रूह में बसा है एक
शबनमी एःसास
शब्दों से परे,
झिझकती साँसे
कुछ सकुचाई सी
और अधर पर लगे है
लज्जा के ताले!
पलके झुकी झुकी
मुस्काती सी
एक लचीली डाल !
और
बह रहे है सपने
मन के प्रांजल में
पर
न कोई वादा ,न कसमे
बस हाथो को थाम
उँगलियों ने कह दिए
सात वचन!
अनुबंध है यह प्रेम का
अनुरक्त रहे
विश्वास के बीज से!
रिश्ते खेलते है सदैव
दिल और दिमाग
के पत्तो से ,पर
खिलखिलाता है
जीवन का बसंत !
मिलन है यह
आत्मा से आत्मा का
शाश्वत प्रेम का,
सत्य वचन ,बंधन
जन्मो जन्मो का ....!
24.04.13
--------- शशि पुरवार
The way you concluded it is just lovely. It is a bond for many many ages. Beautiful poem.
ReplyDeleteमधुर छाँह है संबंधों की..
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति......जन्मों जन्मों का बंधन .
ReplyDeleteमन के भीतर उपजते प्रेम के अनुबंध की
ReplyDeleteसुंदर अनुभूति
सुंदर रचना
गजब की प्रस्तुति
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
क्षमा करें... इससे पूर्व की टिप्पणी में दिन गलत हो गया था..!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बंधन जन्मों का साथ वचनों से बढ़कर !
ReplyDeleteखूबसूरत भावाभिव्यक्ति !
अनुबंध है यह प्रेम का
ReplyDeleteअनुरक्त रहे
विश्वास के बीज से!
बढिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
..बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ..!!!
ReplyDeleteसुन्दर रचना !!
ReplyDeleteख़ूबसूरत अनुबंध, अनुबंध की ख़ूबसूरत अनुभूति सुंदर रचना******जीवन का बसंत !
ReplyDeleteमिलन है यह
आत्मा का आत्मा से
शाश्वत प्रेम का,
सत्य वचन ,बंधन
जन्मो जन्मो का ....
बस एक प्रेम का अनुबंध ही जीवन भर रहता है ... बाकी सब बेमानी होता है ...
ReplyDeleteमधर रचना ...
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना,आपका आभार.
ReplyDeleteयह प्रेम का बंधन ही शाश्वत है...बहुत ख़ूबसूरत रचना...
ReplyDeletebahut khub
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