Friday, July 3, 2020

कोरोना काल के दोहे

रौनक फीकी पड़ गयी, सड़कें भी सुनसान 
दो कौड़ी का अब लगे, सुविधा का सामान 

सुविधा के साधन सभी, पल भर में बेकार 
कैद घरों में जिंदगी, करे प्रकृति वार 

सूरज भी तपने लगा, सड़कें भी सुनसान 
परछाई मिलती नहीं, पहरे में दरबान 

घी चुपड़ी, रोटी, नमक, और साथ में चाय 
जीरावन छिड़को जरा, स्वाद, अमृत, मन भाय 
 

थमी हुई सी जिंदगी, साँसें भी हलकान 
सिमटा सुख का दायरा, रोटी और मकान 

भाग रही थी जिंदगी, समय नहीं था पास
पर्चा बाँटा काल ने, करा दिया अहसास 


 शशि पुरवार 

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 03 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जीवन का मोल समझ आने लगा है ! वह है तभी सब कुछ है

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  3. बहुत सुन्दर

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