Tuesday, April 9, 2013

वीणा के स्वर ..

1
वीणा के स्वर
तबले की संगत
मधुर तान .

2स्वर लहरी
जीवन की प्रेरणा
बजी है वीणा .

3स्वर संगीत
तन मन भी झूमे
पीर भी भूले .

4
वाद्य यंत्र से
बिखरा है संगीत
 मनमोहक

5
सुर संगम
खिला मन प्रांगन
जीवन मीत.

6
नर्म स्पर्श
ममता का आँचल
शिशु मुस्काए

7
माँ से मायका
पिता जग दर्शन
मार्गदर्शन

8
कभी न भूले
वह स्नेहिल स्पर्श
ननिहाल का .

--------शशि पुरवार

Saturday, April 6, 2013

सिमटती जाये गंगा .........



दोहे ---

गंगा जमुना भारती ,सर्व गुणों की खान
मैला करते नीर को ,ये पापी इंसान .

सिमट रही गंगा नदी ,अस्तित्व का सवाल
कूड़े करकट से हुआ ,जल जीवन बेहाल .

गंगा को पावन करे , प्रथम यही अभियान
जीवन जल निर्मल बहे ,सदा करें सम्मान .

कुण्डलियाँ -----

गंगा जमुना भारती ,सर्व गुणों की खान
मैला करते नीर को ,ये पापी इंसान
ये पापी इंसान ,नदी में कचरा डारे
धर्म कर्म के नाम, नीर ही सबको तारे
मिले गलत परिणाम,प्रकृति से करके पंगा
सूख रहे खलियान ,सिमटती जाए गंगा .

-- शशि पुरवार

Thursday, April 4, 2013

कलम जरा टेक लगाओ .........






कवि ह्रदय में बजते है
जज्बातों के चंग
कलम जरा टेक लगाओ .


पल पल बदले नयनो का 
सतरंगी बसंत
भावों का पंछी बहके
जन्में पद अनंत,

मन बावरा फिर कहे
खूब सुरीले छंद

कलम जरा टेक लगाओ।

कहीं बबूल कहीं फूल
की छन रही है भंग
अरहर सरसों पी रहे
कलियाँ भी है संग

भौरें नाचे बाग़ में
मच गयी हुरदंग
कलम जरा टेक लगाओ।


पूनो का चाँद खिला,करें
तारो से बतियाँ
अमा का नाग डसे, तो
छिटक जाए सखियाँ

तन्हाई की बेला में
शब्द बजाते मृदंग 

कलम जरा टेक लगाओ।


टेसू से दहक रहा वन
उदासी भी लुढके
शाखों पर अमराई
मुस्काए छुप छुपके

बार बार नहीं दिखाता
मौसम अपने रंग
कलम जरा टेक लगाओ।
3/04/13
 -----शशि पुरवार











Monday, April 1, 2013

खामोश पन्ने।





1
स्याही है स्वप्न
जीवन में बिखरे
खामोश पन्ने।
2
फासले बढे
दूर हो गए रास्ते
मंजिल कहाँ।
3
छुए किनारा
भावुक है लहरे
आँखों का पानी
4
संत दीखता
ठूंठ सा खड़ा वृक्ष
जर्जर हुआ .
5
खाली घरोंदा
चुपके से आई है
यादें तुम्हारी
---- शशि पुरवार

Wednesday, March 27, 2013

रंगों की सौगात ले आई है होली .....!





गीत ---

रंगों की सौगात ले,
आई है होली

हर डाली पर खिल उठे
शोख टेसू लाल
प्रेम पुरवा से हुए
सुर्ख-सुर्ख गाल
मैना से तोता करे
प्रेम की बोली.

झूमते हर बाग में
इंद्र्धनुषी फूल
रँग बसंती की उडी
आसमाँ तक धूल
घूमती मस्तानों की
हर गली टोली

बिखरी निर्जन वन में भी
रंगो की घटा
हरिक दिल में बस गई
फागुनी छटा
दूर है रँग भेद से
रंगों की बोली .
रंगों की सौगात ले,
आई है होली.........!
13.03.13 

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 हाइकू ---

1
सपने पाखी
इन्द्रधनुषी रंग
होरी के संग
2
रंग अबीर
फिजा में लहराते
प्रेम के रंग
3
सपने हँसे
उड़ चले गगन
बासंती रंग
4
दहके टेसू
बौराई अमराई

फागुन डोले
5
अनुरक्त मन
गीत फागुनी गाये
रंगों की धुन .

