होंगे बच्चे उसके साथ .
आगे बढने की चाह में हम
नहीं रोक सकते ,
उन्हें अपने पास .
उन्हें अपने पास .
जीवन भर की संजोई धरोहर
संजोये सपने ,
बिखर जाते है
बिखर जाते है
जब बच्चे ,
दूर हो जाते है .
दूर हो जाते है .
एक तरफ खुशी है , तो
दूसरी तरफ तन्हाई है.
जीवन की साधना , आज
सफल हो पाई है , फिर
क्यूँ जीवन में रिक्तता आई है ..... ?
: - शशि पुरवार
यह कविता पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है.
हर माता-पिता कि ये तम्मना होती है कि उनके बच्चे उच्च शिक्षा ले ,ऊँचा मुकाम जिन्दगी में हासिल करे , इससे उनका भी मान बढेगा . इसलिए वह उम्र भर अपने बच्चो के लिए न जाने कितने त्याग व जतन करते है . बच्चो को उच्च शिक्षा व आगे बढ़ने के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है , फिर वह वापिस नहीं आ पाते और उम्र के एक मुकाम पर बच्चो की कमी खलने लगाती है .
उन्हें जहाँ एक तरफ बच्चो कि उपलब्धियो कि ख़ुशी होती है , वहीं दूसरी तरफ तन्हाई , अकेलापन , रिक्तता........!
बच्चे तो जिंदगी कि दौड़ में रुक नहीं पाते ...... और बड़े उम्र कि इस दहलीज में उनके साथ दौड़ नहीं पाते और कभी अपनी जड़े छोड़ नहीं पाते . जहाँ इस उम्र में प्यार और सहारे कि जरूरत होती वहीं , अकेलापन उन्हे जीने नहीं देता .






