मन, प्रांगण बेला महका
याद तुम्हारी आई
याद तुम्हारी आई
इस दिल के कोने में बैठी
प्रीति, हँसी-मुस्काई।
नोक झोंक में बीती रतियाँ
गुनती रहीं तराना
दो हंसो का जोड़ा बैठा
मौसम लगे सुहाना
रात चाँदनी, उतरी जल में
कुछ सिमटी, सकुचाई।
शीतल मंद, पवन हौले से
बेला को सहलाए
पाँख पाँख, कस्तूरी महकी
साँसों में घुल जाए।
कली कली सपनों की बेकल
भरने लगी लुनाई
निस दिन झरते, पुष्प धरा पर
चुन कर उसे उठाऊँ
रिश्तों के यह अनगढ़ मोती
श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ
रचे अल्पना, आँख शबनमी
दुलहिन सी शरमाई।
--- शशि पुरवार
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सबकी पहचान है , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeletebehtareen
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 21 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteगीत रम्य है - बहुत अच्छा लगा। बधाई शशि जी।
ReplyDeletedada pranam abhar aapki tippni se lekhan sarthak ho gaya
Deleteनिस दिन झरते, पुष्प धरा पर
ReplyDeleteचुन कर उसे उठाऊँ ,
रिश्तों के यह अनगढ़ मोती
श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ।
भावों और शब्दों का अनूठा समन्वय । संगीतबद्ध करने लायक गीत ।
hardik abhar aadarniy vema ji
Deleteसुन्दर .. प्रेम के रस में डूब के लिखा नव गीत ...
ReplyDeleteअभाव जैसे शब्द खोल रहे हैं ...
hardik dhnyavad naswa ji
Deleteaap sabhi mitron ka bhi hardik abhar
बहुत ही सुन्दर रचना .....
ReplyDelete