1
कितनी प्यारी यादें
आँगन में खेले
वो बचपन की बातें
2
पंछी बन उड़ जाऊं
मै संग तुम्हारे
नया अंबर सजाऊं
3
ये मौसम सर्द हुआ
तुम तो रूठ गए
ये जीवन रीत गया
4
फिर दिल में टीस उठी
सुप्त पड़े रिश्ते
काया भी सुलग उठी
5
खामोश हुई साँसे
होठ थरथराये
आँखों ने की बातें
6
है खेल रही कसमे
पिय संग निभायी
जब वेदी पे रस्में
7
ये अम्बर नीला है
प्यार मेरा सच्चा
इससे भी गहरा है .
------शशि पुरवार
बहुत बढ़िया!! बधाई!
ReplyDeleteखामोश हुई साँसे
ReplyDeleteहोठ थरथराये
आँखों ने की बातें,,,,
वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
RECENT POST: नूतनता और उर्वरा,
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteहै खेल रही कसमे
ReplyDeleteपिय संग निभायी
जब वेदी पे रस्मे ...
सभी छंद लाजवाब ... प्रेम के किसी एक पल को बयाँ करते हुए ....
बहुत सुन्दर ...
सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteरिमझिम फुहारों सी..
ReplyDeleteवधाई! हाइकू और क्षणिका/सीपिका लघु पदीय छंदों के समन्वय से गठित छन्द में बड़ी बड़ी बातें सराहनीय !
ReplyDeletewaah .....choe hain par gahre hain ......
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना !!
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रतुती !
latest post'वनफूल'
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
लाजवाब छंद.....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसर्वोत्त्कृष्ट, अनुपम रचना आभार
ReplyDeleteहिन्दी तकनीकी क्षेत्र कुछ नया और रोचक पढने और जानने की इच्छा है तो इसे एक बार अवश्य देखें,
लेख पसंद आने पर टिप्प्णी द्वारा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें, अनुसरण कर सहयोग भी प्रदान करें
MY BIG GUIDE
कविता में सार्थक प्रयोग होना आवश्यक है
ReplyDeleteआप सदैव यह करतीं हैं और रचना का कैनवास बढ़ा देतीं हैं
इस रचना में भी,जीवन,प्रेम,राग को छोटी छोटी अनुभूति में
सुंदर बाँधा है
बधाई
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सुन्दर अभिव्यक्ति शशिजी
ReplyDeleteखूबसूरत रचना...
ReplyDeleteबड़ी सुन्दर क्षणिकाएं...बहुत सार्थक.. गागर में सागर..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteआपकी रचनाएं http://panchayatkimuskan.com/ पर भी प्रकाशित हो सकती है इसके लिए आप अपनी रचनाएं panchayatkimuskan@gmail.com पर ईमेल करें
धन्यवाद!
बहुत सुंदर और भावुक .
ReplyDeleteएक पिता को तो अपनी बेटी अंत तक नन्ही पारी ही लगती है. बुढ़ापे में उसका बेटी के लिय प्यार बढ़ता है. एक लड़की को एक अजनवी के साथ नस्सेंट ऑक्सीजन की तरह अपनी पहचान खो कर नया -परिवर्तित होना पड़ता है.
लड़की नहीं तो घर नहीं ,करुना नहीं ,अनुशाशन नही .फिर भी मर्द अपने व्यर्थ एह्न्कार को नहीं छोड़ते .
बिना पत्नी के पुरुष बिना फूल के फूलदान है.
सूक्ष्म और गहरी रचना .
ReplyDeleteहार्दिक बधाई .
Sarkariexam Says thank You Very Much For Best Content I Really Like Your Hard Work. Thanks
ReplyDeleteamcallinone Says thank You Very Much For Best Content I Really Like Your Hard Work. Thanks
9curry Says thank You Very Much For Best Content I Really Like Your Hard Work. Thanks