Friday, August 26, 2011

क्यों सोचता है इंसान ........?

                                            क्यो  सोचता  है  इंसान 
                                               होंगे बच्चे  उसके  साथ .

                                          आगे  बढने  की  चाह  में  हम 
                                                  नहीं  रोक   सकते ,
                                                        उन्हें  अपने  पास .

                                         जीवन  भर   की  संजोई  धरोहर 
                                                  संजोये   सपने ,
                                                         बिखर  जाते  है
                                          जब  बच्चे  ,
                                                 दूर  हो जाते  है .

                                            एक तरफ खुशी है  , तो 
                                                      दूसरी तरफ  तन्हाई है.

                                           जीवन  की   साधना ,  आज 
                                                   सफल  हो पाई  है  , फिर 
                                          क्यूँ  जीवन  में  रिक्तता  आई  है  ..... ?
                                                                 : -  शशि  पुरवार

      यह  कविता   पत्रिकाओं  में  प्रकाशित  हो  चुकी है.
            हर  माता-पिता  कि  ये  तम्मना  होती  है  कि  उनके  बच्चे   उच्च  शिक्षा  ले  ,ऊँचा   मुकाम  जिन्दगी   में  हासिल   करे  ,  इससे    उनका  भी   मान   बढेगा .  इसलिए  वह  उम्र  भर  अपने  बच्चो  के  लिए न   जाने   कितने    त्याग   व  जतन    करते   है  . बच्चो   को   उच्च   शिक्षा   व  आगे   बढ़ने   के  लिए  घर   से   बाहर   निकलना  पड़ता   है ,  फिर   वह  वापिस   नहीं   आ  पाते   और   उम्र   के   एक   मुकाम  पर   बच्चो   की   कमी   खलने   लगाती   है .
              उन्हें  जहाँ   एक  तरफ  बच्चो  कि  उपलब्धियो   कि  ख़ुशी  होती  है  ,  वहीं  दूसरी   तरफ  तन्हाई  , अकेलापन , रिक्तता........! 
                बच्चे  तो   जिंदगी  कि  दौड़  में  रुक  नहीं  पाते ...... और  बड़े  उम्र   कि   इस   दहलीज  में  उनके  साथ   दौड़   नहीं  पाते    और   कभी  अपनी    जड़े   छोड़   नहीं  पाते .  जहाँ  इस  उम्र   में  प्यार और   सहारे  कि  जरूरत  होती   वहीं   ,  अकेलापन  उन्हे   जीने   नहीं  देता . 

22 comments:

  1. sapne to sapne hote hein
    kiske poore hote hein

    ReplyDelete
  2. sapne pure bhi hote hai ......... !
    maine parents ki takleef ko bahut dil se mahasoos kara hai .bahut se logo se mili hoon ... budhape mai jo dard or takleef hoti hai .... usse bahut karib se mahasoos kata hai .
    budhape me insan phir se baccha baan jata hai or unhe ek child ki tarah sambhalana padta hai .
    love to care ..... !

    ReplyDelete
  3. शशि जी आपने बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति की है.

    आज के समय की बहुत बड़ी मजबूरी है बच्चों का दूर हो जाना.

    पुराने समय में वानप्रस्थ/संन्यास आश्रम में लोग बच्चों पर सब कुछ
    छोड़ कर वनों/तीर्थों में जाकर आत्मचिंतन व तप के लिए निकल जाते थे.पर अब तो लगता है वृद्धा आश्रम ही ठिकाना होने लगेगा.

    आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    ReplyDelete
  4. भावुक और कोमल मन से लिखी सुंदर कविता शशि जी बधाई और शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  5. एक तरफ खुशी है , तो
    दूसरी तरफ तन्हाई है.,,,,, सच्चाई बयां करती है आपकी कविता..शुभकामनाये.... .

    ReplyDelete
  6. आकाश में उन्मुक्त विचरना हम ही सिखाते हैं.उस खालीपन के साथ ही रह जाते है..

    ReplyDelete
  7. साझी विषय को प्रभावी तरीके से उठाया है ... ये द्वन्द बना रहता है उम्र भर ... दिल को छू गयी आपकी रचना ...

    ReplyDelete
  8. शुक्रिया राकेश जी , आपने बिलकुल ठीक कहा आजकल तो वृद्धा आश्रम ही ठिकाना होने लगा है .

    ReplyDelete
  9. शुक्रिया जयकृष्ण राय तुषार जी .

    ReplyDelete
  10. धन्यवाद , B.S .Gurjar ji , आपको कविता कीसच्चाई पसंद आई .

    ReplyDelete
  11. शुक्रिया अमृता जी , आपने तो कविता में नयी पंक्तिया ही जोड़ दी .

    ReplyDelete
  12. दिगम्बर नासवा जी आपका बहुत- बहुत धन्यवाद , आपने बहुत अच्छा विवरण किया है.

    ReplyDelete
  13. शशि पुरवार जी
    सस्नेहाभिवादन !

    जीवन भर की संजोई धरोहर संजोये सपने , बिखर जाते है
    जब बच्चे , दूर हो जाते है .

    सही कहा आपने …
    लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है

    सहज शब्दावली में , सुंदर भावों की सरस प्रस्तुति के लिए आभार और बधाई !


    ♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  14. शुक्रिया राजेंद्र जी . आपने हमारा होसला बढाया है .

    ReplyDelete
  15. कल 07/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  16. सार्थक चिंतन... सुन्दर रचना...
    सादर...

    ReplyDelete
  17. सच्चाई को कहती अच्छी रचना

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। हमें अपने विचारों से अवगत कराएं। सविनय निवेदन है --शशि पुरवार

आपके ब्लॉग तक आने के लिए कृपया अपने ब्लॉग का लिंक भी साथ में पोस्ट करें
.