1 सबसे कहे पुकार कर , यह वसुधा दिन रात
जितनी कम वन सम्पदा , उतनी कम बरसात .
2 इन फूलो के देखिये , भिन्न भिन्न है नाम
रूप रंग से भी परे , खुशबु भी पहचान .
3 समय- शिला पर बैठकर , शहर बनाते चित्र
सूख गई जल की नदी , सिकुड़े जंगल मित्र .
------------------- हाइकु -------------
क्लांत नदिया
वाट जोहे सावन
जलाए भानु .
...
आया सावन
खिलखिलाई धरा
नाचे झरने .
नाचे मयूर
झूम उठा सावन
चंचल बूंदे.
काली घटाए
सूरज को छुपाये
आँख मिचोली .
बैरी बदरा
घुमड़ घुमड़ के
आया सावन .
----- शशि पुरवार
वाह....
ReplyDeleteबढ़िया दोहे...बेहतरीन हायकू....
आपका जवाब नहीं, काव्य की हर विधा में महारथी..
:-)
सस्नेह
अनु
बहुत ही अच्छे दोहे और हाइकु भी----।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत ....दोहे और हाइकु ....बधाई शशि जी...
ReplyDeleteआपकी अनुपम प्रस्तुति पढकर मदमस्त हो गया हूँ शशि जी,
ReplyDeleteसुन्दर,प्रेरक और ज्ञानवर्धक.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
well written .congr8s JOIN THIS-WORLD WOMEN BLOGGERS ASSOCIATION [REAL EMPOWERMENT OF WOMAN
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