Wednesday, July 23, 2014

नवगीत -- नए शहर में



नए शहर में, किसे सुनाएँ
अपने मन का हाल
कामकाज में उलझें हैं दिन
जीना हुआ सवाल

कभी धूप है, कभी छाँव है
कभी बरसता पानी
हर दिन नई समस्या लेकर,
जन्मी नयी कहानी

बदले हैं मौसम के तेवर
टेढ़ी मेढ़ी चाल

घर की दीवारों को सुंदर
रंगों से नहलाया
बारिश की, चंचल बूँदों ने
रेखा चित्र बनाया

सीलन आन बसी कमरों में
सूरज है ननिहाल

समयचक्र की, हर पाती का
स्वागत गान किया है
खट्टे, मीठे, कडवे, फल का
भी, रसपान किया है

हर माटी से रिश्ता जोड़ें
जीवन हो खुशहाल

- शशि पुरवार 

18/07/14 

17 comments:

  1. आपके बारे में जानकर सुखद लगा

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  2. बहुत अच्छी सशक्त प्रस्तुति

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. वाह..लाज़वाब अभिव्यक्ति...

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  5. सुन्दर ,सरस ,सरल और सच ,
    और साथ में सार्थक संदेश भी बधाई हो शशिजी !

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  6. कल 25/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  7. समयचक्र की, हर पाती का
    स्वागत गान किया है
    खट्टे, मीठे, कडवे, फल का
    भी, रसपान किया है .........अत्यंत प्रभावी !! बधाई स्वीकार करें

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  8. बहुत सुन्दर

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  9. सीलन आन बसी कमरों में
    सूरज है ननिहाल
    सुन्दर

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  10. नए शहर में बसने की परेशानियों को बयां करता सुन्दर नवगीत ।

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