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Thursday, November 27, 2025

जेन जी का फंडा सेक्स, ड्रिंक और ड्रग












   आज की युवा पीढ़ी कहती है - “ हम अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं समय बहुत बदल गया है   ….  हमारे माता पिता हमें हर वक़्त रोक टोक करते हैं, क्या हर समय हम उनके अनुसार अपना जीवन जियेंगे ? अब हम बालिग है यह हमारी जिंदगी है जिसे हम जैसे चाहे वैसे जिए. “


आज यह समस्या हर युवा वर्ग की है कि कैसे इन बंदिशों से छुटकारा पाएं ? जिसके कारण वे परिवार का विद्रोह भी करते हैं. 


कॉलेज के अंतिम वर्ष की छात्रा निशा कहती है - “ आज की जनरेशन पुरानी बातों में यकीन नहीं रखती है. हमारे माता पिता समझते ही नहीं है कि शादी ही जीवन का आखिरी विकल्पं नहीं है ,यदि हम अपने पार्टनर से खुश नहीं है तो तलाक ले सकतें हैं, समझौता क्यों करें. आजकल डेटिंग ऍप उपलब्ध है. डेट करना बहुत नार्मल सी बात है. हम किसी अनजान व्यक्ति के साथ अपनी पूरी जिंदगी नहीं गुजार सकतें है इसीलिए एक दूसरे को समझने के लिए  डेट  करते हैं.  यदि हमारे विचार आपस में मिले तो ठीक है नहीं तो अपनी राहे अलग कर लो.


पुनीत -  मै इस बात से सहमत हूँ. वक़्त के साथ बदलना जरुरी है. लेकिन क्या हमारे बढ़ते हुए कदम सार्थक सिद्ध होते है या फिर हमें गर्त में भी धकेल सकतें है?  जिसे हम  मौज  मौज- मस्ती व अपनी जिंदगी का नाम  दे रहें है क्या वह हमारे भविष्य के लिए सही दिशा निर्माण करेगी ?


   हमारे पेरेंट्स का  हमें बार बार टोकते है जो हमें नागवार गुजरता है कि यह मत करो, ऐसे मत रहो  !आखिर वे समझते  क्यों नहीं है कि वक़्त बदल गया है. यह हमारे जीने का तरीका है. क्यूंकि हम उनके  बंधनों को नहीं मानते हैं जिसमें उन्होंने अपना जीवन समझौता करके गुजारा है. शायद यही जनरेशन गैप है. उन्होंने दो अनजान लोग नाखुश होकर भी साथ रहते हैं.


समय के साथ हमें बदलना चाहिए लेकिन अपने बड़ो के अनुभव का लाभ लेने में कोई हर्ज नहीं है। आजकल सेक्स, ड्रग, ड्रिंक लेना बहुत आम बात हो गयी है. यदि हम अपने दोस्तों की उन पार्टी का हिस्सा नहीं बनते हैं तो वे हमें छोड़ देते हैं. सेक्स ड्रिंक और ड्रग  आज के समय में हमारी पढ़ाई  का  हिस्सा बन  गए हैं!  


 मेरे दो दोस्त  कुछ महीनों से आपस में डेट कर रहे थे फिर लिव इन में रहने लगे, उन्होंने आपसी समझ से अपनी सीमाएं पार कर ली..  उनका कहना है कि समय बदल गया है और हम उसे अपनी तरह से जीना चाहेंगे. लेकिन इसी मौज मस्ती ने उन्हें एक दूसरे से जुदा कर दिया। बाद में आपसी मतभेद के बाद वे अलग हो गए और आगे बढ़ने का प्रयास करने लगे. जो बेहद कष्टकारी था. रोहित व नेहा दोनों इमोशनल रूप से आहत हुए और  डिप्रेस्शन का शिकार बने. एक ने नशे को अपना साथी बनाया तो दूसरा उसी प्यार के पीछे पागल हो गया. 


स्कूल व  कॉलेजों  के बाहर क्लास बंग करके मौज मस्ती करना किसे अच्छा नहीं लगेगा लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इससे कॅरियर व भविष्य के मार्ग से हम भटक भी रहे हैं. क्या सेक्स ही जीवन का अंतिम सत्य है? नशा उन्माद  पैदा करता है और स्टेटस सिम्ब्ले भी बन गया. कॉलेजों में बढ़ता हुआ  सेक्स ड्रिंक व ड्रग का उन्माद हमें सोचने पर मजबूर करता है  कि हम  अपने भविष्य  का किस प्रकार विकृत निर्माण  कर रहें  है?


आजकल लड़कियां भी इन  मादक द्रव्यों  का खुले आम  सेवन करती ." आजादी खुलापन व आधुनिकता के नाम पर ब्राइट लड़के - लड़कियां ड्रग पैडलर व यौन शोषण के शिकार बन रहे  है. ऐसी कई घटनाएँ देश के अलग - अलग शहरों से सामने आई हैं. छोटे शहरों व गांव से आई हुई लड़कियां जल्दी ही इस रंगीन चकाचौंध  की गुमनामियों में खो जाती है.


