Tuesday, December 16, 2014

सम्मान


सम्मान --
आज जगह जगह अखबारों में भी चर्चा है फलां फलां को सम्मान मिलने वाला है और हमारें फलां महाशय भी बड़े खुश हैं. वे  अपने मुंह  मियां मिट्ठू बने जा रहें है ----  एक ही गाना   गाये जा रहें है  .......... हमें तो सम्मान मिल रहा है .........
भाई,  सम्मान मिल रहा है, तो क्या अब तक लोग आपका अपमान कर रहें थे, लो जी लो यह तो वही बात हो गयी, महाशय जी ने पैसे देकर सम्मान लिया है और बीबी गरमा गरम हुई जा रहीं है .
ये २ रूपए के कागज के लिए इतना पैसा खर्च किया, कुछ बिटवा को दे देते, हमें कछु दिला देते। …… पर जे तो होगा नहीं। …
हाय कवि से शादी करके जिंदगी बर्बाद हो गयी। ………। दिन भर कविता गाते रहतें है , लोग भी वाह वाह करे को बुला लेते हैं, कविता से घर थोड़ी चलता है. अब जे सम्मान का हम का करें, आचार डालें ……। हाय री किस्मत कविता सुन सुन पेट कइसन भरिये……।
             अब क्या किया जाए, कवि  महोदय अपने सम्मान को सीने से चिपकाए फिर रहें हैं, फिर  बीबी रोये , मुन्ना रोये  चाहे जग रोये या  हँसे, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा क्यूंकि भाई कविता की जन्मभूमि यह संवेदनाएं ही तो हैं. संवेदना के बीज से उत्पन्न कविता वाह वाह की कमाई तो करती ही है।  प्रकाशक रचनाएँ मांगते हैं , प्रकाशित करतें है, कवि की रचनाएँ अमिट हो जाती है, कवि भी अमर हो जाता है, पर मेहनताना कोई नहीं देता …………। फिर एक कवि का दर्द कोई कैसे  समझ सकता। वाह रे कविता सम्मान।
-- शशि पुरवार

12 comments:

  1. अच्छा व्यंग है आज के समय पर ... टीका है कवी समाज पर ...

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  2. अब तो सम्मान भी सामान जैसा हो गया है ...
    बहुत बढ़िया व्यंग ...

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  3. वाह! अब सम्मान भी बाजार में बिकने लगा ...सम्मान देनेवाले और लेनेवालों की अच्छी खबर ली है l
    पाखी (चिड़िया )

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  4. बहुत सटीक व्यंग...

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-12-2014) को तालिबान चच्चा करे, क्योंकि उन्हें हलाल ; चर्चा मंच 1829 पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. बेहतरीन व्यंग ! खग जाने खग ही की भाषा !

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  7. बढ़ि‍या व्‍यंग...सब बि‍कता है यहां

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  8. वाह ! क्या व्यंग्य ?

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  9. आप सभी सुधिजानो का हार्दिक धन्यवाद , स्नेह बनायें रखें।

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  10. .

    मेहनताना कोई नहीं देता …………
    फिर एक कवि का दर्द कोई कैसे समझ सकता

    हल्के-फुल्के व्यंग्य के बाद कटु सच लिखा आपने...
    कवि की रचना से कवि के घर में दो वक़्त की रोटी का बंदोबस्त भी नहीं हो पाता...
    हां, छद्म कवि ज़रूर फ़ायदा उठा लेते हैं
    और चुटकुलेबाज़ लबारी लफ़्फ़ाज़ तो ऐश करते ही हैं...

    सुंदर पोस्ट

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  11. आपने सच ही कहा है ...प्रकाशक खा जाता है कवि की कमाई और कवि फाकामस्ती करता रह जाता है ...पर कुछ कवि लाखों कमा रहे है ..एक एक प्रोग्राम के 25 से 50 हज़ार तक लेते है .........सब बाजारबाद है ...

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