Sunday, August 12, 2012

दोहे ........

1  सबसे कहे पुकार कर , यह वसुधा दिन रात
   जितनी कम वन सम्पदा , उतनी कम बरसात .

2   इन फूलो के देखिये , भिन्न भिन्न है नाम
   रूप रंग से भी परे , खुशबु भी पहचान .

 3 समय- शिला पर बैठकर , शहर बनाते चित्र
    सूख गई जल की नदी , सिकुड़े जंगल मित्र .

   
------------------- हाइकु -------------

क्लांत नदिया
वाट जोहे सावन
जलाए भानु .
...

आया सावन
खिलखिलाई धरा
नाचे झरने .

नाचे मयूर
झूम उठा सावन
चंचल बूंदे.

काली घटाए
सूरज को छुपाये
आँख मिचोली .

बैरी बदरा
घुमड़ घुमड़ के
आया सावन .
----- शशि पुरवार

6 comments:

  1. वाह....
    बढ़िया दोहे...बेहतरीन हायकू....
    आपका जवाब नहीं, काव्य की हर विधा में महारथी..
    :-)
    सस्नेह
    अनु

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  2. बहुत ही अच्छे दोहे और हाइकु भी----।

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  3. बेहद खुबसूरत ....दोहे और हाइकु ....बधाई शशि जी...

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  4. आपकी अनुपम प्रस्तुति पढकर मदमस्त हो गया हूँ शशि जी,
    सुन्दर,प्रेरक और ज्ञानवर्धक.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.

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