Friday, November 13, 2015

दिवाली का दिवाला ....

  

            दीपावली का त्यौहार आने से पहले ही बाजार में रौनक और जगमगाहट अपने पूरे शबाब में थी रौशनी नजरों को चकाचौंध कर  रही थीलक्ष्मी पूजन की तैयारीघर में लक्ष्मी का आगमनहर्षौल्लास से मनाया जाता हैंबाजार की रौनक में दीपावली की खरीदारी जोर शोर से शुरू थीजहाँ देखों त्योहारों पर जैसे लूट होने लगी हैलक्ष्मी – गणेश का पूजन है तो,  भगवान के भाव हमारे  तुच्छ प्राणी ने बढ़ा दिए.  अजी ऐसे मौके फिर कहाँ मिलते है, कलयुग है हर कोई अपनी दुकान सजा कर बैठा है. लूटने  का  मौका  लूटो।   दिल के भर को सँभालते हुए हमने भी कुछ खरीदने का मन बनाया, सोचा कुछ तो लेना होगा,   तो सामने से आते हुए पुराने मित्र रमेश चन्द्र के नजरें चार हो गयीहमसे नजरे मिलाते ही उन्होंने जोर से पीठ पर धौल जमाकर अपना कर्तव्य पूरा कर दिया.क्या ख़रीदा बबलू दीपावली पर खाली हाथ , कुछ लिए नहीं काहे अकेले हो घर में  ?

           क्या रमेश अजी अब बुढ़ापा आ गया बबलू  काहे कहते हो भाई यहाँ महंगाई में हमारा पपलू सीधा कर दिया है। और क्या पीठ में दर्द का बम रख कर दिवाली का तोहफा दिया। 

        क्या करे हमारे देश में प्यार मोहब्बत जताने का यही तरीका अपनाया जाता है। हा हा क्या बात है हाथ खाली क्यों घूम रहे हो. कंजूसी न करो ,  माल वाल खर्च करो.

         क्या करे , राम जाने  अब दीपावली जैसे दिवाला निकाल देती है। पहले दीपावली की बात  और थीनए कपडेगहने मिठाईयां सभी लेकर  आते थेलक्ष्मी जी की पूजा करते थे तब लक्ष्मी जी वरदान बनकर घर में प्रवेश करती थीआज कलयुग है समय ने पलटवार किया है कि  लक्ष्मी जी तो  को घर बुलाने के लिए काफी मेहनत मस्सकत करनी पड़ती है।  आम आदमी अब स्वप्न में ही उनसे मिल सकता है.
सत्य कहते हो बबलूपहले ५०० रुपय बहुत होते थेपूरी दिवाली की तैयारी हो जाती थी.  घर भर का आनंद ख़रीदा जा सकता थाकिन्तु अब रूपये का टूटना और डालर का बढ़नादेश में महंगाई नाम की डायन को सदा मंदिर में स्थापित कर चुका है.

             हाँ भाई रमेश चन्द्र -- गरीब की कुटिया और गरीब हो गयीअमीरों के घर चाँद आकार बस गयाबेचारे मध्यमवर्गीय त्रिशंखू की भांति हवा में झूलने लगे हैं.पहले दीपावली में धन के नाम पर सोना ख़रीदे रहे,अब वह भी आसमान की  सैर करता हैघर प्रापर्टी हाथ से बाहर है ,ले देकर दीपावली के नाम पर रस्सी और फुलझड़ी से ही काम चला लेते हैं.

            हाँ सही है बबलूदिवाली में क्या खाए क्या जलायेसाहूकारों के मुँह फटें की फटे रहते  हैंजैसे पूरा पर्वत निगलकर भी भूखे शेर के जैसे  मुँह खोलकर बैठे हुए हैआज लम्पट लोगों ने भी नयी प्रथा को जन्म दे दिया है. जब भी कोई त्यौहार आये, उस त्यौहार में उपयोग होने वाली सभी वस्तुओं के दाम बढ़ा हो और एक ही नारे का टेप बजाओ --- महंगाई  डसती  जाए रे। 

      पहले की तरह अडोस – पड़ोस को बुलानामिठाई खिलानाठहाकों के पटाखेखुशियों की

 फुलझड़ियाँ
रिश्तों की मिठासप्रेम की लड़ियों का अपना ही आनंद  था,  

        हाँ , सत्य वचन भाई , आज तो झूठे मुँह दिखावे के लिए भी कोई नहीं कहत आओ अतिथि न आ जाये।
      आजकल अतिथि दूर हो जाये ऐसा जाप लोग मन ही मन करते हैंकौन इतनी मान मनुहार करता है।  
    हाँ वह तो है , लो छोडो कल की बातें यह बात है पुरानी .......... कहकर रमेशचन्द्र ने अपनी गाड़ी बढ़ा

ली।और धीरे से दबी  आवाज में में कह गए कभी घर आना
, समय  न मिले तो........ फ़ोन ही कर लेना।, राम राम 
            
        आजकल हर कोई उल्लू बनाने में लगा हुआ  है.  दोस्त अपना हो या न हो अपना न हो यादें तो

 अपनी  है
, चलो आज १५० के पटाखे ले ही लेते हैं, यह  लक्ष्मी जी कभी  तो अपनी कुटिया में आ

 ही जाएँगी। आज ईश्वर की कृपा से रिज़र्व बैंक को कुछ भेद  ज्ञान प्राप्त हुआ है
, इसके चलते कुछ ब्याज

 दर कम हुई है
, भाई हमारे नेता जी की जय हो, दीवाली में खुशिओं की बौझार भी हो जाये तो कुछ बम हम

  भी चला ले।  कब तक पड़ोस के बम देखते रहेंगे। दिवाली में दिवाला न निकले। हरी ओम। 
                               -- शशि पुरवार 














2 comments:

  1. धूम धमाका देख तमाशा ..हो गयी दिवाली ..
    बढ़िया प्रस्तुति
    भैया दूज की हार्दिक शुभकामनायें!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-11-2015) को "पञ्च दिवसीय पर्व समूह दीपावली व उसका महत्त्व" (चर्चा अंक-2160) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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