Thursday, November 14, 2019

नज्म के बहाने

१ नज्म के बहाने

याद की सिमटी हुई यह गठरियाँ
खोल कर हम दिवाने हो गए
रूह भटकी कफ़िलों में इस तरह
नज्म गाने के बहाने हो गए।

बंद पलकों में छुपाया अश्क को
सुर्ख अधरों पर थिरकती चांदनी
प्रीत ने भीगी दुशाला ओढ़कर
फिर जलाई बंद हिय में अल गनी

इश्क के ठहरे उजाले पाश में
धार से झंकृत तराने हो गए
रूह भटकी कफ़िलों में इस तरह
नज्म गाने के बहाने हो गए।


गंध साँसों में महकती रात दिन
विगत में डूबा हुआ है मन मही
जुगनुओं सी टिमटिमाती रात में
लिख रहा मन बात दिल की अनकही

गीत गा दिल ने पुकारा आज फिर
जिंदगी के दिन सुहाने हो गए
रूह भटकी कफ़िलों में इस तरह
नज्म गाने के बहाने हो गए।

भाव कण लिपटे नशीली रात में
मौन मुखरित हो गई संवेदना
इत्र छिड़का आज सूखे फूल पर
फिर गुलाबों सी दहकती व्यंजना

डायरी के शब्द महके इस कदर
सोम रस सब मय पुराने हो गए
रूह भटकी कफ़िलों में इस तरह
नज्म गाने के बहाने हो गए।

याद की सिमटी हुई यह गठरियाँ
खोल कर हम दिवाने हो गए। ..!
--


शशि पुरवार 


3 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-11-2019 ) को "नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं" (चर्चा अंक- 3520) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    -अनीता लागुरी 'अनु'

    ReplyDelete
  3. सुन्दर रचना

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। हमें अपने विचारों से अवगत कराएं। सविनय निवेदन है --शशि पुरवार

आपके ब्लॉग तक आने के लिए कृपया अपने ब्लॉग का लिंक भी साथ में पोस्ट करें
.