Monday, September 21, 2015

मन खो रहा संयम


आस्था के नाम पर,
बिकने  लगे हैं भ्रम
कथ्य को विस्तार दो ,
यह आसमां है कम .

लाल तागे में बंधी
विश्वास की कौड़ी
अक्ल पर जमने लगी, ज्यों
धूल भी थोड़ी
नून राई, मिर्ची निम्बू
द्वार पर कायम

द्वेष, संशय, भय हृदय में
जीत कर हारे
पत्थरों को पूजतें, बस
वह हमें तारे
तन भटकता, दर -बदर
मन खो रहा संयम.

मोक्ष दाता को मिली है
दान में शैया
पेंट ढीली कर रहे, कुछ
भाट के भैया
वस्त्र भगवा बाँटतें,
गृह, काल. घटनाक्रम .
- शशि  पुरवार

11 comments:

  1. आस्था के नाम पर,
    बिकने लगे हैं भ्रम
    ...सच भ्रमजाल में फंसा है आज का इंसान

    बहुत सुन्दर

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना...

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना...

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  4. सार्थक

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  5. बहुत सुन्दर रचना

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  6. बहुत सुन्दर और सारगर्भित नवगीत।

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  7. बहुत सुंदर व समाज के सत्य को दर्शाती पंक्तियाँ

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