Wednesday, December 25, 2019

संवेदनाएं जोगन ही तो हैं

*जोगिनी गंध*
*पुस्तक समीक्षा/ डॉ. शैलेंद्र दुबे*
*कवयित्री के शब्दों में संवेदनाएं जोगन ही तो हैं जो नित नए भावों के द्वार विचरण करती हैं. भावों के सुंदर फूलों की गंध में दीवानगी होती है, जो मदहोश करके मन को सुगंधित कर देती है. साहित्य के अतल सागर में अनगिनत मोती हैं, उसकी गहराई में जाने पर हाथ कभी खाली नहीं रहते.*
.........................
*मन को मोहित करती संवेदनाओं की जोगिनी गंध*
मनुष्य प्रकृति की अद्भुत रचना है. सरस अभिव्यक्ति की क्षमता तथा गुण ने उसे इस काबिल बनाया है कि वह स्वयं रचनाकार के रूप में समाज को श्रेष्ठ विचार एवं भाव दे सके. कल्पना और अभिव्यक्ति के मिलन से निर्मित साहित्य के क्षितिज पर विवेकी रचनाकार के उकेरे गए इंद्रधनुषी चित्र मानव मन को मानवीय सरोकार, संवेदना तथा अनुभूतियों के रंग में रंग देते हैं. कलम से कागज पर बनाए गए शब्दों के ताजमहल भाव, कल्पना तथा विचार के रूप में सदा के लिए मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं. हिंदी साहित्य संसार में अपना विशिष्ट स्थान बनाने वाली ख्यातनाम कवयित्री श्रीमती शशि पुरवार का हाइकु संग्रह ‘जोगिनी गंध’ भी कोमल भावों के साथ सारगर्भित संदेश के रूप में न केवल मानस पटल पर अंकित होता है बल्कि सकारात्क प्रेरणा का संवाहक भी है.
हाइकु जापान की लोकप्रिय मुक्तक काव्य विधा है. हाइकु में गुंफित प्रत्येक पुष्प 5-7-5 शब्द क्रम की तीन पंक्तियों में बसी प्रेरणा एवं ऊर्जा से पल्लवित होता है. गागर में सागर की तर्ज पर उभरी इस विधा में शशि जी को महारथ हासिल है. यह काव्य संग्रह जोगिनी गंध, प्रकृति, जीवन के रंग, विविधा तथा हाइकु गीत रूपी पांच सर्ग में विभक्त है. पहले सर्ग जोगिनी गंध में कवयित्री ने प्रेम, मन, पीर, यादों तथा दीवानेपन को कोमल भावों के साथ शब्दों में पिरोया है. प्रेम को परिभाषित करती हुर्इं शशि जी कहती हैं-
'प्रेम भूगोल
सम्मोहित सांसें
दुनिया गोल'
‘सूखे हैं फूल
किताबों में मिलती
प्रेम की धूल’
‘नेह के गीत
आंखों की चौपाल में
मुस्काती प्रीत’
वास्तव में प्रेम का भूगोल यही है. प्रेम में पड़े मन की दुनिया प्रेमिका या प्रेमी के इर्द-गिर्द ही होती है. प्रेम ही हर प्रेमी की सांसों में समाया होता है. किताबों में मिलते सूखे फूल सदा ही प्रेम का उपमान बने हैं जिन्हें कवयित्री ने हाइकु के फूलदान में करीने से सजाया है.
प्रकृति के नित नए रंग मानव मन को अपने रंग में ढाल लेते हैं. प्रेम की शीतल बयार मन की उष्णता तथा कड़वाहट का लोप कर देती है. बर्फ से जमे अहसास पिघलने लगते हैं और शब्द रूप में अभिव्यक्त होते हैं. शशि जी दूसरे सर्ग में प्रकृति के शीत, ग्रीष्म, सावन, जल आदि विविध रंगों और बदलती छटाओं को बड़ी खूबसूरती के साथ मानव मन के कैनवास पर उकेरते हुए कहती हैं-
‘शीत प्रकोप
भेदती हैं हवाएं
उष्णता लोप’
‘बर्फ से जमे
भीगे से अहसास
शब्दों को थामे’
‘प्रकृति दंग
कैक्टस में खिलता
मृदुल अंग’
अभिव्यक्ति जब मानव मन के अंतस में जन्म लेती है तो उसका एक लक्ष्य होता है. शब्द रूपी भावों के कागज पर होते कदम-ताल में एक गंतव्य निहित होता है. शशि जी तीसरे सर्ग ‘जीवन के रंग’ में जीवन यात्रा, बसंती रंग, गांव और बचपन के अल्हड़पन के साथ मानवीय रिश्तों के गंतव्य की ओर कदम-ताल करती नजर आती हैं. इस सर्ग में जीवन की कई गूढ़ बातों पर रौशनी डाली गई है. मानवीय रिश्तों को खूबसूरत बिंबों के माध्यम से उकेरा गया है.
‘शब्दों का मोल
बदली परिभाषा’
थोथे हैं बोल’
‘मन के काले
मुख पर मुखौटा
मुंह उजाले’
‘उड़े गुलाल
प्रेम भरी बौछार
गुलाबी गाल’
काव्य संग्रह के चौथे सर्ग विविधा में दीपावली, राखी, नववर्ष के माध्यम से अनेकता में एकता के सूत्र को पिरोया गया है. पांचवा सर्ग हाइकु गीतों के शिल्प सौंदर्य से ओत-प्रोत है. ‘नेह की पाती’, ‘देव नहीं मैं’, ‘गौधुली बेला में’ जैसे हाइकु गीत रिश्तों के अनुबंधों को नया रंग देते नजर आते हैं. शशि जी का यह संग्रह तमाम विषयों को मानव मन के अंतस तक ले जाने में सक्षम है. सीमित शब्दों में भाव तथा बिम्बों को समाहित कर अपनी बात कह पाना निश्चित ही दुरूह कार्य है जिसे शशि जी ने बड़ी कुशलता से पूर्ण किया है. उनके हाइकू जहां अपनी बात सरलता से कह देते हैं, वहीं अर्थ घनत्व की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं. शब्द रूपी फूलों की इस माला में पिरोए गए हर भाव से पाठक स्वयं को जुड़ा हुआ पाता है. यह विशेषता कवयित्री के काव्यगत कुशलता की परिचायक है.
144 पृष्ठों वाली, 200 रु. मूल्य की इस किताब का प्रकाशन लखनऊ के लोकोदय प्रकाशन ने किया है.

