माँ उदास
मारती रही औलाद
तीखे संवाद ,
भयी कोख उजाड़ .
बरसा सावन तो
पी गए नयन
दबी सिसकियां
शिथिल तन
उजड़ गयी कोख
तार तार दामन .
खून से सने हाथ
भ्रूण न ले सके सांस
चित्कारी आह
हो रहा गुनाह
माँ की रूह को
छलनी कर
सिर्फ पुत्र चाह .
जिस कोख से जन्मे देव
उसी कोख के
अस्तित्व का सवाल
सृष्टि की सृजक नारी
आत्मा जार जार
हो रहा कत्लोआम
परिवर्तन की पुकार .
माँ उदास ......भयी कोख उजाड़ ....!
------- शशि पुरवार