क्षणिकाएँ,
बैरी बदरा
घुमड़ घुमड़
आये भावन
देखो झूम के
बरस गया सावन .
बूंदो को लड़ी
बरखा सी झड़ी
पवन मतवाली
इठला के चली
चूमती पर्णों को
कर्ण में मिसरी सी घुली !
पर्ण के कोरो पे
पड़ित बूंदें जैसे
बिखरे धवल मणि .
मखमली हरित बिछोना
फूली अमराई
कानन मे
विशालकाय गिरि पे
व्योम ने
भीनी चुनर उढाई
मदमाता सा बहे
जलप्रपात
उदधि का गर्जन
परिंदो का कलरव
दरिया का उफनना
पुरंदर के इशारे
जम के बरसे घन.
सावन के पड़े झूले
गाँवो मे लगे मेले
हिंडोले लेता मन
करतल पे रची हिना
हरी हरी चूड़ियाँ
पहने गाँव की गोरियां
इठलाती सी ये
अल्हड परियां .......!
---------- शशि पुरवार
सावन की काली घटा, पवन चले मतवाली
ReplyDeleteफुहार गिरे सावन के,गोरिया मन छाए लाली,,,,
सुन्दर प्रस्तुति,,,,शशी जी,,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
बहुत-बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमनभावन रचना...
मित्रता दिवस की शुभकामनाये...
:-)
बहुत ही खूबसूरत कविता शशि जी आभार |
ReplyDeleteसावन की फुहार जैसी सुंदर रचना ... सावन के झूले तो बस गाँव में ही मिलते ह्ंगे अब तो ...
ReplyDeletedheerendra ji
ReplyDeletemeena ji tushar ji sangeeta ji aapka tahe dil se shukriya . aapki upasthiti manye hai mere liye .
वाह ... प्रकृति का सुन्दर वर्णन ..... सुन्दर रचना के लिए बधाई हो दी ....... :-)
ReplyDelete