मुंबई के कुछ कॉलेज का सर्वे किया तो पाया कि स्टूडेंट क्लास को बंग  करके कालेज के आसपास  बाहर समूह व जोड़ें में चिपके बैठे रहतें हैं. मरीन ड्राइव किनारे  तपती धूप में  चिपक कर बैठेना,  हाथों में सिगरेट व  मुंह से धुआं उड़ाते हुए संस्कारों  की धज्जियां उड़ाना, तो वहीँ कुछ जोड़ों का मदहोश अवस्था में दिन दुनिया से बेखबर  खुले आम  किस करते हुए उन्माद  व अपनी रंगीनियो  में डूबे रहना पाश्चात्य संस्कृति को आत्मसाध कर लिया है.  आंखों की शर्म जैसे उन्होंने पानी में  फ़ेंक दी है . यह नजारा मुंबई में सरे आम हर कॉलेज के बाहर आपको नजर आएगा. आंखों की शर्म देखने वालों को आती है लेकिन आजकल  युवा वर्ग की आँखों में शर्म का नामोनिशान भी नहीं होता है. शायद इसका कारण है  अपनी रूढ़िवादी पारम्परिक जड़ो को उखाड़ फेंकना है.  यह बात चिंता का विषय है  कि आज  को जीने की चाहत में कहीं हम अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहें है?



 नरीमन पॉइंट, गिरगाँव चौपाटी, जुहू चौपाटी, बस स्टैंड, रेस्टोरेंट में कमोवेश यह नजारा आपको हर जगह नजर आएगा. सिर्फ मुंबई ही नहीं आजकल इस विकृत मानसिकता ने देश में हर कोने में अपने पैर पसार लिए हैं.  आधुनिकता का नाम पर इसका लाइसेंस आज युवा वर्ग ने स्वयं  निर्माण कर लिया है. इसी तरह नागपुर का तेलंगखेड़ी, जापानी गार्डन जहाँ हर पेड़ के पीछे युवा जोड़े अपनी दुनिया में खोये रहते है. 


मैंने अपने कुछ  युवा मित्रों से उनके विचार जानने का प्रयास किया तो निष्कर्ष एक ही निकला. उनका कहना था कि आजकल यह सब प्रचलन में है. लेट नाइट पार्टी करना, नाईट आउट करना,   डेट करना, पब जाना, ड्रग  लेकर अपनी ही एकांत दुनिया में मस्त रहना. यही वक्त है अपने  सभी चीजों का शौक पूरे कर लें ,पूरी जिंदगी पड़ी है काम करने के लिए.  

उनका कहना है कि जिंदगी सिर्फ किताबों में नहीं, मौज मस्ती के लिए भी होती है.अगर हम इतनी मेहनत पढ़ाई में करते हैं तो जिंदगी को आसान क्यों ना बनाएं?  यह हमारा स्पेस है और हमें यह स्पेस चाहिए. 


  स्पेस के नाम पर कथित हाई क्लास लिविंग स्टैंडर्ड को जीवन में उतारना जिसका अंत  बेहद मानसिक कष्टदायक होता है.  ज्यादातर यह सोच  अमीर घरानों में ज्यादा पाई जाती है जिसका असर मध्यमवर्गीय से लेकर निम्न  वर्ग तक होने लगा है. आजकल शिक्षा के लिए सभी अपने घरों से दूर जाकर रहते हैं. जहाँ परिवार से दूरी और शहरों का अकेलापन शायद  हमें दिशा में मोड़ देता है.


 हाल ही में  मैंने नरीमन पॉइंट  घूमने के लिए मैंने टेक्सी हायर की और उससे वहां बैठे अपने हम उम्र युवाओं के बारे में जानने का प्रयास किया. बातचीत के दौरान  टैक्सी वाले ने बताया-


“  मैडम यह सब कॉलेज के बच्चे हैं जो ड्रग पीकर दिन  भर यहां बैठे रहते हैं और रात में नशे में धुत लड़खड़ाते हुए पब से बाहर निकलते हैं.  इतना ज्यादा पीते हैं कि खुद को संभाल नहीं सकते. ऐसी सवारी ले जाने में भी डर लगता है कि कहीं पुलिस हमें ना पकड़ ले. “


 भैया  तुम ऐसे कैसे कह सकते हो ?


वह बम्बई का रहने वाला नहीं था इसीलिए डर रहा था. जब उसे भरोसे में लिया तो कहने लगा - 

 

“  मैडम मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं मैं यहीं के  हीरा व्यापारी  जोहरी मैडम (बदला हुआ नाम ) के यहां ड्राइवर हूं. जब मुझे छुट्टी मिलती है तब मैं अपनी खुद की टैक्सी चलाता हूं. मैडम अभी देश के बाहर गई है तो वह अपने लड़के को भी साथ ले गई है. उसका लड़का बहुत ज्यादा ड्रग  लेता  है. अब उसे रिहेब लेकर जाती है. यहां दिन भर कॉलेज के बच्चे बैठे रहते हैं. मैडम इन लोगों के पास इतना पैसा है कि वह अपने बच्चों को भी नहीं देखते हैं इसीलिए सारे बच्चे बिगड़े हुए हैं. अब हमारी  मैडम अपने बच्चे को अकेला नहीं छोड़ती  इसलिए विदेश भी  जाती है तो उसे साथ लेकर जाती है. 


पिछले 3 महीने से इसी इलाके में टैक्सी चला रहा हूं, रोज ही ऐसे लड़के लड़कियों को छोड़ता हूँ लेकिन रात में ऐसी  सवारी नहीं लेता हूँ ,पता नहीं कब पुलिस पकड़ ले. इनके  सिगरेट में ड्रग होती है कल देर रात एक लड़की जो इतनी ज्यादा नशे में थी कि खुद ठीक से खड़ी भी  नहीं सकती थी उसे दो लड़को ने संभाला हुआ था.  मुझसे बोले भैया घर छोड़ दो तो हम ने मना कर दिया, अकेली लड़की को लेकर जाना झंझट ही है और मैडम यहां पुलिस कभी भी पकड़ लेती है. मैं सभी बड़े लोगों को यहाँ  देख रहा हूँ. 

 मैडम इनके पान व सिगरेट सभी में ड्रग होती  है आप स्वयं ही देख लीजिएगा. कमोवेश हर  कॉलेज के बाहर यही नजारे हैं. 


