Thursday, March 5, 2015

भंग दिखाए रंग - होली है




होरी आई री सखी ,दिनभर करे धमाल
हरा गुलाबी पीत रंग , बरसे नेह गुलाल .1

द्वारे  पे गोरी खड़ी ,  पिया  गए परदेश
नेह सिक्त  पाती लिखी ,आओ पिया स्वदेश2

भेद भाव से दूर ये  ,होरी का त्यौहार
डूबा जोशो जश्न में , यह सारा संसार 3

होरी के  हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो  सामने ,फेको उस पर रंग .4

अम्मा से बाबू कहे , खेलें  होरी  आज
कहा तुनक कर उम्र का , कुछ तो करो लिहाज .5

होरी की अठखेलियाँ , पकवानों में भंग
बिना बात किलकारियाँ , भंग दिखाए रंग 6


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 कुण्डलियाँ
होली के हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो सामने,  उस पर फेको  रंग
फेको उस पर रंग , नीले पीले गुलाबी
घेरो  सब चहुँ ओर, यह टोली है नबाबी
मस्ती का उन्माद , संग मित्रों के ठिठोली
जोश जश्न उल्लास , खेलो प्रेम की होली .

हाइकु -


होली है प्यारी
रंग भरी पिचकारी 
सखियाँ न्यारी


 मारे गुब्बारे
लाल पीले गुलाबी
रंग लगा रे

प्रेम की होली
दूर बैठी सखियाँ
मस्तानी टोली

होली की मस्ती
प्रेम का  है खजाना
दिलों की बस्ती


चढ़ा के भंग
मौजमस्ती संग
बजाओ चंग

    -----  शशि पुरवार
आप सभी ब्लॉगर मित्रों को होली की हार्दिक रंग भरी शुभकामनाएँ

Monday, February 23, 2015

अब कहाँ जाएँ।





बाहर की आवाजों का शोर,
सड़क रौंदती
गाड़ियों की चीख
जैसे मन की पटरी पर
धड़धड़ाती हुई रेलगाड़ी
और इन सब से बेचैन मन
शोर शराबे से दूर,
एक बंद कमरे में
छोड़ा मैंने बोझिल मन को ,
निढाल होते तन के साथ
नर्म बिस्तर की बाहों में
शांति से बात करने के लिए
पर अब पीछा कर रही थीं
श्वासोच्छवास की दीर्घ ध्वनि
धड़कनों की पदचाप
बंद पलकों में
चहलकदमी करने लगीं पुतलियाँ
उमड़ते हुए विचारों की भीड़
करने लगी कोलाहल
अंतर की हवा में ज्यादा प्रखर है प्रदुषण
खुद से भागते हुए
शांति की तलाश में अब कहाँ जाएँ।
- शशि पुरवार

Monday, February 16, 2015

गम की हाला - नवगीत



होठों पर मुस्कान सजाकर
हमने, ग़म की
पी है हाला

ख्वाबों की बदली परिभाषा
जब अपनों को लड़ते देखा
लड़की होने का ग़म ,उनकी
आँखों में है पलते देखा
छोटे भ्राता के आने पर
फिर ममता का
छलका प्याला 

रातों रात बना है छोटा
सबकी आँखों का तारा
झोली भर-भर मिली दुआये
भूल गया घर हमको सारा
छोटे के
लालन - पालन में
रंग भरे सपनो की माला

बेटे - बेटी के अंतर को
कई बार है हमने देखा
बिन मांगे,बेटा सब पाये
बेटी मांगे, तब है लेखा
आशाओं का
गला घोटकर
अधरों , लगा लिया है ताला
-- शशि पुरवार

Monday, February 9, 2015

रोजी रोटी की खातिर





रोजी रोटी की खातिर,फिर
चलने का दस्तूर निभाये
क्या छोड़े, क्या लेकर जाये
नयी दिशा में कदम बढ़ाये।

चिलक चिलक करता है मन
बंजारों का नहीं संगमन
दो पल शीतल छाँव मिली, तो
तेज धूप का हुआ आगमन

चिंता ज्वाला घेर रही है
किस कंबल से इसे बुझाये।

हेलमेल की बहती धारा
बना न, कोई सेतु पुराना
नये नये टीले पर पंछी
नित करते हैआना जाना

बंजारे कदमो से कह दो
बस्ती में अब दिल न लगाये।

क्या खोया है, क्या पाया है
समीकरण में उलझे रहते
जीवन बीजगणित का परचा
नितदिन प्रश्न बदलते रहते

अवरोधों के सारे कोष्टक
नियत समय पर खुलते जाये।
 -- शशि पुरवार

Monday, February 2, 2015

मौसम ठिकाने आ गए



आ गए जी आ गए
मौसम ठिकाने आ गए
सूर्य ने बदला जो रस्ता
दिन सुहाने आ गए।

धुंध कुहरे की मिटाने
ताप छनकर आ रहा
खेत में बैठा बिजूखा
धुप से गरमा रहा
धूप की
अठखेलियों के
दिन पुराने आ गए।

प्रेम पाती बाँचकर, यह
स्वर्ण किरणें चूमती
इंद्रधनुषी रंग पहने
तितलियाँ भी झूमती
स्वप्न आँखों में
बसंती
दिल चुराने आ गए।

