Tuesday, May 21, 2019

सन्नाटे ही बोलते

भटक रहे किस खोज में, क्या जीवन का अर्थ 
शेष रह गयी अस्थियां, प्रयत्न हुए सब व्यर्थ 

तन माटी का रूप है , क्या मानव की साख 
लोटा भर कर अस्थियां, केवल ठंडी राख 

सुख की परिभाषा नई, घर में दो ही लोग 
सन्नाटे ही बोलते , मोबाइल का रोग 

कोई लौटा दे मुझे बचपन के उपहार 
नेह भरी मेरी सदी , मित्रों का संसार 

आपाधापी जिंदगी , न करती है विश्राम 
सुबह हुई तो चल पड़ी , ना फुरसत की शाम 

शशि पुरवार 



10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-05-2019) को "आपस में सुर मिलाना" (चर्चा अंक- 3343) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बदलते माहौल में कई बार छोटी-छोटी बातें भी बड़ी प्रेरक सी बन जाती हैं। मेरा ब्लॉग कुछ यादों को सहेजने का ही जतन है। अन्य चीजों को भी साझा करता हूं। समय मिलने पर नजर डालिएगा
    Hindi Aajkal

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार मई 24, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. तन माटी का रूप है , क्या मानव की साख
    लोटा भर कर अस्थियां, केवल ठंडी राख
    बहुत सुन्दर... लाजवाब...
    वाह!!!

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  6. कोई लौटा दे मुझे बचपन के उपहार
    नेह भरी मेरी सदी , मित्रों का संसार ....बहुत ही सुन्दर
    सादर

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  7. कोई लौटा दे मुझे बचपन के उपहार
    नेह भरी मेरी सदी , मित्रों का संसार
    बहुत सुंदर।

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  8. वाह!!बहुत खूब!

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  9. वाह बेहतरीन प्रस्तुति

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  10. बहुत सुन्दर

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