प्रश्न यह है कि कॉलेज में हो रही गतिविधियों पर क्या कॉलेज प्रशासन का ध्यान नहीं जाता? वैलेंटाइन डे के खिलाफ आवाज उठाई जाती है  लेकिन यहाँ रोज वैलेंटाइन मनाते हुए जोड़े  नजर नहीं आते हैं?



छोटे शहर की  प्रज्ञा ने पुणे  के एक कॉलेज में एडमिशन लिया. प्रज्ञा के लिए यह दुनिया अलग ही थी. 1- 2 पीरिएड  अटेंड करने के बाद बच्चे बाहर भाग जाते थे. कुछ छात्र छात्राओं को छोड़कर    शेष क्लास का  मौज- मस्ती, घूमना- फिरना, खाना - पीना ही रूटीन में शामिल था. पहले उसे लगा कि कोई पढता ही नहीं है, वह उनसे निश्चित दूरी बनाकर रखती थी. लेकिन कब तक वह अकेले हॉस्टल के कमरे में पड़ी रहती, उनसे दोस्ती के लिए वह भी उनके साथ हर पार्टी में शामिल होने लगी. जो उसके जीवन का अभिन्न अंग बन गए. यहाँ कपल की तरह जोड़े बनते है जो क्षणिक साथ के लिए है. कुछ छात्र छात्रा शादी शुदा जोड़े की तरह फ्लैट में रहते है और पढाई  पूरी होने पर स्वेच्छा से तलाक लेते है. ऋतू बदला हुआ नाम - ने बताया हमें फ्लैट चाहिए था लिव इन में रह  सकते है। लेकिन मालक मालिक के कारण हमने शादी की और सेर्टिफिकेट दिखाया। इस तरह के मामले पुणे कोर्ट में दाखिल भी हुए है. दूसरे शहर रहने वाले बच्चो के माता पिता को पता ही नहीं बच्चे क्या करते है. वे इसी भ्रम में रहते है कि उनके बच्चे पढ़ रहे हैं लेकिन यहाँ दृश्य अलग होता है.


प्रज्ञा का कहना है  कि - क्या यार प्रोफ़ेसर तो बोर करते हैं, जब  हमें खुद ही पढ़ना है, फिर क्लास क्यों अटैंड करे.  कॉलेज की पढ़ाई ऐसी ही होती है.  कॉलेज में सभी कपल  हैं. मै कब तक अकेली घूमती, यह सब करना पड़ता है. जोड़ी बनाना, लिव इन रिलेशन में रहना, तनाव घटाने के लिए ड्रग, एल्कोहल का इस्तेमाल करना, सेक्स का अनुभव लेना पढ़ाई का हिस्सा बन गया है. इसमें कोई बुराई नहीं है. जब पानी में रहना है तो मगर के साथ बैर क्यों करें? चखने में कोई बुराई नहीं है.


कई  स्टूडेंट का कहना है कि हम लाइफ में पढ़ाई को लेकर  हार्ड वर्क करते हैं तो  जिंदगी को एंजॉय क्यों नहीं करें?  अलग-अलग लोगों के साथ में सेक्स  करने में आपत्ति क्यों है?  हम डेट करते हैं.  पार्टी करते हैं. पार्टी में ड्रिंक हमें टेंशन से मुक्त करता है. दोस्तों ने कहा है तो मानना ही पड़ेगा आखिर हमें साथ ही रहना है. डेट करना आम बात है.  पसंद आये तो ठीक वर्ना रास्ते बदल लो.


दोस्तों के जुमले अक्सर उन पर असर करते हैं जो उनकी पार्टी में नए जुड़ते हैं 

“ यार थोड़ा चख लो टेंशन कम हो जाएगा.  कुछ नहीं होगा, खाने के बाद पान खा लो. दोस्तों की बात माननी पड़ती है. शुरुआत में अच्छा नहीं लगा लेकिन अब इसकी आदत हो गयी है.


 मुंबई के एक कॉलेज के पास एक पान वाला बहुत प्रसिद्द है  “ सीताराम का पान “ (बदला हुआ नाम )बहुत प्रसिद्ध है स्पेशल पान खाने वाले और स्पेशल पान खिलाने वाला दोनों ही खास थे. इस स्पेशल पान खाने वाला ग्राहक युवा वर्ग ही ज्यादा था.  


 विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ कि उसके पान में वह  कुछ मिलाता है लेकिन पता कैसे किया जाय. उसका पान वह अपने हाथों से अपने ग्राहकों को प्रेम से खिलाता है. उसका  पान खाने का टेंप्टेशन बहुत ज्यादा होता है.  मूड फ्रेश होता है. धीरे-धीरे आपको उसकी लत लग जाती है. लेकिन कहने के लिए यह हेल्दी पान ही तो है. पान खिलाकर वह अपनी बिक्री  बढ़ा रहा है और नशे  के जाल को फैलाकर बखूबी अंजाम दे रहा है.


सतीश (बदला हुआ नाम ) ने बताया -  एक बार उसकी दुकान पर बहुत भीड़ थी मैं पीछे खड़ा हुआ अपने पान की राह देख रहा था कि  अचानक देखा एक बड़ी सी गाड़ी आकर दुकान के सामने रुकी.जिसमें एक २४ वर्ष की कोई मैडम थी.  मैडम ने इशारा किया  तो पान वाले ने बहुत तेजी से पान बनाया और डब्बे के पीछे तेजी से चुटकी भर कुछ निकालकर  पान मसाले में मिलाकर पान बना  दिया और तेजी से जाकर उस गाड़ी में बैठ गया.


