Wednesday, March 22, 2017

शूल वाले दिन

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अब नहीं मिलते डगर में
फूल वाले दिन 
आज खूँटी पर टंगे हैं 
शूल वाले दिन 

परिचयों की तितलियों ने 
पंख जब खोले 
साँस को चुभने लगे फिर  
दंश के शोले 
समय की रस धार में 
तूल वाले दिन 

मधुर रिश्तों में बिखरती 
गंध नरफत की 
रसविहीन होने लगी  
बातें इबादत की 
प्रीत का उपहास करते 
भूल वाले दिन। 

आँख से बहता नहीं 
पिघला हुआ लावा 
चरमराती कुर्सियों  का 
खोखला  दावा 
श्वेत वस्त्रों पर उभरते 
धूल वाले दिन। 
 - शशि पुरवार 

7 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2609 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 24 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. अंतर की पीड़ा को जो शब्द मिलते हैं तब ऐसी ही रचना का जन्म होता है

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  4. अतीत में की गईं गलतियां हमेशा भविष्य में दुःख का कारण बनतीं हैं। सटीक व सुंदर अभिव्यक्ति !

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  5. प्रशंसनीय

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-03-2017) को

    "हथेली के बाहर एक दुनिया और भी है" (चर्चा अंक-2610)

    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. सुन्दर रचना

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