Monday, June 5, 2017

फेसबुक पर महिलाओं की प्रॉक्सी

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  नयन मटक्का इस बार बेहद खास बन गया है, महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी गुणवत्ता प्रदर्शित कर रहीं हैं। सर्वप्रथम महिला सम्पादिका को बधाई और पत्रिका के संपादक को भी बधाई, उन्होंने एक महिला को यह कार्य सौंप कर समानता  के अधिकार का सार्थक उपयोग किया है।    सोशल मीडिया पर भी महिलाओं ने पुरुषों के अधिपत्य को तोड़कर अपना परचम लहराया है।            
             फेसबुक पर महिलाओं की प्रॉक्सी? मतलब महिलाओं का फेसबुक पर भी इतना बोलबाला हो गया है कि  तथाकथित मर्द अब फेक आई डी बनाकर प्रॉक्सी देने लगे हैं. उनकी दबी हुई यानि कि दमित इच्छाएं भी महिलाओं की चौखट पर दम तोड़ने लगीं हैं. आखिर   हर बार पुरुषों को महिलाओं की चौखट ही मिलती है।  तथाकथित मर्द फेक अकाउंट द्वारा अपने दूषित विचारों की लीपा पोती करतें है।   ऐसा प्रदुषण  ज्यादा देर कहाँ छुपता है।  
      हमारे पडोसी को दीवारों में कान लगाने की बुरी लत लगी हुई है,  तब तक आँखें न सेंके, कान को गर्म न करें, चुगलियां न करे,  हाजमा ख़राब हो जाता है। दिन रात एक एक बात को प्याज के छिलके उतारकर पूछना और उसका ढिंढोरा पीटना। जनाब की इस लत का शिकार पडोसी के साथ उनके घर वाले भी है।  एक भी दिन भी अगर पटाखा  न जले तो कालोनी में सूनापन महसूस होने लगता है। कुछ मर्द महिलाओं के प्रति कुछ ज्यादा लगाव महसूस करतें है इसीलिए हाव भाव भी उसी तरह रखतें हैं।  तथाकथित पुरुष वर्ग उन्हें पीठ पीछे बायको  ( महिला ) कहकर सम्बोधित करता है। लो जी यहाँ भी महिला की चौखट पर ही बलि चढ़ी।  बिना बात के बेचारी महिला ही सूली चढ़ती है।  आखिर कहीं  तो सर छुपाने की जगह होनी चाहिए। इसीलिए शायद हर जगह पुरुष प्रॉक्सी का सहारा लेते हैं। 
  
     व्यंग्य क्षेत्र  पर  भी मुख्यतः पुरुषों का आधिपत्य था. चाटुकारिता का ठीकरा  महिलाओं के सर पर फोड़कर  पुरुष बखूबी अपनी भूमिका निभा रहे थे। व्यंग्य लेखन में महिलाओं की स्थति पहले नगण्य थी लेकिन इसमें तेजी से इजाफा होने लगा, सोशल मीडिया को हथियार बनाकर कई बुद्धिजीवी महिलाओं ने हाथ में  हथियार थाम लिए. एकाएक कटाक्षों की बारिश होने लगी, कटाक्ष और व्यंग्य एक दूजे से  पृथक कहाँ है. पुरुषों ने सदा से महिलाओं को व्यंग्य वाणों हेतु बदनाम कर रखा था। तो लीजिये यही व्यंग्य वाण अब अपनी लीला दिखा रहें है. 
             सोशल मीडिया ने  कलमकारों की धार तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है कहना गलत न होगा।  पहले चौपाल पर चाटुकारिता होती थी अब सोशल मीडिया एक चौपाल बनकर उभरी है।  स्वतंत्र देश के नागरिक सभी अपनी बात कहने हेतु स्वतंत्र है।
     
             हमारे शर्मा जी को अपने व्यंग्यकार होने पर बहुत गुमान था।  दिन रात पत्नी की खिल्ली उड़ाना उनके व्यंगय  लेखन का  प्रमुख अंग था. स्वतंत्र विचारों व विशाल हृदय की स्वामिनी उनके इस अंदाज पर मुस्कान बिखेरती थी, लेकिन शर्मा जी को कोई उनका मजाक बनाये पसंद नहीं था। महिलाओं का मजाक बनाना वह एक छत्र राज समझते थे।  
      
                  हमारे शर्मा जी की पत्नी भी किसी कुशल व्यंग्यकार  से कम नहीं है, देखा जाये तो शर्मा जी को उन्ही ने व्यंग्यकार बनाया है, उनके कुशल वाणों के द्वारा ही  शर्मा जी सफल व्यंग्यकार बने हैं, उनकी सफलता का श्रेय उनकी पत्नी को भी जाता है। हमें लगता है  व्यक्ति की सफलता के बीज उनकी अपनी धरती  पर ही बिखरे होतें हैं।

