं

मन चंचल
मचलता मौसम
सर्द है रात

नदिया तीरे
झील में उतरता
हौले से चंदा

बिखरे मोती
धरती के अंक में
फूलों की गंध

एक शाम
अटूट है बंधन
दोस्ती के नाम

साथ तुम्हारा
महका तन मन
प्यार सहारा
 शशि पुरवार

Thursday, January 1, 2015

उम्मीदें हैं कुछ खास







 
नववर्ष के हाइकु

नव  उल्लास
उम्मींदों का सूरज
मीठी सुवास
धूप सोनल
गुजरा हुआ कल
स्वर्णिम पल
नवउल्लास
खिड़की से झाँकता
 वेद प्रकाश
 स्वर्ण किरण
रोम रोम निखरे
धरा दुल्हन
गुजरा वक़्त
जीवन की परीक्षा
ना लागे सख्त
-- शशि पुरवार


नवगीत -

नये वर्ष से है ,हम सबको
उम्मीदें  कुछ खास

आँगन के बूढ़े बरगद की
झुकी हुई  डाली
मौसम घर का बदल गया, फिर
विवश हुआ  माली
ठिठुर रहे है सर्द हवा में
भीगे से अहसास

दरक गये दरवाजे घर के
आँधी थी आयी
तिनका तिनका उजड़ गया फिर
बेसुध है  माई
जतन कर रही बूढी साँसे
आये कोई पास

चूँ चूँ करती नन्हीं  चिड़िया
समझ नहीं पाये
दुनियाँ उसकी बदल गयी है
कौन उसे  बताये
ऊँची ऊँची अटारियों पे
सूनेपन का वास

नए वर्ष का देख आगवन
पंछी  गाते गीत
बागों की कलियाँ भी झूमे
भ्रमर का संगीत
नयी ताजगी ,नयी उमंगें
मन में  है उल्लास

नये वर्ष से है हम सबको
उम्मीदें कुछ खास।


शशि पुरवार 

समस्त ब्लॉगर परिवार और स्नेहिल मित्रों को सपरिवार नववर्ष   की हार्दिक शुभकामनाएँ
अनुभूति पत्रिका में प्रकाशित गीत -

Friday, December 19, 2014

चीखती भोर




चीखती भोर
दर्दनाक मंजर
भीगे हैं कोर


तांडव कृत्य
मरती संवेदना
बर्बर नृत्य


आतंकी मार
छिन गया जीवन
नरसंहार


मासूम साँसें
भयावह मंजर
बिछती लाशें


मसला गया 
निरीह बालपन 
व्याकुल मन
 फूटी   रुलाई
पथराई  सी आँखें
दरकी  धरा


१६ -  १७ दिसम्बर कभी ना भूलने वाला दिन है ,  पहले निर्भया  फिर बच्चों की चीखें ---  क्या  मानवीय संवेदनाएं   मरती जा रहीं है।  आतंक का यह कोहरा कब छटेगा।
    मौन  श्रद्धांजलि

Monday, November 10, 2014

कच्चे मकान




सघन वन
व्योम तले अँधेरा
क्षीण किरण।

कच्चे मकान
खुशहाल जीवन
गॉंव, पोखर

सुख की ठॉंव
हरियाली जीवन
म्हारा गॉंव

चूल्हा औ चौका
घर घर से उड़ती
सौंधी खुशबु
  ५
वो पनघट
पनिहारिन बैठी
यमुना तट

खप्पर छत
गोबर से लीपती
अपना मठ
७ 
ठहर गया
आदिवासी जीवन
टूटे किनारे .

बिखरे पत्ते
तूफानों से लड़ते
जर्जर तन

दीप्त  किरण
अमावस की रात
लौ से हारी
१०
अल्लहड़ पन
डुबकियाँ लगाती
कागजी नाव

११
शीतल छाँव
आँगन का बरगद
पापा  का गाँव

१ २
अकेलापन
तपता रेगिस्तान
व्याकुल मन
१३ 
गर्म हवाएँ
जलबिन तड़पें
मन, मछली

Monday, September 15, 2014

हिंदी दिवस




हिंद की रोली
भारत की आवाज
हिंदी है बोली .

भाषा है  न्यारी
सर्व गुणो की  खान
हिंदी है प्यारी
३ 
गौरवशाली 
भाषाओ का सम्मान
है खुशहाली

है अभिमान
हिंदुस्तान की शान
हिंदी की  आन।

कवि को भाये
कविता का सोपान
हिन्दी बढ़ाये   

वेदों की गाथा
देवों  का वरदान
संस्कृति ,माथा।
सरल पान 
संस्कृति का सम्मान
हिंदी का  गान

सर्व भाषाएँ
हिंदी में समाहित
जन आशाएं
चन्दन रोली
आँगन की तुलसी
हिंदी रंगोली

१०

मन की भोली
सरल औ सुबोध
शब्दो की टोली
११

सुरीला गान
असीमित साहित्य 
हिंदी सज्ञान

१२
बहती धारा
वन्देमातरम है
हिन्द का नारा
१३
अतुलनीय 
राजभाषा सम्मान
है वन्दनीय।
१४
जोश उमंग
जन जन में बसी
राष्ट्र तरंग
१५
ये अभिलाषा
राष्ट्र की पहचान
विश्व की आशा .
१६
यही चाहत
सर्वमान्य हो हिंदी
विश्व की भाषा .

