जग की जननी है नारी
विषम परिवेश में नहीं हारी
काली का धरा रूप , जब
संतान पे पड़ी विपदा भारी
सह लेती काटों का दर्द
पर हरा देता एक मर्द
क्यूँ रूह तक कांप जाती
अन्याय के खिलाफ
आवाज नहीं उठाती
ममता की ऐसी मूरत
पी कर दर्द हंसती सूरत
छलनी हो रहे आत्मा के तार
चित्कारता ह्रदय करे पुकार
आज नारी के अस्तित्व का सवाल
परिवर्तन के नाम उठा बबाल
वक़्त की है पुकार
नारी को भी मिले उसके अधिकार
कर्मण्यता , सहिष्णु , उदारचेता
है उसकी पहचान
स्वत्व से मिला सम्मान .
जग की जननी है नारी
विषम परिवेश में नहीं हारी .
---------------- शशि पुरवार
बहुत सुन्दर भाव ....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति......
अनु
बहुत बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST -मेरे सपनो का भारत
पर मर्दों की दुनियाँ में हारती जाती है ...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
नारी सम्पूर्ण है ... कोमल है तो शक्ति भी है ...
ReplyDeleteनारी का सम्मान ही श्रृष्टि का सामान है ...
कोमल भाव लिए रचना..
ReplyDeleteसुन्दर..
sach kaha
ReplyDeletevisham parivesh
aur visham samasyayon ke saath
ladti hai naari..
बड़े दमदार भाव व्यक्त करते आपके शब्द..
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .
bahut bahut abhar sangeeta ji
Deleteबहुत अच्छी कविता शशि जी |
ReplyDeleteबहुत सही !
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .
ReplyDeletehttp://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
जग की जननी है नारी, काश लोग इसे समझ पायें ।
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