Thursday, July 7, 2016

क्यों न बहाएं उलटी गंगा....







क्यों न बहाएं उलटी गंगा

                भाई  कलयुग है। सीधा चलता हुआ मानव हवा में उड़ने लगा है।  टेढ़े मेढ़े रस्ते सीधे लगने लगे है। पहले घी निकालने के लिए अँगुली  टेढ़ी  की जाती थी।  आज ऊँगली सीधी नहीं होती है।  सरलता के सभी उपाय असफल  हो गएँ  है।  जूता सर पर चढ़कर राज करता है। टोपी हाथ में बैठी मक्खी को मारने और हवा  करने के  काम आती है।  जब दुनिया उलटी पुल्टी हो रही है तो भाई क्यों न हम उलटी  गंगा बहाए।

      आज कल देश में आरक्षण की गोली बहुत प्रसिद्द है। अंग्रेजी दवाईओं की इस देशी दवा के सामने क्या मजाल है, जो सर उठा सके। उच्च दर्जे की दवा भी चुल्लू भर पानी माँग रही है। देशी दवा आरक्षण ने जैसे सभी के  पाप गंगा बनकर धो डाले हों।  हमारे कर्णधार इस गोली का सदुपयोग करते रहतें हैं।  भाई प्राण जाये पर कुर्सी न जाए,  की तर्ज पर ढोल नगाड़े बज रहे हैं।
गोली खुले हाथों से बाँटी जा रही है। आरक्षण का आनंद  जहाँ देने वालों को उत्साहित कर रहा है वहीँ  इसे  खाने वाला  खाकर टुन्न  है।  आनंद की पराकाष्ठा कण कण में अपना प्रभाव दिखा रही है।  आरक्षण कोटा आज हिमालय के
शीर्ष पर विद्यमान है और कोटे के खिलाडी उस चोटी का पूर्ण आनंद ले रहे हैं। हिमालय में  गंगोत्री हमेशा शीर्ष से बहकर नीचे आती  हैं। भ्रष्टाचार की गंगोत्री भी शीर्ष से बहती है। तो आरक्षण की गंगोत्री नीचे से ऊपर  क्यों बहती है ?  आरक्षण सिर्फ निचली सतह से ऊपर  की सतह तक पहुँचाने  का प्रयास क्यों है ?
       गंगोत्री की धारा चोटी से नीचे तक आकर सबकी प्यास बुझाती है। लेकिन हमारे यहाँ आरक्षण  की गंगा उलटी  बह रही है ? आरक्षण का पानी नीचे से ऊपर कैसे सफलतापूर्वक चढ़ सकता है ? न्यूटन का सिद्धांत यहाँ कार्य नहीं कर रहा है।  यह नया सिद्धांत शायद कलयुगी न्यूटन ने ईजाद किया होगा ?

 आरक्षण का उल्टा रास्ता सफल कैसे  होगा ? यह शोध का विषय बन सकता है। आरक्षण की धारा जब लागू की जा रही है तो वह समान रूप से वितरित क्यों नहीं है ! आरक्षण करना ही है तो समान रूप से  उसे नियम कायदे में बाँध
दीजिये। कोटे के मरीज का इलाज कोटे के डाक्टर से करवाएं।  धान्य- सब्जी मंडी, बिजली -पानी,  नौकरी -शादी, अस्पताल,  रोजमर्रा की वस्तुओं के साथ -साथ हवा को भी आरक्षित करें। कायदा तो यही कहता है आरक्षित लोग, आरक्षित जगह से राशन पानी लें।  अनारक्षित अपनी सेवा टहल अनारक्षित जगह से कर लें। वह दिन दूर नहीं है जब ताज़ी सब्जी  आरक्षित कोटे के लिए व बासी सब्जी अनारक्षित के  लिए सुरक्षित होगी। सेकंड हैंड सीट और  पुराना ग्रेड का माल अनारक्षित के लिए उपलब्ध होगा।  आरक्षित चमचमाती रौशनी से नहाएंगे व अनारक्षित  का भविष्य जनरल डिब्बे में खुद को तलाश कर रहा होगा। बीमारी भी आरक्षित होनी चाहिए उसे भी  अपना कोटा देखकर मानव  का चुनाव करना होगा। जैसे शक्कर, ह्रदयघात जैसी बीमारी का पेटेंट बनाकर उसे कोटे में फिक्स करें।  शिक्षा में, सेवा में, अभियंत्रण में, सेतु निर्माण तक में आरक्षण है  तो  लोकसभा अध्यक्ष, राष्ट्रपति, पीएम, सी एम् की कुर्सी पर भी
आरक्षण क्यो नही है  ?  क्या वह किसी और दुनिया सम्बन्ध रखते हैं ? मंत्री, लोकसभा, प्रधानमन्त्री , राष्ट्रपति, सांसद, कानून आदि भी आरक्षण के  घेरे में आने चाहिए। आरक्षण तब ही सफल होगा एवं  गठबंधन मजबूत।

