जीवन के ताप सहती
कैसे असुरी
जलती है धूप नित
सांझ सवेरे
मधुवन में क्षुद्रता के
मेघ घनेरे .
रातों में चाँद देखे
पाँव इंजुरी .
भाल पर अंकित है
किंचित रेखा
काया को घिसते यहाँ
किसने देखा
नटनी सी घूम रही
देखो लजुरी .
मुखड़े पर शोभित है
मोहिनी मुस्कान
वाणी में फूल झरे
देह बेइमान
हौले से छोर भरे
कैसे अंजुरी .
शशि पुरवार
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
सुंदर रचना .....बधाई
ReplyDeleteप्यारी सी अंजुरी
ReplyDeleteखुबसूरत रचना :)
सुन्दर - सार्थक अभिव्यक्ति .शुभकामनायें .
ReplyDeleteहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
भारतीय नारी
गहन अभिवयक्ति......
ReplyDeleteसुन्दर -
ReplyDeleteबधाई-
भाल पर अंकित है
ReplyDeleteकिंचित रेखा
काया को घिसते यहाँ
किसने देखा
नटनी सी घूम रही
देखो लजुरी .
Behad sundar!
waah bahut khub
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गहन भाव !
ReplyDeletelatest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - इंतज़ार उसका मुझे पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteMan mnthan ko ujagar karne me safal rachna .
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
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