Monday, July 20, 2020

कोरोना अभिशाप में भी वरदान








कोरोना अभिशाप में भी वरदान

आज भी रोज सूरज सुबह उगता है , सांझ रात के आगोश में सपनों की मीठी गोली दे कर सो जाती है, न मौसम के चक्र बदले​, ना पृथ्वी का घूमना. आज भी चांद अपनी चांदनी यूं ही बिखेरता है. ना रात का सौंदर्य बदला, ना ही दिन की तपिश. आज भी मौसम बदल रहा है. ​ आज भी धरती तप रही है. ना प्रकृति की माया बदली , ना प्रकृति का सौंदर्य. अगर बदला है तो वह है मानव का जीवन.

कोरोना अभिशाप में भी वरदान बनकर सिद्ध हुआ है. प्रकृति से लेकर जीवन तक सकारात्मक बदलाव आने वाले समय की आहट सुना रहे हैं. प्रकृति ने स्वयं के घावों को भर लिया है. प्रकृति के लिए कोरोना जहां वरदान बना है वही मानव के लिए सबक लेकर आया है. आज हमें अपनी उन गलतियों को दोहराना नहीं है अपितु उसे सुधारकर, जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास, पूर्ण ईमानदारी से करना होगा।


जिंदगी बेतहाशा भाग रही थी . समय का अभाव मृगतृष्णा की दौड़ ने लोगों को अंधा बना दिया था. गांव मिटने की कगार पर थे और शहरों की जिंदगी बेतहाशा सरकती हुई गाड़ी के पहियों के संग रेंग रही थी . आत्मिक सुख से ज्यादा क्षणिक बाह्य सुख के लिए हम भूल भुलैया में दौड़ रहे थे. हम दौड़ रहे थे तो दुनिया दौड़ रही थी. पर किस सुख के लिये व क्यों दौड़ रहे थे ? माया साथ नही रहती, एक समय के बाद यह नश्वर शरीर नही रहता तो फिर किस दौड में हम शामिल थे व क्यों? उत्तर अंतहीन प्रश्न की तरह है. किंतु दौड़ते दौड़ते जिंदगी ही रेस से बाहर हो जाती थी . आज लोगो ने कम संसाधनों में जीवन का यापन करना पुन: सीखा है. गांवों से पलायन कर चुके क़दमों का पुनः गॉंवो में वापिस लौटना, भविष्य में गांवों के अस्तित्व को बचाने का सुखद सन्देश है .

​ कोरोना महामारी के कारण आर्थिक पारिवारिक व समय की दोहरी मार से लोगों की हालत बिगड़ रही हैं . लोग डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं . आज आत्मिक मंथन के साथ-साथ हमें व्यापक दृष्टि से मंथन करने की आवश्यकता है चाहे वह वैश्विक स्तर पर हो या आत्मिक स्तर पर . देश के अलग-अलग भागों में नेतृत्व कर रहे लोगों पर हो या जिन्हें हमने अपना बहुमूल्य वोट दिया है या खुद का आंकलन करना हो. लेकिन आंकलन करना जरुरी है। आईने की तरह स्थितियां साफ हो रही हैं कि कौन इस संकट की घड़ी में सारथी बनकर बाहर ले जाने में सक्षम है, या कौन इस परिस्थिति में अडिग रहकर भविष्य के निर्धारण में अपना योगदान देने में सक्षम है या कौन अपना ही आइना ​दिखा रहा है​.

​​ नास्त्रेदमस ने हजारों वर्ष पूर्व होने वाली इस तबाही के लिए आगाह किया था वहीँ शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है लेकिन यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो जब भी पृथ्वी पर भार बढ़ता है तब इस तरह की तबाही आती है . अंग्रेजी के s और jशब्द दोनों ही पृथ्वी की संरचना को जाहिर करतें है s पृथ्वी का संतुलन दर्शाता है वही j शब्द बढ़ती ही जनसंख्या को दर्शाता है . जहाँ पृथ्वी का भार बढ़ता चला जा रहा था. बढ़ती हुई जनसंख्या,कटते हुए वन , रासायनिक उत्पादनो का प्रयोग, दूषित होता पानी , नदी नालों का भरना​ हर तरह से पृथ्वी के सौंदर्य व अस्तित्व को खतरे मे डाल रहा था

​जब जब प्रकृति पर इस तरह का संकट आता है . वह तबाही का अनकहा संदेश प्रत्यक्ष ​अप्रत्यक्ष रुप में दर्शा देती है. भूकंप के झटके, सुनामी हो या हाहाकार मचाती हुई महामारी , जैसे पृथ्वी का बोझ कम कर रही हैं . देखा जाए तो कोरोना काल को कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए ही आया है।हम प्रकृति का दोहन करें लेकिन उसके विनाश का कारण नहीं बने तो इस तरह की समस्याएं कभी जन्म ही नही लेंगी .

​आज हमें जिंदगी को जीने के तरीके बदलने होंगे . समय की वही पुरानी तस्वीर आंखों के समक्ष सामने तैर रही है . सुकून हमें अपने भीतर तलाशना होगा। समय कभी एक सा नहीं रहता है। यह वक्त भी गुजर जायेगा, कोरोना भी जीवन से निकल जायेगा। लेकिन सावधानी बेहद जरुरी है। कोरोना का बढ़ता ग्राफ हमारी असावधानी को दर्शा रहा है। जीवन अनमोल है। गलतियां न करे . अगर अभी नही चेते तो बहुत देर हो जायेगी.

इस विकट विषम परिस्थिति में स्वयं को भी संभाल​ना होगा ​ और स्वयं के साथ देश को भी आगे ले जाने का प्रयत्न करना होगा . मानसिक रुप से हमें स्वयं को मजबूत बनाना होगा .कोरोना से बाहर निकल कर वर्तमान पथरीली जमीन का साक्षात्कार करना होगा. ​आत्मसंयम, सबूरी , धैर्य व आत्मिक सुख की अनुभूति को महसूस कर, आने वाले भविष्य में प्रगति के नए मार्ग खोलने होंगे . इस संकट से निकल कर आने वाले भविष्य का नव निर्माण करना होगा।

​बेहतर होगा अपने इस समय को सार्थक कार्यों व योजनाओं को क्रियान्वित करने में लगाएं। जो भविष्य में सुखद जीवन का आधार बनेगी। लॉक डाउन में इससे बेहतर वक्त नहीं मिलेगा जब जब हम अपनी नकारात्मकता को खत्म करके सकारात्मक ऊर्जा को प्रवाहित कर सकतें है।

एक नयी सोच के नए जीवन का आगाज करें। कोरोना को अभिशाप नहीं वरदान समझें। संभले , सीखे व जीवन के बदलते स्वरुप को सहजता से स्वीकार करें . अंत में यही कहना चाहूंगी


खोलो मन की खिड़कियां, उसमे भरो उजास
धूप ठुमकती सी लिखे , मत हो हवा उदास

शशि पुरवार

5 comments:

  1. इस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(सीखे हिंदी में)

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  2. बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak

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