Wednesday, September 12, 2012

जग की जननी है नारी ........!

 
जग की जननी है नारी
विषम परिवेश में नहीं हारी 

काली का  धरा रूप , जब
संतान पे पड़ी विपदा भारी
सह लेती काटों का दर्द
पर हरा देता एक मर्द

क्यूँ रूह तक कांप जाती
अन्याय के खिलाफ
आवाज नहीं उठाती
ममता की ऐसी मूरत
पी कर दर्द हंसती सूरत 
छलनी हो रहे आत्मा के तार
चित्कारता ह्रदय करे पुकार
आज नारी के अस्तित्व का सवाल
परिवर्तन के नाम उठा बबाल 
वक़्त की है पुकार
नारी को भी मिले उसके अधिकार
कर्मण्यता , सहिष्णु , उदारचेता
है उसकी पहचान
स्वत्व से मिला  सम्मान .

जग की जननी है नारी 
विषम परिवेश  में नहीं हारी .
---------------- शशि पुरवार

13 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव ....
    सुन्दर अभिव्यक्ति......

    अनु

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  2. बहुत बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति सुंदर रचना,,,

    RECENT POST -मेरे सपनो का भारत

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  3. पर मर्दों की दुनियाँ में हारती जाती है ...

    सुंदर अभिव्यक्ति

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  4. नारी सम्पूर्ण है ... कोमल है तो शक्ति भी है ...
    नारी का सम्मान ही श्रृष्टि का सामान है ...

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  5. कोमल भाव लिए रचना..
    सुन्दर..

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  6. sach kaha
    visham parivesh
    aur visham samasyayon ke saath
    ladti hai naari..

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  7. बड़े दमदार भाव व्यक्त करते आपके शब्द..

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  8. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .

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  9. बहुत अच्छी कविता शशि जी |

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  10. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .

    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/

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  11. जग की जननी है नारी, काश लोग इसे समझ पायें ।

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