Friday, January 1, 2016

हौसलों के गीत गाओ


साल नूतन  आ गया है कुछ नया करके दिखाओ
स्वप्न आँखों में सजाकर हौसलों के गीत गाओ.

द्वेष, कुंठा, खूँ - खराबा रात्रि गहराने लगी है
लाख गहराये अँधेरा एक दीपक तुम जलाओ.

तोड़ दो खामोशियों को जुल्म को सहना नहीं है
जुल्म के हर वार रोको भीत नफरत की हटाओ.

खिड़कियों से झाँकती जो एक टुकड़ा धूप छनकर
आस की वैसी किरण बन, हर तिमिर जग से मिटाओ.

दुर्गुणों का अंत हो, हो  अंतरात्मा की सफाई
देश में चैनो अमन हो, राग  मिलकर गुनगुनाओ.

नव सुबह का खुश नजारा ,हर पनीली आँख देखे
वेदना के स्वर मिटाकर इक हँसी बन खिलखिलाओ.

चिलचिलाती धूप जब पाँवों में डाले बेड़ियां, तब
फिर कहे शशि छंद रचकर जय  को गुनगुनाओ.  
   --- शशि पुरवार

11 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-01-2016) को "2016 की मेरी पहली चर्चा" (चर्चा अंक-2209) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बेहतरीन प्रस्तुती, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. बहुत सुन्दर नवगीत प्रस्तुति
    आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  4. सुन्दर रचना

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  5. सुन्दर व सार्थक रचना...
    नववर्ष मंगलमय हो।
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  6. bahut hi prernadayak rachna badhai .
    pushpa mehra

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  7. बेहद सुंदर रचना की प्रस्‍तुति। नए साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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  8. बेहद सुंदर रचना की प्रस्‍तुति। नए साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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