यह व्यवहार कुछ अनुचित सा प्रतीत हुआ. नजर रखने पर पाया कि वह हर पान में ऐसा नहीं करता है  लेकिन कुछ अमीरजादों  और कॉलेज के युवा जिनकी संख्या ज्यादा है वे उस स्पेशल पान के ख़रीददार हैं. 


उसी के एक पुराने कामगार  कमलेश ( बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह उसमें ड्रग डालता है जब लोगों को उसकी लत लग जाती है तो प्रमाण भी बढ़ जाता है.  मेरे कजिन को रिहैब सेंटर लेकर गए थे तब उसने बताया कि वह तो सिर्फ पान ही खाती थी. तब उस पान का रहस्य खुला.  जहर का यह व्यापार ना जाने कितने हम जैसे युवाओं को  अपना शिकार बना रहा है. मैंने तो उसके यहाँ काम छोड़ दिया है.  चुप रहने में ही भलाई है  क्योंकि उसकी बड़े - बड़े  माफिया लोगों से संबंध हैं. 


एक बार मै अपने दोस्तों के साथ जुहू घूमने गया. वहां  हम द टेरेस रेस्टोरेंट ( बदला हुआ नाम ) में  डिनर करने  के लिए गए.  बाहर से सामान्य दिखने वाले  होटल में टेरेस पर जाने के लिए अपने आधार कार्ड को दिखाकर ही जाना पड़ता है. यह बात समझ में नहीं आयी कि खाना खाने के लिए अपना पहचान पत्र क्यों  दिखाना है ?  जब हम सीढ़ियां चढ़कर अंदर गए तो वह सीढ़ियां हमें दूसरी  ही दुनिया में  ले गईं.  खाली ड्रम से बनी हुई टेबल और स्टूल रखें थे.  वहीं कुछ अलग प्रकार की  जमीनी  बैठक अलग - अलग कॉर्नर में थी. जहाँ  छोटे- छोटे कपड़ों में लड़के लड़कियां बैठे  हुक्का  पी रहे थे. आधे से ज्यादा खुला हुआ बदन मादकता दिखाने के लिए पर्याप्त था.  स्पेशल हुक्का और हाथों में बीयर का ग्लास, अंग्रेजी नामों का डिनर पूरा टेर्रेस भरा हुआ था.  पाश्चात्य संस्कृति का जीता जागता नमूना हमारे सामने था.  सामने ही एक टेबल पर बीयर बार बना हुआ था जहां से बीयर सप्लाई हो रही थी. अमीरजादों का ठिकाना और गौर करने पर पाया कि कुछ ऐसे चेहरे थे जिन्होंने हाल ही में जैसे इस  परिवेश में शामिल होने की भरकस प्रयास किया हो.


 हुक्का पीते- पीते एक जोड़े ने वेटर को इशारा किया कि हमें पर्दे वाला जमीन पर लम्बी बैठक वाला  टेंट चाहिए वहां की सेटिंग करो. बेटर जल्दी से उसके बाद उन्हें टेंट में ले गया. हुक्का  स्पेशल रखा गया.  सफेद पाउडर सा दिखने वाला पदार्थ डाला गया और बियर की बोतलें, उसके बाद  पर्दा गिरा दिया गया......  पर्दे के बाहर डू नॉट डिस्टर्ब का बोर्ड लगा दिया. मारिजुआना, कोकीन, पैन किलर, लेना आम बात हो गयी है. सिर भारी हो जाता है, कुछ समय के लिए हम अपनी परेशानी व अकेलेपन, असफलता से तो झूझ लेते हैं लेकिन लम्बे वक़्त के लिए स्वयं को गर्त में धकेल देते हैं. 


नीलेश का कॉलेज में बहुत नाम है, वह सभी लोगों को ड्रैग सप्लाई करता है. मेरी उससे दोस्ती हो गयी तो उसने एक बार नशे में अपना राज खोल दिया -  

“मुझे रैगिंग के नाम पर ड्रग दी गयी, मेरे  नहीं लेने पर सीनियर ने  बहुत मारा, सेक्स के लिए जबरजस्ती धकेला गया, नामर्द कहा….  कई बार हम मित्रों के पैसे ख़त्म हुए तो ड्रग लेने के लिए हमने चोरी की, लड़कियों से सेक्स करके उन्हें छोड़ दिया, आजकल सभी ऐसे हो गए हैं. ड्रग लेने के लिए हमें उन पेडलर की बात माननी पड़ती है , अपनी गर्लफ्रेंड बनाकर उन्हें भी इस सबमें शामिल करो. अब मै बाहर आना चाहता हूँ लेकिन नहीं आ सकता, ये नशा अब मुझे जीने नहीं देता है. काश मैंने रैगिंग के खिलाफ आवाज उठाई होती, मै अपने हम उम्र दोस्तों की नजर में गिरना नहीं चाहता था. ….  मदहोशी में बोलते हुए व सो गया. “ 



 अमेरिका जैसे देशों में यह आम बात है. लेकिन इस कल्चर ने धीरे - धीरे भारत के हर कोने में अपने पाँव पसार लिए हैं. 


 देश के अलग-अलग भाग में  सर्वे द्वारा ज्ञात हुआ कि युवा छात्र कंडोम का उपयोग करके सेक्स का आनंद ले रहे हैं. लेकिन कई बार यह इसे गर्भनिरोधक के रूप में ही नहीं नशे की तरह भी इस्तेमाल कर रहे हैं. यह तथ्य चौकाने वाले थे कि ऐसा कैसे हो सकता है ?. कंडोम में एक सुगन्धित तत्व डेन्ड्राइट होता है जिसे  से नशे के लिए इस्तेमाल किया जाता है. 