Image may contain: 1 person

Image may contain: 1 personImage may contain: 1 person

Tuesday, December 3, 2019

"जोगिनी गंध" के हाइकु



अर्थ घनत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं "जोगिनी गंध" के हाइकु 
- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

वर्तमान युग परिवर्तन का युग है और परिवर्तन की यह प्रक्रिया जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है। साहित्य भी इससे अछूता नहीं है। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि बदलते परिवेश में मानव के पास समयाभाव हुआ है और यान्त्रिकता के बाहुपाश में समाये मनुष्य के पास अब इतनी फ़ुर्सत नहीं है कि वह साहित्य को अधिक समय दे सके। ऐसे में निश्चित रुप से साहित्यकारों को ही अधिक प्रयास करने होंगे। कम शब्दों में अधिक अभिव्यक्ति भरनी पड़ेगी। ऐसे में यह युग लघुकविता या सूक्ष्मकविता का अधिक है। सूक्ष्म कविताओं में हाइकु कविता का अपना विशिष्ट स्थान है। हाइकु 5/7/5 अक्षर-क्रम में एक त्रिपदीय छन्द है। यह छन्द मात्र सत्रह अक्षरों की सूक्ष्मता में विराट् को समाहित करने की अपार क्षमता रखता है। यह छन्द जापान से भारत आया और हिन्दी सहित अनेक भाषाओं ने इसके शिल्प को आत्मसात् कर लिया। वर्तमान में हिन्दी हाइकु के अनेक संकलन एवं संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं। इन्हीं में से एक है- "जोगिनी गंध"। इस हाइकु-संग्रह की सर्जक हैं- चर्चित कवयित्री भारत की सौ अचीवर्स में से एक- शशि पुरवार।

विभिन्न विधाओं के माध्यम से लेखन में सक्रिय शशि पुरवार जी एक शानदार हाइकु कवयित्री हैं। कम शब्दों में बड़ी बात कह लेने का हुनर एक अच्छे हाइकु कवि की पहली विशेषता है। 5/7/5 अक्षर विन्यास के क्रम में कुल तीन पंक्तियों, यानी कि सत्रह अक्षर में सागर की गहराई माप लेने की क्षमता का कौशल हाइकु की अपनी विशिष्टता है। जापान से आयातित यह छन्द अब हिन्दी का दुलारा छन्द बन गया है। प्रकृति तक सीमित हाइकु को हिन्दी ने जीवन के प्रत्येक रंग से भर दिया है।

जोगिनी गंध के माध्यम से हाइकु कवयित्री शशि पुरवार जी ने हिन्दी हाइकु साहित्य के विस्तार में अपना योगदान भी सुनिश्चित किया है। आपके हाइकु जहाँ अपनी बात बहुत सरलता से कह देते हैं, वहीं अर्थ घनत्व की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न विषयों के अन्तर्गत पाँच भागों में विभक्त और लगभग पाँच सौ हाइकुओं से सुसज्जित यह हाइकु-संग्रह स्वयं में विशिष्ट है। 

