Monday, September 22, 2014

नन्हा कनहल




खिला बाग़ में ,
नन्हा  कनहल
प्यारा लगने लगा महीना
रोज बदलते है मौसम ,फिर
धूप -छाँव का परदा झीना।

आपाधापी में डूबे थे
रीते कितने, दिवस सुहाने
नीरसता की झंझा,जैसे
मुदिता के हो बंद मुहाने

फँसे मोह-माया में ऐसे
भूल गए थे,खुद ही जीना

खिले फूल की इस रंगत में
नई किरण आशा की फूटी
शैशव की तुतलाती बतियाँ
पीड़ा पीरी की है जीवन बूटी

विषम पलों में प्रीत बढ़ाता
पीतवर्ण, मखमली नगीना .
--- शशि पुरवार

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 23 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. एक सप्ताह के अंतराल के बाद ब्लॉग पर आया हूँ ! फूलों के खुसबू अच्छा लगा |सुन्दर रचना |

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  3. सुंदर रचना जी धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 23 . 9 . 2014 दिन मंगलवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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  4. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के - चर्चा मंच पर ।।

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  5. बहुत सुन्दर मनभावन प्रस्तुति....

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