हम  तो रोज ही हिंदी दिवस मनाते है हिंदी  दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ -- -शशि पुरवार

Wednesday, August 20, 2014

विषैला हमराही

ताँका --

स्वार्थ में अंधे
नोच रहे बोटियाँ
धूर्त सियार
मुख से टपकती
छलिया निशानियाँ

स्वार्थ का चश्मा
सूट बूट पहने
आया है प्राणी
चाटुकार ललना
नित नयी कहानी।
भगवा वस्त्र
हाथों में कमंडल
शीश पे शिखा
अंधी श्रद्धा से लूटे
बिखरी काली निशा।

सेदोका -

१ 
धवल वस्त्र
पहन इठलाये
मन के कारे जीव
मुख में पान
खिसियानी हंसी
अनृत कहे जीभ।  
भोले चहरे
कातिलाना अंदाज
शब्द  गुड की डली
मौकापरस्त
डसते  है जीवन
इनसे दूरी भली।
३ 
साँचा   है साथी 
हर पल का साथ
कोई बूझ न सका
दिल के राज
विषैला हमराही 
आस्तीन का है साँप।
 -- शशि पुरवार

नमस्कार मित्रो कुछ व्यक्तिगत कारणों से नियमित पोस्ट नहीं कर सकी थी परन्तु अब से नियमित प्रति सोमवार सपने पर प्रकाशन होगा , आप अपना स्नेह और अमूल्य टिप्पणी से हमें कृतार्ध करें।  आप सबकी शिकायत भी अब हम दूर कर देंगे , आपसे मिलेंगे आपके ब्लॉग पर -- शुभ मंगलम - शशि पुरवार

Monday, March 24, 2014

मुस्कुराती कलियाँ--

1
शूल बेरंग
मुस्कुराती कलियाँ
विजय रंग
2
बीहड़ रास्ते
हिम्मत न हारना
जीने के वास्ते।
3
तीखी हवाएँ
नश्तर सी चुभती
शोर मचाएं
4
तुम्हारा साथ
शीतल है चांदनी
जानकीनाथ  …

सारस आये
बनावटी चमक
जग को भाये
6
बहती नदी
पथरीला है पथ
तोड़े पत्थर
7
खिले सुमन
बगुला क्या जाने
नाजुक मन
8
मौन संवाद
कह गए कहानी
नया अंदाज.
9
मासूम हंसी
ह्रदय की  सादगी
जी का जंजाल
 10 
स्वरों में तल्खी
हिय में सुलगते
भीगे जज्बात।
 11
सुख की ठाँव
जीवन के दो रंग
धूप औ छाँव
12
भ्रष्ट अमीरी
डोल गया ईमान
तंग गरीबी
13
शब्दो  का मोल
बदली परिभाषा
थोथे  है  बोल
14
मन के काले
धूर्तता आवरण
सफेदपोश

-- शशि पुरवार

Wednesday, February 5, 2014

बासंती रंग



1
सपने पाखी
इन्द्रधनुषी रंग
होरी के संग
2
रंग अबीर
फिजा में लहराते
प्रेम के रंग
3
सपने हँसे
उड़ चले गगन
बासंती रंग
4
दहके टेसू
बौराई अमराई
फागुन डोले
5
अनुरक्त मन
गीत फागुनी गाये
रंगों की धुन .

23.03.13
शशि पुरवार
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सदोका ----
1हवा  उडाती
अमराई की जुल्फे
टेसू हुए आवारा
हिय का पंछी 
उड़ने को बेताब
रंगों का समां प्यारा .

2
  डोले मनवा
 ये  पागल जियरा
 गीत गाये बसंती
 हर डाली  पे
खिल गए पलाश
भीगी ऋतू सुगंधी .

3
 झूमे बगिया
दहके है  पलाश
भौरों को ललचाये
कोयल कूके
कुंज गलियन में
पाहुन क्यूँ न आये .

4
झूम रहे है
हर गुलशन में
नए नवेले फूल
हँस रही है
डोलती पुरवाई
रंगों की उड़े धूल .

5
 लचकी डाल
यह कैसा  कमाल
मधुऋतू है आई
 सुर्ख पलाश
मदमाए फागुन
कैरी खूब मुस्काई .

6
जोश औ जश्न
मन  में  है उमंग 
गीत होरी  के गाओ
भूलो मलाल
उमंगो का त्यौहार
झूमो जश्न मनाओ .
24.03.13
शशि पुरवार

Tuesday, December 17, 2013

हाइकु -- नवपत्रक



मृदा ही सींचे
पल्लवित ये बीज
मेरा ही अंश।


माटी को थामे
पवन में झूमती
है  कोमलांगी।
 .
ले अंगडाई
बीजों से निकलते
नवपत्रक .
प्रफुल्लित है
ये नन्हे प्यारे पौधे
छूना न मुझे
 ये हरी भरी
झूमती है फसलें
लहकती सी।
तप्त धरती
सब बीजों को मिला
नव जीवन ।
बीजों से झांके
बेक़रार पृकृति
थाम लो मुझे
मुस्कुराती है
ये नन्ही सी कालिया
तोड़ो न मुझे।


 पत्रों पे  बैठे
बारिश के मनके
जड़ा है हीरा।
१०
हवा के संग
खेलती ये लताएँ
पुलकित है

११
संग खेलते
ऊँचे होते पादप
छू लें आसमां

                         -- शशि पुरवार

  नमस्ते मित्रो लम्बे अंतराल के बाद ब्लॉग पर पुनः सक्रियता और वापसी कर रहे है , आशा है आपका स्नेह सदा की  तरह मिलता रहेगा।  -- जल्दी आपसे आपके ब्लॉग पर भी मिलंगे।  स्नेह बनाये रखे -- आप सभी का दिन मंगलमय हो - शशि पुरवार




समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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