1
माँ बाबा की लाडली, वह जीवन की शान
ममता को होता सदा, बेटी पर अभिमान।
2
बेटी ही करती रही, घर- अँगना गुलजार
मन की शीतल चाँदनी, नैना तकते द्वार।
3
बेटी ही समझे सदा, अपनों की हर पीर
दो कुनबों को जोड़ती, धरें ह्रदय में धीर
4
प्रेम डोर अनमोल हैं, जलें ख़ुशी के दीप
माता के आँचल पली, बेटी बनकर सीप।
-- शशि पुरवार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-02-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2588 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सुन्दर रचना
ReplyDelete