Tuesday, September 18, 2012

जाने कहाँ आ गए हम



जाने कहाँ आ गए हम
छोड़ी धरती
चूमा गगन .

आकांशाओ  के  वृक्ष  पर  
बारूदो का  ढेर बनाया
तोड़े पहाड़ , कटाये   वन 
दूषित कर पवन ,रोग लगाया
सूखी हरीतिमा की  छाँव
सिमटे  खेत , गाँव
बना  मशीनी इंसान
पत्थर की मूरत भगवान .

जग का बदला स्वरुप
नए उपकरण ,
मशीनी इंसान ,
रोबोट सीखे काम ,
नए नए  आविष्कार
खूब फला कृत्रिम व्यापार 
मशीनी  होते काम
मानव  चाहे पूर्ण  आराम
माथे की मिट जाये  शिकन .

भर बारूद , रोकेट
संग, उड़  चला अंतरिक
विधु  पे पड़े कदम 
मिला नया मुकाम ,
पर धुएं में मिले जहर से 
कम होती ओजोन की  छाँव
सौर मंडल पर भी
प्रदुषण के बढ़ते कदम
यह हार है या जीत
जब खतरा बन रही
जीवन पर , अविष्कारों 
की बढती भीड़
न बच सकी धरणी 
न छूटा  गगन .
-------------शशि पुरवार

19 comments:

  1. हमें इतनी सुन्दर धरोहर मिली थी, हम नष्ट करने पर तुले हैं।

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  2. sachhi...jeevandayani maa ko noch rahen hain...nasht karne par tule hain...

    nice poem shashi
    bless u
    anu

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  3. आपकी कविता में भावों की गहनता व प्रवाह के साथ भाषा का सौन्दर्य भी है .उम्दा पंक्तियाँ .

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  4. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  5. बिल्कुल सही कहा आपने...! आगे बढ़ते बढ़ते हम क्या कुछ खोते जा रहे हैं.... इसके बारे में सोचने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है..! बहुत बढ़िया रचना !
    ~सादर !

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  6. कलयुग की इस रेश में,मशीन बना इंसान
    अविष्कार करते रहे ,भूल गये भगवान,,,,,,,,

    RECENT P0ST फिर मिलने का

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  7. सार्थक रचना..
    हम आगे तो बढ़ रहे है.पर प्रकृति के मोल को
    नष्ट करके..जो भविष्य के लिए उचित नहीं...

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  8. आपकी रचनायें दिल को छू जाती हैं, गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं

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  9. वाह ... बेहतरीन

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  10. ये हार है या जीत ... बस कभी कभी ये नहीं समझ आता ..
    पर फिर भी निर्माण, सृजन तो होता रहेगा ...
    लाजवाब रचना है ...

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  11. कल 21/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  12. पूर्ण अर्थ लिए हुए खूबसूरत रचना

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  13. sach hai ki ham paryawaran par bahut atyachar kar rahe hain

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  14. दुःख तो इस बात का है ..की सब कुछ जानने पर भी ...हम कुछ नहीं कर रहे ......something substantial!!!

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  15. बहुत सुन्दर भाव पूर्ण.... अपनी पृथ्वी के पर्यावरण से छेड़छाड़ के बाद अन्य ग्रहों की ओर ..बढ़ चले हम....बेहद मार्मिक प्रस्तुति....

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  16. यह विकास कहीं हमारे विनाश का कारण न बने...बहुत सार्थक प्रस्तुति..

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  17. We have done so much wrong in the name of development. Wish we can maintain a balance. Thought provoking poem.

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  18. यह तथाकथित दिशाहीन विकास ही सर्वनाश का कारण बनता जा रहा है ।
    सुन्दर रचना के लिए बधाई ।

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