        हाल ही में शिक्षा के लिए बच्चे का दाखिला करवाना था तो  ज्ञात हुआ आरक्षित कोटा भरने के बाद ही आपकी सुनवाई होगी। हम नियम कायदे से बँधे हुए है। आपका बच्चा भले ही उच्च अंको से पास हुआ है किन्तु हमें तो
आरक्षित सीट ही भरनी है।  भले ही अंक न्यूनतम क्यों न हों। बात यहाँ सिर्फ आरक्षण की है लेकिन उसमे भी एक कोटा आधी आबादी के लिए रखा गया है। जहाँ आधी आबादी तो गायब ही है।  क्यूंकि कली को फूल बनने से पहले तोड़ने का रिवाज आदिकाल से बदस्तूर चला आ रहा है। कलयुग में रावण की संख्या भी असीमित होकर सीता हरण के लिए कदम  कदम पर अपना जाल बिछा रही है। हमें ऐसा प्रतीत  हुआ जैसे हम सजा याफ्ता मुजरिम हैं।  कोर्ट में पेशी के बाद ही  फैसला होगा।  कोटे  को कोटा कहना भी गुनाह माना जाने लगा है।  कब धारा ४२० लग जाए  और हम सरकारी मेहमान बने।
          भारत में कोटे की ऐसी मिसाइल तैयार होंगी जो भविष्य का  तख्त  पलटने और  चाँद को जमीं पर लाने की कुबायत  कर सकती हैं।  हवा भी इजाजत लेकर कहेगी कोटा  देखकर  साँस लो।  और जाति देखकर श्वास -उच्छ्वास करो।
आरक्षण कोटे को आरक्षण ने अली बाबा का चिराग दे दिया है जिसे रगड़ रगड़ पर हर ख्वाहिश मिनटों में पूरी हो जाती है। तभी तो देश  में उलटी गंगा बहेगी। गंगा  में उठने वाला तूफ़ान हिमालय  की चोटी पर जाकर कौन सा चित्र बनाएगा
?
                    वैसे पूरे भारत को ही कोट पहना देना चाहिए।  भविष्य में भारत आरक्षण कोटे के नाम से प्रसीद्ध होगा।  और वह दिन दूर नही जब आरक्षित कोटे वाले इतने समर्थ हो जायेंगे कि अनारक्षित लोगों को आरक्षण का कोटा
बाँटने लगेंगे।   फिर उलटी गंगा बहने लगेगी। हर कोई अपनी मूछों पर ताव देने लगेगा । वे भी जिनके मूँछे  है और वे भी जिनके मूँछे नही है। बस दिक्कत में वे ही रहेंगे जिनके पेट में दाढ़ी है । तो बोलो --   आरक्षण बाबा की  जय हो !

           --- शशि  पुरवार

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2016) को  "आया है चौमास" (चर्चा अंक-2398)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2016) को  "आया है चौमास" (चर्चा अंक-2398)     पर भी होगी। 
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना बधाई

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  4. बिलकुल सही कहा शशि जी अनारक्षित वर्ग की हालत सजायाफ्ता मुजरिम जैसी ही है और आरक्षण के हिमायती ताल थोक के ये बात कहते भी है की तुमने सदियों इनका खून चूसा है .अब इन्हें साधन मिल रहा तो तुम्हारी लग गयी ... जाने क्या मानसिकता है इस बात के पीछे केवल अपनी कुर्सी का नशा ..

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  6. आरक्षण बाबा की जय

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