23.03.13 -
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1हवा  उडाती
अमराई की जुल्फे
टेसू हुए आवारा
हिय का पंछी 
उड़ने को बेताब
रंगों का समां प्यारा .

2
  डोले मनवा
 ये  पागल जियरा
 गीत गाये बसंती
 हर डाली  पे
खिल गए पलाश
भीगी ऋतू सुगंधी .

3
 झूमे बगिया
दहके है  पलाश
भौरों को ललचाये
कोयल कूके
कुंज गलियन में
पाहुन क्यूँ न आये .

4
झूम रहे है
हर गुलशन में
नए नवेले फूल
हँस रही है
डोलती पुरवाई
रंगों की उड़े धूल .

5
 लचकी डाल
यह कैसा  कमाल
मधुऋतू है आई
 सुर्ख पलाश
मदमाए फागुन
कैरी खूब मुस्काई .

6
जोश औ जश्न
मन  में  है उमंग 
गीत होरी  के गाओ
भूलो मलाल
उमंगो का त्यौहार
झूमो जश्न मनाओ .
24.03.13
शशि पुरवार
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आया होली का त्यौहार
सब मिलकर करे धमाल .

मिल जुल कर जश्न मनाये
स्नेह के भजिये ,
तल कर खाए
रंगों से आँगन नहलाये
हुए मुखड़े पीले लाल .

आया होली का त्यौहार .
स्नेही सभी संगी साथी
दूर देश की है पाती
सभी को जोड़ते
दिल के तार ,
सभी पर करो रंगों की बौझार
आया होली का त्यौहार .

बुरा न मानो होली है ,
भंग में पगी ठिठोली है
नहीं तो ,भैया
पड़ जाएगी मार ,
सब मिलकर करे धमाल .
अरे ..... आया होली का त्यौहार
-----शशि पुरवार
22.03.13
ब्लॊगर के पुरे परिवार को और सभी मित्रो ,सखीओं को होली ही हार्दिक शुभकामनाए , यह पल सभी के जीवन में खुशियों के पल लाये . शशि पुरवार


अनुभूति के होली विशेषांक में प्रकाशित होली दोहे इस लिंक पर पढ़िए ,










------------- शशि पुरवार 



Sunday, March 24, 2013

अनछुए से रंग



रंगों का त्यौहार
लागे
सबको प्यारा
कहीं रंग कहीं बेरंग
यह कैसा इशारा .

अनछुए से चले  गए
रंग जीवन से
 जब
मांग में सोई  गमी।

हरी मेंहदी
करतल पर दहने लगी ,
फिर
खनकती हंसी
काल कोठरी में पली
और
विरह की आग से खेलते
शृंगारो की खूब होली जली ।

हिय के दलदल में
दफ़न हो गए
हरे पीले लाल रंग ,
श्वेत रंग  वन में जगे,
रंगों  का कोई दोष नहीं
दिलकश  होते है  रंग
क्या लिखा है नियति ने ?
किसे दोष दे ....... ?

हर बार की तरह
मौसम
तो बदलेंगे
वृक्ष तो छाया ही देंगे
पर
सूखें वनों को चाहिए
सिर्फ
प्रेम की फुहार।.
फागुन तो
आता है हर साल
भर 
स्नेह की पिचकारी 
लगाओ  गुलाल।
15.03.13
-- शशि पुरवार

Monday, March 18, 2013

क्षणिकाएँ

1कर्म का पथ
प्रथम है प्रयास
नींद के बाद .

जख्मी है वृक्ष
रीत गए झरने
अम्बर रोए .

बासंती गीत
प्रकृति ने पहनी
धानी चुनर .



श्वेत धवल
बसंती सा नाजुक
हरसिंगार .
 
शिउली सौन्दर्य
लतिका पे है खिला
गुच्छो मे लदा.

