Wednesday, March 25, 2015

आदमी ने आदमी को चीर डाला है।




चापलूसों का
सदन में बोल बाला है
आदमी ने आदमी
को चीर डाला है

आँख से अँधे
यहाँ पर कान के कच्चे
चीख कर यूँ बोलतें, ज्यों 
हों वही सच्चे.
राजगद्दी प्रेम का
चसका निराला है

रोज पकती है यहाँ
षड़यंत्र की खिचड़ी
गेंद पाले में गिरी या
दॉंव से पिछड़ी
वाद का परोसा गया
खट्टा रसाला है

आस खूटें बांधती है
देश की जनता
सत्य की आवाज को
कोई नहीं सुनता
देख अपना स्वार्थ
पगड़ी को उछाला है
आदमी ने आदमी को चीर डाला है
-- शशि पुरवार

12 comments:

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  2. सच्चाई को बयान करती, सटीक एवं सामयिक रचना

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  3. सच बयान करती रचना ... आदमी आदमी का दुश्मन है आज ...

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  4. बहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-03-2015 को चर्चा मंच की चर्चा गांधारी-सा दर्शन {चर्चा - 1929 } पर दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  6. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बृहस्पतिवार- 26/03/2015 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 44
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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  7. आदमी ने आदमी को चीर डाला है .............
    सत्य वचन
    http://savanxxx.blogspot.in

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  8. आदमी ने आदमी को चीर डाला..... सत्य के करीब , बहुत सटीक रचना

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  9. सत्ता की भूख व भौतिकता की होड़ ने आदमी को आदमी रहने ही नहीं दिया , आदमी ही आदमी का दुश्मन बन गया है , सच्चाई को परखती और बिखेरती सुन्दर अभिव्यक्ति

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  10. सटीक और सुन्दर रचना

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  11. खूब गा-गाकर पढ़ा। आनंद आया।

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  12. सत्ता पर तीक्ष्ण कटाक्ष । सुंदर रचना।

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