Monday, October 6, 2014

क्षणिकाएँ - माहिया - माँ



माँ तुम हो
शक्तिस्वरूपा
मेरी भक्ति का संसार
माँ से ही प्रारंभ
यह जीवन
माँ ही उर्जा का संचार
नीड बनाने में कितनी
खो  गयी थी  माँ
उड़ गए
पंछी घोसलों से
फिर तन्हा हो गयी है माँ
-- शशि पुरवार
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१६ / ९ /१३

माहिया  --
 
न्यौछावर करती है
माँ घर में खुशियाँ
खुद चुन चुन भरती है


बच्चों की शैतानी
माँ बचपन जीती
नयनों झरता पानी


ममता की माँ धारा
पावन ज्योति जले
मिट जाए अँधियारा


माँ जैसी बन जाऊँ
छाया हूँ उनकी
कद तक न पहुँच पाऊँ


चंदन सा मन महके
ममता का आँचल
खिलता, बचपन चहके।


६ 

माँ  जैसी बन जाऊं
छाया हूँ उनकी
कद तक न  पहुंच पाऊं



-- शशि पुरवार
२९ सितंबर २०१४


 माँ  जैसी बन जाऊं
छाया हूँ उनकी
कद तक न  पहुंच पाऊं




5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 07 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. Bahut hi umdaa rachnaayein. Dhanywad !!

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  3. duniya me maa se badhkar koi nahi sashi .
    aapne bahut acchi tarah se apni bhavnao ko in panktiyo me dhaala hai
    badhayi .

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