रसायन विज्ञान के एक शिक्षक के अनुसार कंडोम  में जो सुगन्धित यौगिक तत्व होता है जिससे सामान्य रूप में नशे के लिए उपयोग  किया जाता है, यह नशे का एक घटिया प्रकार है. गर्म पानी में कंडोम को ज्यादा देर तक रखने  पर रिलीज होकर निकलने वाला अल्कोहल कंपाउंड युवाओं को मदहोश कर रहा है. 


जब बात नशे की आती है  उनके पास तो विचित्र विकल्प होते हैं. कुछ विचित्र आदतों में लोग  खांसी की दवाई पीना, सूंघने वाला गोंद और औद्योगिक चिपकने वाले उत्पाद, इनहेलिंग पेंट, नेल पॉलिश और इनहेलिंग व्हाइटनर शामिल हैं.


यहां तक ​​कि कई लोग हैंड सैनिटाइजर और आफ्टर शेव के सेवन से नशा करते देखे जा रहे हैं. यह नशा उन्हें काल्पनिक दुनिया में संतुष्ट खुश होने का एहसास दिलाता है , फिर जब जमीनी हकीकत से सामना होता है तब तक देर हो जाती है।  कुछ जिंदगियां बनने से पहले गर्त में खो जाती है या कुछ दिशाहीन होकर एक अंधी दौड़ में भी शामिल हो जाती है. हमारी जरा सी कमजोरी का फायदा  शातिर क्रिमिनल उठा सकतें है जिसका आभास शायद हमें वक़्त कराएं।अकेलेपन व अपने मित्र वर्ग को पहचान कर ही आगे बढे. अपने पेरेंट्स के अनुभव का लाभ लेने में कोई हर्ज नहीं है,


दोस्तों  मै तो यही कहना चाहूंगी कि कहीं हम अपनी सेहत व इमोशन के साथ खिलवाड़ करते हुए अपने भविष्य को दांव पर तो नहीं लगा रहे हैं ? क्या यह स्पेस हमारे जीवन को सही दिशा प्रदान करेगी ? यह  एक  अंधी गुफा जिसका कोई मुहाना नहीं है, एक  अंधी दौड़ जिसका अंत नहीं है। 

शशि पुरवार 


contact- shashipurwar@gmail.com


सरिता पत्रिका में प्रकाशित इस लिंक पर

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Wednesday, October 29, 2025

सामाजिक मीम पर व्यंग्य कहानी अदद करारी खुश्बू


 अदद करारी खुशबू 


शर्मा जी अपने काम में मस्त  सुबह सुबह मिठाई की दुकान को साफ़ स्वच्छ करके करीने से सजा रहे थे ।  दुकान में बनते गरमा गरम पोहे जलेबी की खुशबु नथुने में भरकर जिह्वा को ललचा ललचा रही थी। अब खुशबु होती ही है ललचाने के लिए , फिर गरीब हो या अमीर खींचे चले आते है।   खाने के शौक़ीन ग्राहकों का हुजूम सुबह सुबह उमड़ने लगता था। खाने के शौक़ीन लोगों के मिजाज भी कुछ अलग ही होते हैं।   कुछ  गर्मागर्म पकवानों को खाते हैं कुछ करारे करारे नोटों को आजमाते हैं।  अब आप कहेंगे नोटों आजमाना यानि कि खाना। नोट आज की मौलिक जरुरत है।  प्रश्न उठा कि नोट  कौन खा सकता है। अजी बिलकुल खाते है , कोई ईमानदारी की सौंधी खुशबू का दीवाना होता है तो कोई भ्रष्टाचार की करारी खुशबू का।   हमने तो  बहुत लोगों को  इसके स्वाद का आनंद लेते हुए देखा है।  ऐसे लोगों को ढूंढने की जरुरत नहीं पड़ती अपितु ऐसे लोग आपके सामने स्वयं हाजिर हो जाते हैं। खाने वाला ही जानता है कि खुशबू  कहाँ से आ रही है। जरा सा  इर्द गिर्द नजर घुमाओ , नजरों को नजाकत से उठाओ कि  चलते फिरते पुर्जे नजर आ जायेंगे।  

   हमारे शर्मा जी के  दुकान के पकवान खूब प्रसिद्ध है।  बड़े प्रेम से लोगों  को प्रेम से खिलाकर अपने जलवे दिखाकर पकवान  परोसते हैं।  कोर्ट कचहरी के चक्कर उन्हें रास नहीं आते।  २-४ लोगों को हाथ में रखते है।  फ़ूड विभाग वालों का खुला हुआ मुँह भी रंग बिरंगे पकवानो से भर देते हैं।  आनंद ही आनंद व्याप्त है।  खाने वाले  भी जानते है कहाँ कितनी चाशनी मिलेगी। 

 फ़ूड विभाग के पनौती लाल को और क्या चाहिए।  गर्मागर्म पोहा जलेबी के साथ करारा स्वाद उनके पेट को गले तक भर देता है।  उन्हें  मालूम है  जहाँ गुड़ होगा मक्खी भिनभिनायेंगी।  पकवान की खुशबू  में मिली करारी खुशबू का स्वाद उनकी जीभ की तृषा  शांत करता है।  आजकल लोगों में  मातृ भक्त  ईमानदारी कण कण में बसी थी।  यह ईमानदारी करारी खुशबू के प्रति वायरल की तरह फैलती जा रही है।  आजकल के वायरस भी सशक्त है तेजी से संक्रमण करते है। संक्रमण की बीमारी ही ऐसी है जिससे कोई नहीं बच सकता है।  