हरसिंगार
ईश्वरीय सृजन
श्वेत कमल .

श्वेत चांदनी
धरा की चुनरिया
झरे प्राजक्त .

-------------
छोटी कविता 

१ सजा बंधनवार
ढोलक की थाप
झनक उठी पैजनिया
गूंज उठी शहनाई
स्नेहिल अंगना ,
सजी है डोली
कन्यादान का अवसर
झर झर झरे आशीष
और नैनो से झरे
हरसिंगार .

२ बहाओ पसीना
उठा लो मशाल
राहों मे बिछे कांटे
जाना है पार
भोर का न करो,
इन्तजार
खिलेंगे फूल तो
यह जीवन हरसिंगार .

३ न छोड़ो हिम्मत
जज्बा हो बुलंद
गहरे गर्त मे भी
झरने सा छन्द
कर्म विलक्षण ,तो
महके सुवास
जैसे हरसिंगार .
--- शशि  पुरवार


Thursday, February 14, 2013

स्नेह बंधन



1 स्नेहिल रिश्ता
ममता का बिछोना
माँ का शिशु से .
2
स्नेह  बंधन
फूलो से महकते
हरसिंगार
3
झलकता है
नजरो से पैमाना
वात्सल्य भरा
4
दिल की बातें
दिल ही तो जाने है
शब्दों से परे .
5
प्रेम कलश 
समर्पण से भरा 
अमर भाव   .
6
खामोश शब्द
नयन करे बातें
नाजुक डोर  .
7
अनुभूति है
प्रेममई संसार
अभिव्यक्ति की .
8
 बंद पन्नो में
ह्रदय के जज्बात
सूखते फूल .
9
दिल की पीर
बहती नयनो से
हुई विदाई .
10
जन्मो जन्मो का
सात फेरो के संग
अटूट नाता .
11
आग का स्त्रोत
विरह का सागर
प्रेम अगन .
12
खामोश साथ
अवनि - अम्बर का
प्रेम मिलन .
----------शशि पुरवार 

Monday, February 11, 2013

सीली सी यादें .....!



सुलग रहे थे ख्वाब
वक़्त की
दहलीज पर
और
लम्हा लम्हा
बीत रहा था पल
काले धुएं के
बादल में।
सीली सी यादें
नदी बन बह गयी ,
छोड़ गयी
दरख्तों को
राह में
निपट अकेला।
फिर
कभी तो चलेगी
पुरवाई
बजेगा
निर्झर संगीत
इसी चाहत में
बीत जाती है सदियाँ
और
रह जाते है निशान
अतीत के पन्नो में।
क्यूँ
सिमटे हुए पल
मचलते है
जीवंत होने की
चाह में।
न कोई  ठोर
न ठिकाना 

न तारतम्य
आने वाले कल से।
फिर भी
दबी है चिंगारी
बुझी हुई राख में।
अंततः
बदल जाते है
आवरण,
पर

नहीं बदलते
कर्मठ ख्वाब,
कभी तो होगा
जीर्ण युग का अंत
और एक
नया आगाज।
------ शशि पुरवार 





Tuesday, January 15, 2013

खूनी पंजे की लगी छाप


खूनी पंजे की लगी  छाप
काल के थम्ब रिस पड़े
नूतन वर्ष पर दीवारों के
वे  पंचांग ,अब बदल  रहे .

आतंकी तारीखे  बनी
अमावस की काली रात
कैद हुए  मंजर आँखों में
और गोलियों की बरसात 
चीत्कार उठा था ब्रम्हांड
तारे अब भी सुलग रहे.

ताबूत बने थे वे दिन ,
जब सोई मानवता की लाश
उफन रही थी बर्बरता
उजड़  रही थी साँस
देखो घर के भेदी ,अपने
ही घर को निगल रहे.

उत्तरकाल के गुलशन की
नवपल्लव ने जगाई आशा
दिन ,महीने हो गुलजार
ह्रदय की यही अभिलाषा
युवा क्रांति के दृढ़ कदम, अब
दर्पण जग का बदल रहे .
नूतन वर्ष पर दीवारों के
पंचांग  अब बदल रहे .
शशि पुरवार

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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