हे प्रभु , तेरी लीला है न्यारी ,
जग पे छाई , है यह कैसी खुमारी ..
गिरते मूल्य ,
छोटे होते इंसान
मौकापरस्त है वे ,
सेकते अपने हाथ ,
रूपैया महान....!
भारी होती जेबें ,
खिसियानी मुसकान .
चहुँ और फैले दानव ,
मासूमियत परेशां...!
कर के नाम पर
साधू दे दान ,
चतुर छुपाये काम
तभी तो होगा
देश का कल्याण .
मासूम चेहरे
हैवानियत भरी नजरे
कुटिलता है पहचान .
जार - जार होते सिद्धांत
इंसानियत हैरान .
नर हो या नारी
कटाक्ष की तलवार
सोने सी भारी
स्वार्थ , अहं , दुश्मनी
तानाशाही , खुनी मंजर की
आग में है झुलसे
दुनिया सारी..... !
हे प्रभु , तेरी लीला है न्यारी ...!
:--शशि पुरवार
बहुत सुन्दर रचना , बधाई.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें.
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
jaisee bi ho duniya... par pata nahi kyon hame to lagti badi pyari...:)
ReplyDeletehe prabhu teri leela badi nyari...:))
कड़वा है..मगर सच है...
ReplyDeleteसार्थक लेखन के लिए बधाई शशि जी..
सादर.
yen ken prakaaren
ReplyDeletedhan arjan
dhan arjan .....
शशि जी बहुत अच्छी कविता बधाई |
ReplyDeleteSHASHI JI BAHUT HI SUNDAR RACHANA ....GAHRI PARAKH ...SADAR BADHAI.
ReplyDeleteबेहतरीन सुंदर रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति,के लिए बहुत२ बधाई,..शशि जी,...
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
vaah kadve sach ko bakhoobi kah dala.
ReplyDeleteमौजूदा दौर की कडवी सच्चाई।
ReplyDeletevery impressionable and impact-creating kavita,shashiji!
ReplyDeletesirf 2 sabd har pankti me fir bhi itni prabhavshali.
Seriously, world has become soul less. We are driven by monetary aspects and morals have lost value.
ReplyDeleteThought provoking poem Shashi.
I hope we become as innocents as we were in our childhood days...
sunder bhav-sunder kavita,yatharth k dharatal per......
ReplyDeleteकल 18/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सटीक चित्रण ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteमासूम चेहरे
ReplyDeleteहैवानियत bhari नजरें
कुटिलता है पहचान
ज़ार-ज़ार होते सिद्धांत
bhut सच्चाई छिपी है इन पंकियों में दीदी
सुंदर कटाक्ष और सार्थक प्रस्तुति. सच्चाई से बयाँ किया कड़वा सच.
ReplyDeleteबहुत ही भाव प्रवण कविता । मन को आंदोलित कर गयी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteवाह!!!!!शशि जी बहुत अच्छी प्रस्तुति, सुंदर रचना
ReplyDeleteMY NEW POST ...सम्बोधन...
रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण रुपया हो गया है।
ReplyDeleteआदमी की सोच में आई विकृतियों को उजागर करती अच्छी रचना।
अर्थपूर्ण , जो कुछ हो रहा है उससे तो मानवता सच में हैरान ही है......
ReplyDelete1.Reality of life wonderfully expressed by you.
ReplyDelete2.Flow of poem is amazing.
3.Nice play of words.
4."मासूम चेहरे
हैवानियत bhari नजरें
कुटिलता है पहचान
ज़ार-ज़ार होते सिद्धांत"- liked these line very much.
Overall You Rock! Keep writing:)
बहुत ही सुन्दर रचना शशि जी बधाई !
ReplyDeleteये प्रभू की लीला नहीं ... समाज के गिस्ते मूल्य हैं जिनको हम साध अहिपा रहे ... सार्थक रचना है ...
ReplyDeleteaap sabhi ka hraday se shukriya ....aapne hamari rachna me samiksha ke char chand lagaye ..........abhar .
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत मेहनत से लिखतीं हैं आप.
ReplyDeleteदिल की कशिश को निचोड़ दिया है आपने
अपनी इस सुन्दर अभिव्यक्ति में.
चाँद तो आपके नाम में ही है.
फिर आपकी अभिव्यक्ति पर चार की
जगह हजार चाँद भी लगें तो कम ही हैं.
वैसे 'राकेश'मेरा और मेरी पत्नी का नाम भी 'शशि' है.
है न चन्द्रमाओं का अदभुत संयोग ,शशि पुरवार जी.
बस ..' त्राहिमान शरणागतम ' ..सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteLike that picture of the hand drawing.
ReplyDeleteमासूम चेहरे हैवानीयत भारी उठ नारी जागरूक हो नहीं किसी पर भारी
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