लेकिन शर्मा जी को पसंद नहीं कोई उनकी पत्नी की तारीफ करे. मर्द के अहम् को ठेस पहुँचती है। 
 एक दिन  हमने जब शर्मा जी से कहा - भाई, भाभी जी  को कहो कुछ लिखा करें।     
कहने लगे भाई - जान की भीख मांगता हूँ, मै अकेला भी उन्हें पढ़ने सुनने के लिए बहुत हूँ।  मेरी जान बख्शो भाई। ऐसी सलाह अपने घर में ही रखा करो।  हमें ऐसा लगा एक  सफल नामचीन व्यंग्यकार पत्नी के आगे बिसात की तरह बिछ गया। कुछ गड़बड़ है। प्रकृति की शक्ति का  अंदाज शर्मा जी को भी होगा।  
 एक दिन  की बात है - एक समारोह देखते हुए अति बुद्धिजीवी शर्मा जी की जीभ फिसल गयी, अहम् बोलने लगा  - 
" महिलाएं क्या व्यंग्य लेखन करेंगी ? वह घर में ही अच्छी लगती हैं."
कोई दूसरा कुछ बोले उसके पहले  बगल में बैठी उनकी पत्नी को पर सब नागबार गुजरा. बिफर पड़ी -   
  "आपने महिलाओं को क्या समझा है "
आवाज मिमिया गयी - " कुछ नहीं भाग्यवान ,महिलाएं कितनी अच्छी  होती हैं। .."
"अभी तुमने जो कहा वह क्या था ? और महिलाएं कितनी अच्छी से क्या तात्पर्य है, कितनी महिलाओं को जानते हो ",
 आँखे तरेर कर पूछा तो शर्मा जी एकदम गऊ बन गए। समझ गए खुद के झाल में फँस गए।  
" पुरातन समय से महिलाओं  को देवी का दर्जा दिया है। वे पूज्यनीय है, तुम न होती तो हम कहाँ होते ? तुमसे ही परिहास करके,  तुम पर चुटकुले बना कर, तानों को मूर्त रूप देकर ही व्यंग्य लिखता हूँ "
"अच्छा तो हम कोई वस्तु है, जिस पर चुटकुले लिखो "  स्वयं पर ताना समझकर थोड़ा सा  अपराध बोध  का स्टेशन  मन में आया किन्तु भावभंगिमा खा जाने वाली ट्रैन चला दी, पहले की नारी होती तो चुप सुन लेती लेकिन आज महिलाएं सजग हो गयी हैं। भाव - भंगिमा देखकर घबराकर शर्मा जी  बोले - 
 "यह सब लेखन की बातें है, शिल्प, कथ्य, बिम्ब ..अनेक बिंदु पर काम करना होता है...... दिन रात उनके बारे में सोचो फिर ...."आगे की बात मुँह में घुलकर रह गयी। 
"अच्छा अब समझी, कहाँ मशग़ूल रहते हो। बोल कालिया कितनी बिंदु तेरे पास में है ?  किसके  साथ लीला कर रहे हो?  तभी घर में  कदम नहीं टिकते  हैं, बताओ कहाँ मिलते हो इन सभी बिंदुओं से। .उफ़ कितनी आवारगी है ....."
"अरे भगवान् क्या बोल रही हो, समझो तो सही "
" सब  समझती हूँ, बन्दर के दाँत खाने के अलग होते हैं दिखाने के अलग ....यह झुनझुना कहीं और बजाना। .....  पत्नी की सेवा करो तभी मेवा मिलेगा। पत्नी जी मुस्कुरा कर आगे बढ़ गयी।  
आज उपवास रखने का समय आ गया था। शर्मा जी कलम लेकर कागज फाड़ते नजर आये। मीडिया पर खिसियानी बिल्ली की तरह पोस्टों को नोचने लगे। 
     शर्मा जी ने खिसकने में ही अपनी भलाई नजर आयी, लेकिन अगले  दिन से सोशल मीडिया पर नए व्यंग्यकार का अवतरण हो गया था, शर्मा जी की खास प्रतिद्वंदी बनकर उभरी उनकी पत्नी अब हर तरफ छायी हुई थी. शर्मा जी समझ चुके थे, पानी में रहकर मगर से  बैर नहीं करना चाहिए। चलिए शर्मा जी के साथ फिर मिलेंगे।  तब तक आप भी अपने घर में सोई हुई प्रतिभा को रास्ता दिखाएँ। जय हो 
शशि पुरवार 

11 comments:

  1. दिनांक 06/06/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
    आप की प्रतीक्षा रहेगी...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-06-2017) को
    रविकर शिक्षा में नकल, देगा मिटा वजूद-चर्चामंच 2541
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. पानी में रहकर मगर से बैर नहीं
    वाह! बहुत मजा आया पढ़कर।
    मेरा भी बहुत मन करता है व्यंग्य लिखना का, सोचती हूँ व्यंग समाज का कटु सत्य ही तो होता है फिर देर क्यों? लेकिन मुहूर्त ही नहीं निकल पाता। खैर कोशिश जारी रहेगी।

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    1. hardik dhnyavad kavita ji , jarur likhen shubhkamnayen hain

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  4. बेचारे शर्मा जी क्या करें -पत्नी का पल्ला पकड़े बिना व्यंग्य रचना को ठौर कहाँ मिलेगा.उन्हें लगता है पत्नी को कैसे भी प्रस्तुत करना उनका एकाधिकार ठहरा -आपने भी खूब दुखती रग पर आघात किया है -बढ़िया!

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  5. बेचारे शर्मा जी क्या करें -पत्नी का पल्ला पकड़े बिना व्यंग्य रचना को ठौर कहाँ मिलेगा.उन्हें लगता है पत्नी को कैसे भी प्रस्तुत करना उनका एकाधिकार ठहरा -आपने भी खूब दुखती रग पर आघात किया है -बढ़िया!

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’विश्व महासागर दिवस और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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