   शर्मा जी के भाई  गुरु जी कॉलेज में प्रोफेसर है।  वैसे गुरु जी डाक्टर हैं किन्तु डाक्टरी अलग प्रकार से करते है।  उनकी डाक्टरी के किस्से कुछ अलग ही है।  अपने भाई पनौतीलाल से उन्होंने बहुत कुछ सीखा , उसमे सर्वप्रथम था करारी खुशबू का स्वाद लेना व स्वाद देना।  यह भी एक कला है जिसे करने के साधना करनी होगी।   

वह डाक्टरी जरूर बने पर मरीज की सेवा के अतिरिक्त सब काम करतें है।  कॉलेज में प्रोफेसर की कुर्सी हथिया ली।   किन्तु पढ़ाने के अतिरिक्त सब काम में महारत हासिल है  और बच्चे भी उनके कायल है।  मसलन एडमिशन करना , बच्चों को पास करना , कॉलेज के इंस्पेक्शन करवाना , कितनी सीटों से फायदा करवाना ...  जैसे अनगिनत काम दिनचर्या में शामिल है। जिसकी लिस्ट भी रजिस्टर में दर्ज न हो।   हर चीज के रेट फिक्स्ड है।  जब बाजार में इंस्टेंट  वस्तु उपलब्ध हो तो खुशबू कुछ ज्यादा  ही करारी हो जाती है।  ऐसे में बच्चे भी खुश हैं ;  वह भी नारे लगाते रहते है कि  हमारे प्रोफेसर साहब जिन्दावाद। गुरु ने ऐसा स्यापा फैलाया है कि कोई भी परेशानी उन तक नहीं पंहुच पाती।  विद्यार्थी का हुजूम उनके आगे - पीछे रहता है।  गुरु जी को नींद में करारे भोजन की आदत है। स्वप्न भी उन्हें सोने नहीं देते।  जिजीविषा कम नहीं होती।  नित नए तरीके ढूंढते रहते है। 

 उनका जलवा ऐसा कि नौकरी मांगने वाले मिठाई के डब्बे लेकर खड़े रहते है।  उनका डबल फायदा हो रहा था।  असली मिठाई पनौती लाल की दुकान में बेच कर मुनाफा कमाते व करारी मिठाई सीधे मर्तबान में चली जाती थी।  यानी पांचो उंगलिया घी में थी।  

 एक बार उन्होंने सोचा अपनी करीबी रिश्तेदार का भला कर दिया है।  रिश्तेदारी है तो कोई ज्यादा पूछेगा नहीं।  अपना भी फायदा उसका भी भला हो जायेगा।  भलाई की आग में चने सेंकना गुरु जी की फितरत थी। 

 अपनी  रिश्तेदार इमरती को काम दिलाने के लिए महान बने गुरु जी ने उसे अपने कॉलेज में स्थापित कर दिया। उसका  सिर्फ एक ही काम था कॉलेज में होने वाले इंस्पेक्शन व अन्य कार्यों के लिए  हस्ताक्षर करना और कुर्सी की शोभा बढ़ाना।  महीने की तय रकम की ५००० रूपए। 

  गुरु जी पान खाकर लाल जबान लिए घूमते थे।  बेचारी इमरती को देते थे ५००० रूपए और शेष २५००० अपनी जेब में।  यह गणित समझने वालों के लिए मुश्किल हो सकता है चलो हम आसान कर देते हैं।  गुरु जी अपने करारे कामों के लिए इतने मशहूर थे कि बच्चों से लेकर स्टाफ तक; उनकी जी हुजूरी करता है।  ऐसे में गुरु जी लोगों से ठेके की तरह काम लेते और  गऊ  बनकर सेवा धरम करते। रकम की बात दो दलों से करते स्वयं बिचौलिए बने रहते।   दूध की मलाई पूरी खाने के बाद ही दूध का वितरण करते थे ।  करारी खुशबू की अपनी एक अदा है।  जब वह आती है तो रोम रोम खिल उठता है जब जाती है तो जैसे बसंत रूठ गया हो। 

 दोनो भाई मिल जुलकर गर्मागर्म खाने के शौक़ीन  थे।  इधर कुछ दिनों से इमरती को मन के खटका होने लगा कि कम पगार के बाबजूद गुरु जी की  पांचो उँगलियाँ  घी में है और  वह स्वयं सूखी  रोटी खा रही है।  इंसान की फितरत होती है जब भी वह अपनी तुलना दूसरों से करता है उसका तीसरा नेत्र अपने आप खुल जाता है।  भगवान शिव के तीसरे नेत्रों में पूरी दुनिया समायी है , पर जब एक स्त्री अपना तीसरा नेत्र खोलती है तो  उससे कुछ  भी छुपाना नामुमकिन है। वह समझ गयी कि दाल में कुछ काला ही नहीं  पूरी दाल ही काली है।  खूब छानबीन करने के बाद गुरु जी क्रियाकर्म धीरे धीरे नजर आने लगे।  कैसे गुरु जी उसका फायदा उठाया है।  उसके नाम पर  लोगों से ४०००० लेते थे बदले में ५००० टिका देते है। शेष अपने मर्तबान में डालते थे। 

   इतने समय से काम करते हुए वह भी होशियार हो चली थी , रिश्तेदारी को अलग रखने का मन बनाकर अपना ब्रम्हास्त्र निकाला।  आने वाले परीक्षा के समय अपना बिगुल बजा दिया , काम के खिलाफ अपनी  संहिता लगा दी।  

" इमरती समझा करो , ऐसा मत करो "

" क्यों गुरु भाई आप तो हमें कुछ नहीं देते हैं फ़ोकट में काम करवा रहे हो  "

 " देता तो हूँ ज्यादा कहाँ मिलता है , बड़ी मुश्किल से पैसा निकलता है , चार चार महीने में बिल पास होता है "