देखें उनके कुछ हाइकु-
* छूटे संवाद/दीवारों पे लटके/वाद-विवाद। 
* धूप सुहानी/दबे पाँव लिखती/छन्द रूमानी।
* प्रीत पुरानी/सूखे गुलाब बाँचे/प्रेम कहानी।
* जोगिनी गंध/फूलों की घाटी में/शोध प्रबन्ध।
* रीता ये मन/ कोख का सूनापन/अतृप्त आत्मा।

प्रेम के बिना संसार गतिहीन है। प्रेम की अनुभूति शाश्वत है। प्रेम की सम्पदा अपार है। कवयित्री ने हाइकु के माध्यम से प्रेम के शाश्वत स्वरूप को रूमानी शैली में अभिव्यक्त किया है-
* नेह के गीत/आँखों की चौपाल में/मुस्काती प्रीत।
* प्रेम अगन/रेत-सी प्यास लिये/मन-आँगन।
* आँखों में देखा/छलकता पैमाना/सुखसागर।

मन की थाह पाना सम्भव नहीं है। मन पर शशि जी का यह हाइकु विशेष लगा-
* अनुगमन/कसैला हुआ मन/आत्मचिन्तन। 

इसी आत्मचिन्तन से पीड़ा की छाया में स्मृतियाँ कोलाहल करती हैं-
* दर्द की नदी/लिख रही कहानी/ये नयी सदी।

हाइकु का मुख्य विषय प्रकृति-चित्रण है। प्रत्येक मनुष्य प्रकृति से प्रेम करता है और जब वह प्रकृति के अनुपम सानिध्य में रहता है तो वह एक नयी ऊर्जा से भर जाता है। यह प्रकृति की निश्छलता और अपनापन ही है। प्रकृति का अंश मनुष्य अपनी प्रत्येक आवश्यकता के लिए प्रकृति पर निर्भर है। ऐसे में शशि पुरवार जी ने पुस्तक का एक भाग प्रकृति को ही समर्पित किया है, जहाँ पर कई अच्छे हाइकु पढ़ने को मिलते हैं-
* हिम-से जमे/हृदय के जज़्बात/किससे कहूँ।
* मन प्रांगण/यादों की चिनगारी/महकी चंपा 
* सघन वन/व्योम तले अँधेरा/क्षीण किरण 
* झरते पत्ते/बेजान होता तन/ठूँठ-सा वन।
* कम्पित धरा/विषैली पॉलिथीन/मानवी भूल।

हिन्दी हाइकु के वर्तमान स्वरूप के अन्तर्गत पुरवार जी ने जीवन का हर रंग भरने का सफल प्रयास किया है। यह प्रयास हाइकु के स्वरूप को स्पष्ट करता है। इस सन्दर्भ में कुछ और हाइकु-
* सूखे हैं पत्ते/बदला हुआ वक़्त/पड़ाव-अन्त।
* नहीं है भीड़/चहकती बगिया/महका नीड़।
* दिया औ' बाती/अटूट है बन्धन/तम का साथी
* कलम रचे/संवेदना के अंग/जल तरंग।
* अधूरापन/ज्ञान के खिले फूल/खिला पलाश।

जोगिनी गंध के अन्तर्गत जापानी काव्य विधा के दो और मोती ताँका (5/7/5/7/7) और सेदोका (5/7/7/5/7/7) भी संग्रह में सम्मिलित किये गये हैं। पुस्तक में चालीस ताँका और बीस सेदोका सम्मिलित हैं। जोगिनी गंध से यह ताँका देखें-
"चंचल हवा/मदमाती-सी फिरे/सुन री सखी!/महका है बसंत/पिय का आगमन!" इसी क्रम में यह सेदोका भी उल्लेखनीय है- "मेरा ही अंश/मुझसे ही कहता/मैं हूँ तेरी छाया/जीवन भर/मैं तो प्रीत निभाऊँ/क्षणभंगुर माया।"

'जोगिनी गंध' कवयित्री शशि पुरवार जी का हिन्दी हाइकु-साहित्य को समृद्ध करने का सत्संकल्प है। वे आगे भी अपनी सर्जना से हिन्दी हाइकु को अभिनव आयाम एवं विस्तार देती रहेंगी, मुझे पूर्ण विश्वास है। अनन्त शुभकामनाएँ!
___________________________________
कृति- जोगिनी गंध
(हाइकु संग्रह)
हाइकुकार- शशि पुरवार
ISBN: 978-93-88839-30-3
पृष्ठ-144
मूल्य- ₹ 200
प्रकाशक- लोकोदय प्रकाशन, लखनऊ 
___________________________________

सम्पर्क: डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर', 24/18, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.)- 212601
मो.- 9839942005
**********