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Friday, August 17, 2012
माँ की पुकार ...!
न हिन्दू , न मुसलमान न सिख , न ईसाई . मेरे आँचल के लाल तुम सब हो भाई भाई गौर से देखो मुझे मै तुम सबकी माई .
क्यूँ लड़ते हो आपस में बैर की भावना मन में क्यूँ समाई कर दोगे हज़ार टुकड़े , मेरे क्या यही कसम है तुमने खाई.
सत्ता के नशे में चूर चश्मा कुर्सी का चढ़ा है ऐसा , कि नज़रे घुमाते ही , चारो तरफ बस , कुर्सी ही कुर्सी नज़र आई.. आँखों से टपकती हैवानियत में लुटती हुई माँ कहीं नजर ही न आई .
भारत की सरजमीं को सीचा था, जिस प्यार व एकता ने , आज फिर वही टूटती - बिखरती नज़र आई कटते जा रहे है अंग मेरे , ममता आज मेरी , बहुत बेबस नज़र आई ....!
आतंकवाद , भ्रष्टाचार और हैवानियत से छलनी कर सीना मेरा , ये कैसी विजय है पाई . माता के तो कण - कण में बसी है, शहीदो के प्यार व त्याग की गहराई .
मत कटने दो अब अंग मेरा बहुत मुश्किलों से , बेडियो से , मुक्ती है पाई तुम सब तो हो भाई-भाई गौर से देखो मुझे मै हूँ तुम सब की माई .
सुनो हे वत्स अपनी इस धरती माँ की पुकार इसी माटी पे जन्मे वीर लाल , छोड गए है बंधुत्व की अमित छाप पर तुम्हारी करतूतों से माँ हो रही जार -जार . एक वक़्त था जब धरा उगलती थी सोना आज कोख हो रही उजाड़ आँचल भी हुआ है तार तार यह कैसी ऋतु आई
खाओ कसम न करोगे अपने भाई का सर कलम न खेलो खूनी होली ना काटो मेरे अंग दो मिसाल एकता और भाई चारे की तो सुरक्षित हो जाये वतन जन्मभूमि तुम्हारी आज मांग रही तुमसे यह वचन मेरे आँचल के लाल तुम सब तो हो भाई भाई गौर से देखो मुझे मै तुम सब भी प्यारी माई.
बहुत बेहतरीन रचना है.. जमीर को जगा देनेवाली.. की जब भारत माता पर अंग्रेजो का राज था.. तब हिन्दू मुस्लिम दोनों ने मिलकर ही अपने माँ की रक्षा की.. फिर आज क्यों भाई -भाई एक दूजे का सर काट रहे है.....
अति सुंदर रचना है , क्यों न बार बार पढूं ?
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन उत्कृष्ट रचना,,,,शशि जी,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: शहीदों की याद में,,
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबस कोई सुने माँ की पुकार.....
सस्नेह
अनु
sundar aur saamayik rachana , badhayi
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना है..
ReplyDeleteजमीर को जगा देनेवाली..
की जब भारत माता पर अंग्रेजो का राज था..
तब हिन्दू मुस्लिम दोनों
ने मिलकर ही अपने माँ की रक्षा की..
फिर आज क्यों भाई -भाई एक दूजे का
सर काट रहे है.....
सामयिक आवश्यक रचना ...
ReplyDeleteआभार शशि जी !