आस्था के नाम पर,
बिकने लगे हैं भ्रम
कथ्य को विस्तार दो ,
यह आसमां है कम .
लाल तागे में बंधी
विश्वास की कौड़ी
अक्ल पर जमने लगी, ज्यों
धूल भी थोड़ी
नून राई, मिर्ची निम्बू
द्वार पर कायम
द्वेष, संशय, भय हृदय में
जीत कर हारे
पत्थरों को पूजतें, बस
वह हमें तारे
तन भटकता, दर -बदर
मन खो रहा संयम.
मोक्ष दाता को मिली है
दान में शैया
पेंट ढीली कर रहे, कुछ
भाट के भैया
वस्त्र भगवा बाँटतें,
गृह, काल. घटनाक्रम .
- शशि पुरवार
आस्था के नाम पर,
ReplyDeleteबिकने लगे हैं भ्रम
...सच भ्रमजाल में फंसा है आज का इंसान
बहुत सुन्दर
अति सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसार्थक
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सारगर्भित नवगीत।
ReplyDeleteबहुत सुंदर व समाज के सत्य को दर्शाती पंक्तियाँ
ReplyDeleteAccha laga vichar.
ReplyDeleteAccha laga vichar.
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