Monday, April 20, 2020

बदला वक़्त परिवेश - कोरोना काल के दोहे

कोरोना ऐसा बड़ा , संकट में है देश 
लोग घरों में बंद है , बदला वक़्त परिवेश

 प्रकृति बड़ी बलवान है, सूक्ष्म जैविकी हथियार
मानव के हर दंभ पर , करती तेज प्रहार 

 आज हवा में ताजगी,  एक नया अहसास 
पंछी को आकाश है, इंसा को गृह वास

जीने को क्या चाहिए, दो वक़्त का आहार 
सुख की रोटी दाल में, है जीवन का सार

 इक जैविक हथियार ने छीना सबका चैन 
आँखों से नींदें उडी , भय से कटती रैन 

 चोर नज़र से देखते , आज पड़ोसी मित्र 
दीवारों में कैद हैं , हँसी  ठहाके चित्र

 चलता फिरता तन लगे, कोरोना का धाम 
 गर सर्दी खाँसी हुई,  मुफ़्त हुए बदनाम

 कोरोना का भय  बढ़ा , छींके लगती  तोप 
बस इतना करना जरा , मलो हाथ पर सोप 

शशि पुरवार 

5 comments:

  1. Replies
    1. आपका हार्दिक धन्यवाद

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  2. सच ही तो है, इस कोरोना काल ने तो सब कुछ पलट कर रख दिया।अति सुंदर रचना। हालही में मैंने लेखन को अपना मित्र बनाया क्योकि अब समय भी मिला और मंच भी कई सालो से जो टीस थी लिखने की आज वो पूरी हो सकी। हालांकि इतना सटीक लिखने में मेरा हाथ नही है पर प्रयास जारी है। और मैं चाहता हूँ कि आप जैसे साथियों का साथ मिले तो जरूर मैं अपनी सोच को एक नई सोच के साथ जोड़ पाऊंगा और इसमें आपके भी मार्गदर्शन का अभिलाषी।

    http://eeknaisoch.blogspot.com

    सधन्यवाद

    🙏🏻🙏🏻💐💐


    एक नई सोच
    मुकेश खेतवानी
    दिल्ली

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  3. क्या है बदला इस लेख को अवश्य पढ़ें और इस नाचीज को आशीर्वाद अवश्य दें।


    क्या है बदला, क्यो है बदला
    ये तो सब जानते है
    चारो ओर हाहाकार मचा है
    ये तो सब जानते है
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    पूरी कृति को पढ़ने के लिए नीचे दिए, लिंक को click करें और अगर आपको लगे तो इसे सभी के साथ शेयर करें।

    Link : -

    http://eeknaisoch.blogspot.com

    धन्यवाद

    🙏🏻🙏🏻

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