" झूठ मत बोलो , मुझे सब पता चल गया है, आज से मै आपके लिए कोई काम नहीं करुँगी।  "

अब गुरु जी खिसियानी बिल्ली की तरह खम्बा नोच रहे थे।  सोचा था करीबी रिश्तेदार है।  कभी दिया कभी नहीं दिया तो भी फर्क नहीं पड़ेगा।  बहुत माल खाने में लगे हुए थे।  पर उन्हें क्या पता खुशबू सिर्फ उन्हें ही नहीं दूसरों तक भी पहुँचती है।  

इमरती की बगावत ने उनके होश उड़ा दिए , बात नौकरी पर आन पड़ी।  आला अफसर सिर्फ करारे काम ही देखना पसंद करते हैं उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि करारे व्यंजन में उपयोग होने वाली सामग्री कैसी है। यहाँ  हर किसी को अपनी दुकान चलानी है।   कहतें है जब मुंह को खून लग जाये तो उसकी प्यास बढ़ती रहती है। यही हाल जिब्हा का भी है।  तलब जाती ही नहीं। 

 इमरती के नेत्र क्या खुले गुरु जी की  जान निकलने  लगी।  गुरु जी इमरती को चूरन चटा रहे थे किन्तु यहाँ इमरती ने ही उन्हें चूरन चटा दिया।  कहते हैं न सात दिन सुनार के तो एक दिन लुहार का।  आज इमरती चैन की नींद सो रही थी।  कल का सूरज  नयी सुबह लेकर आने वाला था। सत्ता हमेशा एक सी नहीं चलती है। उसे एक दिन बदलना ही पड़ता है।      

  गुरु जी के होश उड़े हुए थे। उन्हें समझ में आ गया उनकी ही बिल्ली उन्ही से माउं कर रही है।  करारी खुशबू ने अब उनका जीना हराम कर रखा था।  खुशबू को कैद करना नामुमकिन है।  इमरती को आज गर्मागर्म करारी जलेबी का तोहफा दिया।  भाई होने की दुहाई दी।  रोजी रोटी का वास्ता दिया और चरणों में लोट गए।

  खुशबू जीत गयी थी।  अब मिल बांटकर खाने की आदत ने अपनी अपनी दुकान खोल ली  और अदद खुशबू का करारा साम्राज्य अपना विस्तार ईमानदारी से कर रहा था। जिससे बचना कठिन ही नहीं नामुमकिन है। दो सौ मुल्कों की पुलिस भी उसे कैद करने असमर्थ है।  करारी खुशबू   का फलता फूलता हुआ साम्राज्य विकास व समाज को कौन सी  कौन दिशा में ले जायेगा।

    यह सब कांड देखकर शर्मा जी को हृदयाघात का ऐसा दौरा पड़ा कि  परलोक सिधार गए।  सुबह गाजे बाजे के साथ उनकी यात्रा निकाली गयी।  उनके करारे प्रेम को देखकर लोगों ने उन्हें नोटों की माला पहनाई।  नोटों से अर्थी सजाई। फूलों के साथ लोगों ने नोट चढ़ाये।  लेकिन आज यह नोट उनके किसी काम के नहीं थे।  उनकी अर्थी पर चढ़े हुए नोट जैसे आज मुँह चिढ़ा रहे थे। आज उनमे करारी खुशबू नदारत थी।  
   
शशि पुरवार 

Tuesday, October 28, 2025

“जब मूर्खता को मिला मंच : महामूर्ख सम्मेलन का व्यंग्य”








आज महामूर्ख सम्मलेन अपनी पराकाष्ठा पर था।  सम्मलेन में  मौजूद मूर्खो की संख्या देखकर हम सम्मेलन के मुरीद हो गए. हमें  एहसास हुआ कि हम मूर्खानगरी के नागरिक है , दुनिया ही मूर्खो की है तो हम कहाँ से पृथक हुए।  खरबूजे को देख खरबूजा ही रंग बदलता है , किन्तु यहाँ हर रंग अपने सिर पर मूर्खो का ताज सजाने को आमादा है।


 सम्मेलन में शामिल सभी महामूर्खो ने अपनी-अपनी मूर्खता की पराकाष्ठा का परिचय श्रोताओं को दिया।  आयोजन समिति द्वारा सभी गणमान्यों  व जनता से  जुडी  हस्तियों को अलग-अलग अलंकरणों से नवाजा गया।  आयोजन समिति
द्वारा सभी गणमान्यों सहित राजनीति, शिक्षा, चिकित्सा, समाजसेवा, प्रशासन आदि से जुड़े हस्तियों को अलग-अलग अलंकरणों से नवाजा गया।  राजनेता शंकर  खैनी को महामूर्ख शिरोमणि, शिक्षा में अशिक्षित देवधर  महामूर्ख रत्‍‌नेश्वर,  चिकित्सा में छोला छाप सेवक को मूर्ख  सम्राट,  मूर्ख शिसरोमणि,   महामूर्ख मातर्ड,   मूर्खाधिपति,   मूर्खनंदन आदि अनंत उपाधियाँ लगभग कर कार्य क्षेत्र में बांटी गयी है।  सबकी चर्चा  करने में शर्मा  जी शर्मा रहे थे।  आज पहला अध्याय ही पढ़ने का मन है।

हमारे महामूर्ख शिरोमणि ने सम्मान उपाधि मिलते ही अपने खुशफहम शब्दों व आत्ममुग्धता के द्वारा आवरण की परतें उखाड़ना शुरू कर दी।