नींद से जागा शहर
टहलाव,
सड़कों पर मिला
सुगबुगाती टपरियोँँ पर
चुसकियों का सिलसिला
लॉन में फिर
चाय पीने
के बहाने आ गए।

बात करते खिलखिलाते
साथ जोड़े चल रहे
घाट पर गप्पें लड़ाते
कुछ समय को छल रहे
हाथ नन्हे डोर थामे
नभ रिझाने आ गए
   --- शशि पुरवार




Monday, January 26, 2015

६६ गणत्रंत्र दिवस



आप सभी भारतीय मित्रों को ६६ वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ , जय हिन्द - जय भारत

सीना चौड़ा कर रहे ,वीर देश की शान
हर दिल चाहे वर्ग से ,करिए इनका मान
करिए इनका मान , हमें धरती माँ प्यारी
वैरी जाये हार , यह जननी है हमारी
दिल में जोश उमंग ,देश की खातिर जीना
युवा देश की शान ,कर रहे चौड़ा सीना .

- शशि पुरवार

Sunday, January 25, 2015

गजल - वक़्त लुटेरा है




कुछ पलों का घना अँधेरा है
रैन के बाद ही सवेरा है.

जग नजाकत भरी अदा देखे
रात्रि में चाँद का बसेरा है.

हर नियत पाक दिल नहीं होती
जाल सठ का बुना घनेरा है.

रंज जीवन नहीं रजा ढूंढो
हर कदम हर्ष का फुलेरा है.

इश्क है हर नदी को सागर से
इल्म है जोग भी निबेरा है.

मै मसीहा नहीं मुसाफिर हूँ
मुफलिसी ने मुझे ठठेरा है.

जिंदगी इम्तिहान लेती है
वक़्त सबसे बड़ा लुटेरा है।
- शशि पुरवार

Sunday, January 18, 2015

कुण्डलियाँ - भाग रही है जिंदगी,


1
भाग रही है जिंदगी, कैसी जग में दौड़
चैन यहाँ मिलता नहीं, मिलते अंधे मोड़
मिलते अंधे मोड़, वित्त की होवे माया
थोथे थोथे बोल, पराया लगता साया
जलती कुंठा आग, गुणों को त्याग रही है
कर्मो का सब खेल, जिंदगी भाग रही है

 2
थोडा हँस लो जिंदगी , थोडा कर लो प्यार
समय चक्र थमता नहीं , दिन जीवन के चार
दिन जीवन के चार  ,भरी  काँटों  से  राहे
हिम्मत कभी न हार , मिलेगी सुख की बाहें
संयम मन में घोल , प्रेम से नाता जोड़ा
खुशिया चारो ओर , भरे घट  थोडा थोडा
-- शशि पुरवार

Tuesday, January 13, 2015

नदिया तीरे


१ 
नया विहान
शब्दों का संसार
रचें महान

झुकता नहीं
आएं लाख तूफ़ान
डिगता नहीं

मन चंचल
मचलता मौसम
सर्द है रात

नदिया तीरे
झील में उतरता
हौले से चंदा

बिखरे मोती
धरती के अंक में
फूलों की गंध

एक शाम
अटूट है बंधन
दोस्ती के नाम

साथ तुम्हारा
महका तन मन
प्यार सहारा
 शशि पुरवार

Thursday, January 1, 2015

उम्मीदें हैं कुछ खास







 
नववर्ष के हाइकु

नव  उल्लास
उम्मींदों का सूरज
मीठी सुवास
धूप सोनल
गुजरा हुआ कल
स्वर्णिम पल
नवउल्लास
खिड़की से झाँकता
 वेद प्रकाश
 स्वर्ण किरण
रोम रोम निखरे
धरा दुल्हन
गुजरा वक़्त
जीवन की परीक्षा
ना लागे सख्त
-- शशि पुरवार


नवगीत -

नये वर्ष से है ,हम सबको
उम्मीदें  कुछ खास

आँगन के बूढ़े बरगद की
झुकी हुई  डाली
मौसम घर का बदल गया, फिर
विवश हुआ  माली
ठिठुर रहे है सर्द हवा में
भीगे से अहसास

दरक गये दरवाजे घर के
आँधी थी आयी
तिनका तिनका उजड़ गया फिर
बेसुध है  माई
जतन कर रही बूढी साँसे
आये कोई पास

चूँ चूँ करती नन्हीं  चिड़िया
समझ नहीं पाये
दुनियाँ उसकी बदल गयी है
कौन उसे  बताये
ऊँची ऊँची अटारियों पे
सूनेपन का वास

नए वर्ष का देख आगवन
पंछी  गाते गीत
बागों की कलियाँ भी झूमे
भ्रमर का संगीत
नयी ताजगी ,नयी उमंगें
मन में  है उल्लास

नये वर्ष से है हम सबको
उम्मीदें कुछ खास।


शशि पुरवार 

समस्त ब्लॉगर परिवार और स्नेहिल मित्रों को सपरिवार नववर्ष   की हार्दिक शुभकामनाएँ
अनुभूति पत्रिका में प्रकाशित गीत -

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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