Wednesday, September 9, 2015

हर पल रोना धोना क्या



हँस कर जीना सीख लिया 
हर पल रोना धोना क्या

धीरे धीरे कदम बढ़ा
डर कर पीछे होना क्या

जीवन की इस बगियाँ में
काँटों को भी ढोना क्या

दुःख सुख तो है एक नदी
क्या पाना फिर खोना क्या

मिल जाये खुशियाँ सारी
थककर केवल  सोना क्या.

सखी सहेली  जब मिल बैठें
मस्ती का यह कोना क्या

दुनियादारी भूल गए
मीठे का फिर दोना क्या 
 --  शशि पुरवार 

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 11 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.09.2015) को "सिर्फ कथनी ही नही, करनी भी "(चर्चा अंक-2095) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, परमवीरों को समर्पित १० सितंबर - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. बहुत सुंदर प्रस्‍तुति‍

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  5. रोना कभी नहीं रोना ....... :)
    सुन्दर कविता !!

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  6. बेहतरीन रचना ......

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  7. दुःख सुख तो है एक नदी
    क्या पाना फिर खोना क्या,
    - सच है पानी कहाँ रुका है कभी!

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