   नेता जी बेहद खुश अपने मूर्ख होने की पराकाष्ठा का वर्णन कर रहे थे -
सबरी जनता वाकई मूर्ख है तभी तो जनता को मूर्ख बनाने वाले  नेता का गिरेबान; आज हाथ में आ ही गया।  आज अंततः मूर्ख शिरोमणि की उपाधि से नवाजा जाना; उनके कर्म क्षेत्र का सम्मान है।  वैसे भी कर्म तो कुछ करते नहीं हैं , बस ससुरी जबान का पैसा खातें है लेकिन अब वह जबान भी फिसलती
रहती है।  आज  जब देश पर संकट छाया है तब भी खैनी जी को खैनी खाने से  फुर्सत नहीं  है , बिना बात के बबाल मचा रखा है. पक्ष विपक्ष से ज्यादा चर्चा में रहने के लिए ऐसे बोलबच्चन कहने पड़ते है।   पक्ष क्या बिपक्ष  क्या सभी एक थाली के चट्टे बट्टे है।  आप किसी भी देश में देखें जनता और
सत्ता का सम्बन्ध एक दूजे के साथ सिर्फ पैसा फेंक तमाशा देख जैसा ही है।

  जिसे देखो काटने पर तुला है और बेवक़ूफ़ जनता हर बार मोलभाव करके गद्दी का भार सौंपती है और कुछ ही दिन में उकता कर जमीन पर पड़ी दरी खींचने का भरकस प्रयास करने लगती है।  अब ज्यादा तारीफ़ करने के चक्कर में खैनी जी
की जबान वाकई पूर्णतः फिसलने लगी।

ससुरे बगल वाले का टटुआ दबा देंगे। मारधाड़ में निपुण लोग अपना काम करते रहे। इधर हाल ही में सरहद पर छींटा कशी हुई और पडोसी राज्य के महा मूर्ख  छिपानन्द कहने लगे हमने तो बारिश देखी ही नहीं है; हमारे यहाँ बारिश के कोई निशान शेष नहीं है ।  लो जी उनके सेर को सवा सेर भी मिल गया ,

जनता के मूर्ख सम्राट  सामने आकर बोलबच्चन के मंत्र पढ़ने लगे  :-
आज तेज आंधी तूफान में हमारी फसलें तबाह हुई है।  आकाश पर मंडराते काळा बादल फट गए और यहाँ गड्ढा हो गया। बारिश हुई तो धरती पानी निगल गयी। लेकिन सोना नहीं मिला।  रोज रोज फावड़ा लेकर सोना ढूंढ रहें है , ससुरा मिल जाये तो गुपच लेंगे।


इधर मुर्खाधिपति अपना माइक लेकर सामने आ गए - आज के ताजा समाचार -

यही वह आदमी है जो दिन में भी चार चार फैनी खाकर सोता रहता है। आज जलेबी खाने में लगा हुआ है।  आप इसको हमारे कैमरे में देख सकतें है।  इसका ध्यान दूसरे मूर्खो पर है ही नहीं।  अरे  बादल फटे तो झट से वहां पहुँच गया कि शायद गड्ढे में इसे पुराना पुरखो का धन मिल सकता है।

दूसरे हमारे मूर्ख सम्राट है जिन्हें समझ ही नहीं आता है कि बादल फटने से गड्ढा ही होगा , छप्पन भोग का छींका नहीं फूटा है। जब देखो सम्राट अक्सर धरने पर बैठ जाते हैं ,  साथ ही अन्नपूर्णा माता का अपमान न करते हुए चुपचाप जूस की सिप लगाते रहतें है।


आज सारे अडोसी - पडोसी  मूर्खों के सरताज सम्मलेन में शामिल होने आ रहें है। जब आग जले तो हाथ सेंक  लेना चाहिए।  गेंद  किस पाले में जाएगी वह समय पर तय करेंगे। अभी मूर्ख मणिताज का सवाल है।

इधर दूसरी तरफ महामूर्ख चिंतामणि ने अपने बखान शुरू कर दिए -  

हमने पहले ही कहा था शनि की महादशा है , आज राहु ने अपना घर बदल लिया है , शनि भारी है  उथलपुथल मची रहेगी।  मन को शांत रखें , लाल वस्त्र धारण करें , लाल
ही खाएं , लाली लगाएं , लाल  पिए और  लाल  हो जाएँ।

दिन में दो बार स्नान करें फिर जलपान करें , पडोसी को जल देना बंद करे इससे आपके घर में जल संचय होगा , फिर उसे बाँटना।  मंगल  भड़क  सकता है ; सूर्य पश्चिम में घूमने गएँ है ;  चंद्र आपको दर्शन देंगे , आज ताज को सर पर धारण रखें शीघ्र परीक्षा का निकाल होगा।  आज खेल आर या पार होगा।  हम
ही जीतेंगे।  ऐसी उच्च कोटि  के विचार छोटे से दिमाग में समां ही नहीं
रहे थे।
हमने जिज्ञासा वश प्रश्न उछाल दिया - प्रभु आगे का संक्षिप्त में हाल  बताएं - ताज किसे मिलेगा या नहीं।


उत्तर मिला - अभी  फिल्म जारी है ; आप अपना ध्यान केंद्रित करें ,
यह मंत्र पढ़ने से आप जल्दी मूर्ख बनने की प्रक्रिया पूर्ण करेंगे और आपको जल्दी ही मोती जड़ित शिरोमणि  से नवाजा जायेगा।

ओम मूर्ख मुर्खस्वः, तस्सः मुखर मुरेनियम
मूर्खो देवस्वः धी महि. दियो मोह न मूर्खो दयाः

मूर्ख देव जयते। मूर्ख: मूर्खो : स्वाहा


शशि पुरवार

आप दूसरी पोस्ट भी व्यंग्य कहानी पढ़ सकते हैं --

https://sapne-shashi.blogspot.com/2019/05/blog-post_27.html