Monday, August 8, 2011

फिर मानवता बिलख उठी ...!


कितना   बे-गैरत   है   जमाना  
   चाहते  है   एक   आशियाँ   बनाना  . 
 
  मिटटी - गारा   तो  लाये                   
        और  फिर  सामान  फैला  कर  
  इक   टूटा  आशिया  बना  दिया  .


 मानव   मुल्यो   की   क्या   जगह    है   यहाँ  ,
   पर  कीमत  तो   आको 
   मानव  खुद  ही  बिक  जायेगा   यहाँ  !


    प्रेम  क्या  है  ?
     पूछो   इन   माटी  के   पुतलो  से  -

     " पैसा   ही  तो   प्रेम   है  ".

   सुन्दरता  क्या  है   ? 
              पूछो  इन    हस्तियों  से  ,

         "  पैसा  ही  सबसे   सुन्दर  है  " .

  इंसानियत  को   न  जानने   वाले    ये   मानव 
   इंसानियत  का   ही   ढोल  पीटते  है  !

  जिंदगी  से   खिलवाड़   करने   वाले  ये   मानव ,
      सभ्यता  को   कौन   सा   रूप  प्रदान   करते   है  ?

                                    

                                       :  - शशि   पुरवार






यह   कविता   पत्रिकाओ   में    प्रकाशित    हो    चुकी   है

14 comments:

  1. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  2. Beautiful Shashi...Words have so much depth...

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  3. संजय जी

    आपका बहुत- बहुत धन्यवाद . आपको कविताये पसंद आई .

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  4. bahut shukriya aapke bahumoolya tippani ka jiske madhyam se aapke blog se jud rahi hoon.bahut achche bhaav ukeren hain kavita me likhte rahiye.

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  5. pls word veryfication hata den to tippani karne me aasani hogi.

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  6. जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले ये मानव ,
    सभ्यता को कौन सा रूप प्रदान करते है ?

    जो हमें पसंद नहीं हो और जो इनको पसंद है वही करते हैं यह ...और आज मानवता को इन्होने किस गर्त में धकेल दिया है यह सबके सामने है .....आपका आभार

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  7. आपका लेखन यूँ ही अनवरत रूप से जारी रहे इसके लिए आपको हार्दिक शुभकामनायें

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  8. शशी जी आपकी रचनायें दिल से लिखी व भावों से भरी हैं...
    अद्भुत लेखन है आपका,मन मोह लिया आपने...

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  9. धन्यवाद , केवल राम जी

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  10. धन्यवाद , इंदु जी

    आप आये और रचनाये पसंद की ...... आपका धन्यवाद

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  11. Manavta ko gaharaye tak sanrakshit karney ki disha mai ek manviye paryas ko NAMAN .....Tathastu

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  12. omparkash ji
    dhanyavad . apko yaha dekhkar khushi hui.

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