धीरे धीरे कदम बढ़ा
डर कर पीछे होना क्या
जीवन की इस बगियाँ में
काँटों को भी ढोना क्या
काँटों को भी ढोना क्या
दुःख सुख तो है एक नदी
क्या पाना फिर खोना क्या
मस्ती का यह कोना क्या
दुनियादारी भूल गए
मीठे का फिर दोना क्या
क्या पाना फिर खोना क्या
मिल जाये खुशियाँ सारी
थककर केवल सोना क्या.
सखी सहेली जब मिल बैठेंमस्ती का यह कोना क्या
दुनियादारी भूल गए
मीठे का फिर दोना क्या
-- शशि पुरवार
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 11 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.09.2015) को "सिर्फ कथनी ही नही, करनी भी "(चर्चा अंक-2095) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, परमवीरों को समर्पित १० सितंबर - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteरोना कभी नहीं रोना ....... :)
ReplyDeleteसुन्दर कविता !!
बेहतरीन रचना ......
ReplyDeleteaap sabhi mitron ka hardik dhnyavad
ReplyDeleteदुःख सुख तो है एक नदी
ReplyDeleteक्या पाना फिर खोना क्या,
- सच है पानी कहाँ रुका है कभी!
बहुत सुंदर
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